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चीन से नहीं भिड़ेगा अमेरिका

३ जुलाई २०१३

अमेरिका ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि एशिया में अपनी भागीदारी तो जरूर बढ़ाएगा लेकिन अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी चीन से किसी तरह का झगड़ा नहीं मोल लेगा. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने यह बात कही है.

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तस्वीर: JACQUELYN MARTIN/AFP/Getty Images

केरी से पहले की अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिका का रुख एशिया की तरफ मोड़ा था. 2009 में विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने अपना पहला दौरा एशिया का किया और दो साल बाद उन्होंने इस शताब्दी को "अमेरिकी पैसिफिक शताब्दी" घोषित किया. विदेश नीति पर एक लेख में उन्होंने लिखा, "जैसे एशिया अमेरिकी भविष्य के लिए बेहद जरूरी है, उसी तरह बेहतर अमेरिका भी एशिया के भविष्य के लिए जरूरी है."

पिछले कुछ महीनों में हालांकि इस बात में कई बार शक उठे कि क्या अमेरिका एशिया में प्रभाव चाहता है और कि क्या वह इसके लिए तैयार है. अमेरिकन स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के एरनेस्ट बावर और नोएलान आर्बिस का कहना है, "क्षेत्रीय साझीदार इस बात पर सवाल कर सकते हैं कि अमेरिका का यह रुख कितने दिनों तक बना रहेगा, जॉन केरी ने एक फरवरी को विदेश मंत्री के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद दिखाया है. उन्होंने सीरिया संकट सुलझाने और इस्राएल फलीस्तीन शांति प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने पर जोर दिया है."

Hillary Clinton äußert sich zu September-Anschlägen in Benghazi
हिलेरी क्लिंटन के वक्त बदली नीतितस्वीर: Reuters

बदला बदला अमेरिका

हालांकि इस साल आसियान देशों के सम्मेलन में विदेश मंत्री ने अलग रुख अपनाया. ब्रुनेई में हुए इस सम्मेलन में केरी ने कहा कि अमेरिका एशिया पैसिफिक के साथ सहयोग की राह पर चलता रहेगा. आसियान का गठन 1994 में हुआ और इसमें 27 सदस्य राष्ट्र हैं. इसमें भारत और चीन के अलावा ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं.

समझा जाता है कि केरी और अमेरिकी रक्षा मंत्री चक हागेल की एक ही रणनीति है. पिछले दिनों एशियाई सुरक्षा कांफ्रेंस में हागेल ने कहा, "यह सही है कि रक्षा मंत्रालय के पास पहले के मुकाबले कम संसाधन होंगे. हालांकि यह कहना गलत और अदूरदर्शी होगा कि दोबारा संतुलन बिठाने की हमारी कोशिश पूरी नहीं होगी."

चीन से दूरी

बावर और आर्बिस के मुताबिक अमेरिका के सामने कई तरह की रणनीतिक चुनौतियां हैं. उनके सामने चीन के भूभाग पर विवाद से लेकर उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और म्यांमार की जातीय हिंसा तक शामिल है.

हालांकि केरी ने ब्रुनेई के सम्मेलन में कहा, "हमें यह देखने में दिलचस्पी है कि दक्षिण चीन के समुद्री हिस्से के विवाद के हल के लिए क्या किया जा रहा है. हम उम्मीद करते हैं कि इस दिशा में जल्द ही कोई उपाय निकलेगा ताकि इलाके में स्थिरता आ सके."

ASEAN in Brunei John Kerry
आसियान सम्मेलन में जॉन केरीतस्वीर: Reuters

हालांकि केरी ने इस बात का संकेत भी दे दिया कि अमेरिका इस विवाद में हस्तक्षेप नहीं करेगा और इसकी जगह वह अंतरराष्ट्रीय नियमों को लागू करने पर जोर देगा. ऐसा समझा जाता है कि इस कदम के साथ वह चीन के साथ कोई झगड़ा भी नहीं मोल लेना चाहता और इलाके के राष्ट्रों के साथ मिल कर काम करना भी चाहता है. खुद केरी ने घुमा फिरा कर यह बात कही.

अच्छी नहीं नीति

हालांकि बर्लिन स्थित जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के जेरहार्ड विल इस बात से संतुष्ट नहीं हैं, "अमेरिका खुद को काबू में रखने की नीति का पालन कर रहा है. हालांकि लगता नहीं कि उसे हर वक्त इस बारे में पता होता है. अमेरिका कहता है कि वह चीन को ज्यादा अधिकार देना चाहता है लेकिन अगर आप बारीकी से देखें, तो ऐसा लगता नहीं है."

विल का मानना है कि इसका नतीजा यह हो सकता है कि दक्षिण पूर्व एशिया में चीन और अमेरिका एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन जाएं, "इस तरह की रणनीति लंबे वक्त के लिए नहीं हो सकती है. इसके बाद ऐसा समय आ सकता है कि आसियान के सदस्य देशों को अमेरिका और चीन में से किसी एक को चुनना पड़े." उनका मानना है कि शायद यही वजह है कि केरी ने आसियान देशों को भरोसे में लेना चाहा है.

हालांकि इसकी तुलना शीत युद्ध वाले वक्त से नहीं की जा सकती. विल का कहना है, "चीजें आज के वक्त में बहुत ज्यादा उलझ गई हैं. आर्थिक हितों को ध्यान में रख कर अमेरिका और चीन के लिए खराब रिश्ता रखना आसान नहीं होगा."

रिपोर्टः रॉडियन एबिगहॉजन/एजेए

संपादनः निखिल रंजन

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