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चुनाव की नीली स्याही पर काले दाग

प्रभाकर मणि तिवारी
१३ मई २०१९

भारत में चुनावी धांधली रोकने के लिए वोटरों की अंगुली पर इस्तेमाल होने वाली स्याही की गुणवत्ता पर हर चुनाव में सवाल उठते रहे हैं. इस बार भी देश के कई हिस्सों से इसके तुरंत साफ हो जाने की शिकायतें मिल रही हैं.

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Indien Wahl Kontroverse über die Wahltinte
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

चुनाव आयोग इन शिकायतों को खारिज करता रहा है. पूर्व चुनाव आयुक्त नसीम जैदी समेत कई लोगों ने इस मामले की जांच की मांग उठाई है. वोटरों की अंगुली पर यह स्याही लगाने का मकसद चुनावी धांधली को रोकना था. यह स्याही अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं रही है. हाल में दक्षिण अफ्रीकी चुनावों में भी इस अमिट स्याही की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए तमाम राजनीतिक दलों ने भारी हंगामा किया है.

अमिट स्याही की शुरुआत

भारत में वर्ष 1962 में चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय, नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी और नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कार्पोरेशन के साथ मिल कर कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूर पेंट्स के साथ लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए अमिट स्याही की सप्लाई के करार पर हस्ताक्षर किए थे. वह कंपनी उसी समय से इस स्याही की सप्लाई करती रही है. कंपनी भारत के अलावा 25 से ज्यादा यूरोपीय और अफ्रीकी देशों को भी इस स्याही की सप्लाई करती रही है. इस साल लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरी चरण के बाद ही तमाम हिस्सों से लोग महज नेल पालिश रिमूवर से इस स्याही को मिटा कर अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगे. द क्विंट वेबसाइट की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऋतु कपूर भी इनमें शामिल थीं. इस वेबसाइट ने इस बारे में एक रिपोर्ट भी छापी थी.

Indien Landtagswahlen Maharashtra 15.10.2014
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui

वैसे तो पहले भी ऐसी शिकायतें मिलती रही हैं. लेकिन अब इनकी बाढ़ आ गई है. बंगलुरू के आर्किटेक्ट परीक्षित दलाल ने तो बंगलुरू उत्तर लोकसभा क्षेत्र के चुनाव अधिकारी से इस बारे में बकायदा लिखित शिकायत भी की है. दलाल ने अपनी शिकायत में कहा है, वोट डालने के बाद मैंने साबुन से हाथ धोए और यह देखने के लिए नेल पालिस रिमीवर का इस्तेमाल किया कि स्याही का दाग मिटता है या नहीं.  मुझे यह देख कर सदमा लगा कि यह दाग पूरी तरह मिट गया है.

जांच की मांग

अब ऐसी शिकायतें बढ़ने के बाद तमाम लोगों और संगठनों ने इस स्याही की गुणवत्ता की जांच करने की मांग की है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी कहते हैं, इस मामले की जांच की जानी चाहिए और अगर कोई दो बार वोट डालने के लिए इस स्याही को मिटाने में सफल रहता है तो चुनाव कानून के संबंधित प्रावधानों के तहत पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई जानी चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्याही का जीवनकाल महज छह महीनों का है यानी उसके बाद यह खराब हो जाती है.

कांग्रेस के प्रवक्ता संजय झा ने भी इस स्याही के आसानी से मिटने की शिकायत की है. उनका कहना था, मतदान करने के एक घंटे बाद ही नेल पॉलिस रिमूवर लगाने पर स्याही गायब हो गई. उन्होंने मतदान के बाद की और अंगुली पर स्याही का निशान मिटने की दो तस्वीरें भी अपने ट्विटर पर पोस्ट की है. हैदराबाद की एक पत्रकार ने तो इस स्याही को मिटाते हुए एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड किया है. उनके अलावा देश भर के कई पत्रकारों और नेताओं ने ऐसी तस्वीरें पोस्ट की हैं.

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले से ऐसी शिकायतें मिलने के बाद जिला चुनाव अधिकारी से इस बारे में रिपोर्ट भी मांगी थी. उपचुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार कहते हैं, "हर चुनाव से पहले इस स्याही को जांच के लिए काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च यानी सीएसआईआर के पास भेजा जाता है. दुनिया भर के 25 से ज्यादा देश इसी स्याही का इस्तेमाल करते रहे हैं.

इस साल लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने 33 करोड़ रुपये दे कर इस स्याही की 26 लाख बोतलें खरीदी थीं. दूसरी ओर, इस मामले पर विवाद बढ़ते देख कर यह स्याही विकसित करने वाला संगठन कौंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च भी इसके बचाव में सामने आया है. देश के इस अग्रणी शोध व विकास संगठन के महानिदेशक डा. शेखर मांडे कहते हैं, "हमने 1960 की शुरुआत में इस स्याही को विकसित कर यह तकनीक मैसूर पेंट्स एंड वार्निस लिमिडेट को सौंप दी थी. उसी समय से कंपनी हर चुनाव में इसकी सप्लाई करती रही है. अब तक अरबों लोगों ने इसका इस्तेमाल किया है. इस पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है."

Indien Mumbai Wahl
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Mqbool

इस अमिट स्याही की सप्लाई करने वाली कंपनी मैसूर पेंट्स ने भी इस विवाद पर अपनी सफाई दी है. कंपनी के महाप्रबंधक (विपणन) एच. कुमार कहते हैं, "चुनाव आयोग की मांग के आधार पर हमने बेहतरीन क्वालिटी की स्याही की सप्लाई कर दी है. एकाध मतदान केंद्रों में शिकायत हो सकती है. लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है. इसके अलावा हमें जमीनी हकीकत के बारे में जानकारी नहीं है." ध्यान रहे कि यह कंपनी भारत के अलावा यूके, तुर्की, नेपाल, घाना, दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, रिपब्लिक आफ बेनिन, आइवरी कोस्ट और मलेशिया समेत कई देशों को इस स्याही की सप्लाई करती है.

राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ पंडित कहते हैं, "इस नीली स्याही पर हर चुनाव में लगते काले दाग या आरोप लोकतंत्र के हित में नहीं है. चुनाव आयोग को इन शिकायतों की जांच कर खामियों को दुरुस्त करने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में अंगुली पर स्याही लगाना ही बेमकसद हो जाएगा.”