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चुनाव के बाद बदल गई अमेरिकी राजनीति

४ नवम्बर २०१०

बुधवार की सुबह नींद से उठे अमेरिकियों को देश की राजनीति की एक बदली हुई तस्वीर देखने को मिली है. चुनाव के बाद का अमेरिका चुनाव के पहले जैसा नहीं रहा है. शासन करना राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए पहले जैसा आसान नहीं होगा.

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बदल गई अमेरिकी राजनीतितस्वीर: AP

इस बदले हुए नक्शे में अमेरिका की संघीय सरकार पर किसी एक पार्टी का नियंत्रण नहीं है. समस्याएं वही हैं, जो कल की रात बीतने से पहले थीं, लेकिन उनके समाधान के लिए सुझाए और अपनाए जाने वाले नुस्खों की लिखावट बेशक वह नहीं है, जो कल तक थी. 2012 में होने वाले, अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी एक बिल्कुल नई पृष्ठभूमि तैयार होती जान पड़ रही है.

किसी एक पार्टी से जुड़कर न चलने वाले वही मतदाता बराक ओबामा के राजनीतिक कार्यक्रम के खिलाफ एकजुट हो गए हैं, जिन्होंने दो वर्ष पहले उन्हें तगड़े बहुमत से जिताया था. रिपब्लिकनों के बहुमत वाली प्रतिनिधिसभा की इस नई तस्वीर के बीचोबीच नैन्सी पलोसी का चेहरा नहीं होगा. निचले सदन की अध्यक्षता अब शायद वर्तमान अल्पमत नेता जॉन बेनर संभालेंगे.

कितनी बुरी हार?

डेमोक्रैट शायद इस बात से आश्वासन हासिल कर सकें कि उनकी हार उतनी बुरी नहीं है, जितनी हो सकती थी. जबकि निचला सदन भारी बहुमत से रिपब्लिकनों के खेमे में चला गया है, सीनेट में डेमोक्रैटों ने बहुमत नहीं खोया है. यह और बात है कि वह इतना घट गया है कि ओबामा प्रशासन के लिए अपने कार्यक्रम लागू करना और कठिन हो जाएगा. मंगलवार के मतदान में सीनेट में बहुमत के नेता हैरी रीड अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गए और उन्होंने नई कांग्रेस में विचारधारा पर व्यावहारिकता को तरजीह देने का आग्रह किया है.

सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इस राजनीतिक उथल-पुथल के पीछे है मतदाताओं का बदहाल अर्थव्यवस्था को लेकर जारी गुस्सा. यह कि ओबामा सरकार और डेमोक्रैटों ने इस समस्या से निपटने के लिए सही और पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.

NO FLASH Proetste gegen Gesundheitsreform in Washington
स्वास्थ्य सुधारों का विरोधतस्वीर: picture alliance/dpa

टी पार्टी

गुस्से की इस आग में घी डालने का काम टी पार्टी आंदोलन ने किया है. टी पार्टी विद्रोहियों ने रिपब्लिकन मतदाताओं के उत्साह में नए प्राण फूंके और वह अर्थव्यवस्था की कमजोरी और ओबामा के स्वास्थ्यसेवा सुधार जैसे कार्यक्रमों के ख़िलाफ अलख जगाने में कामयाब हुए. लेकिन दूसरी ओर यही टी पार्टी आंदोलन अनेक स्थलों पर कई कमजोर और चरमवादी रिपब्लिकन उम्मीदवारों की नामजदगी का कारण भी बना. आंदोलन की धुर दक्षिणपंथी बोली की कीमत रिपब्लिकन पार्टी को कई महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में अपने प्रत्याशियों की हार से चुकानी पड़ी. साथ ही यह भी है कि टी पार्टी के असर के कारण नई कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी का कुल स्वरूप अधिक दक्षिणपंथी झुकाव वाला हो गया है.

ओबामा मुश्किल रास्ता

जो भी हो, यह साफ है कि ओबामा और डेमोक्रैटों को अब अपना कोई भी कार्यक्रम आगे बढ़ाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. स्वयं ओबामा और सीनेट में बहुमत के नेता रीड ने रिपब्लिकनों के साथ मिलकर काम करने की पेशकश की है. लेकिन स्वास्थ्यसेवा सुधार जैसे कार्यक्रमों को लेकर मौजूद विरोध की पृष्ठभूमि पर यह आसान नहीं होगा. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर होगा कि कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी क्या रुख अपनाती है. विशेष रूप से यह देखते हुए कि अगले दो वर्षों का समय 2012 में राष्ट्रपति के चुनाव की जमीन तैयार करने का दौर होगा. जाहिर है, रिपब्लिकन अपने मतदाताओं का आधार मज़बूत करने के लिए विरोध की नीति का सहारा ले सकते हैं. हालांकि उन्हें यह ध्यान भी रखना होगा कि अमेरिकी नागरिक वर्तमान सरकार और कांग्रेस की निष्क्रियता से बहुत नाखुश हैं.

जहां तक ओबामा के दूसरे कार्यकाल की बात है, फिलहाल उसकी तस्वीर बहुत उत्साहवर्धक दिखाई नहीं देती. ओबामा के साथी डेमोक्रैटों को कई राज्यों में बुरी तरह पछाड़ मिली है, जहां 2008 में ओबामा को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ था. ये राज्य हैं - वर्जीनिया, इंडियाना, ओहायो, पैन्सिल्वेनिया, मिशीगन, विस्कॉन्सिन और फ्लोरिडा.

अगले दो वर्ष

लेकिन 2012 अभी दो वर्ष दूर है. इस बीच बहुत कुछ बदल सकता है. काफी कुछ स्वयं ओबामा पर भी निर्भर होगा. इस बात पर कि क्या वह रिपब्लिकनों के साथ मिलकर काम कर सकेंगे. यह भी कहा जाता रहा है कि बीते दो सालों में राष्ट्रपति अपनी पार्टी के धुर वामपंथियों के हाथों मजबूर महसूस करते रहे हैं. आगे के दो वर्ष मतदाताओं को यह परखने का भी अच्छा अवसर देंगे कि रिपब्लिकन नेता अपने मतदाताओं को खुश करने और देश की समस्याओं से निपटने के दो उद्देश्यों के बीच कितना संतुलन बिठा सकते हैं.

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन

संपादन: महेश झा

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