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चुनौतियों भरी है स्किल डेवलपमेंट की राह

१५ जुलाई २०१५

प्रधानमंत्री ने बुधवार को अपनी जिस महात्वाकांक्षी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरूआत की है, उसकी राह चुनौतियों से भरी है. भारत में पहले भी ऐसे प्रयास हो चुके हैं, लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात ही रहा है.

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तस्वीर: Murali Krishnan

इस योजना के तहत अगले एक साल में 24 लाख लोगों को विभिन्न विषयों में प्रशिक्षण देकर उनको स्वरोजगार शुरू करने के लिए प्रोत्साहन देने की योजना है. देश में बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए यह योजना काफी आकर्षक और महात्वाकांक्षी लगती है. लेकिन अभी इसपर अमल के लिए काफी प्रयासों की जरूरत है.

इससे पहले वर्ष 2009 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने वर्ष 2022 तक 50 करोड़ों लोगों को विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षित करने के लिए स्किल डेवलपमेंट पर एक राष्ट्रीय नीति बनाई थी. इसके तहत त्रिस्तरीय ढांचा तैयार किया गया था जिसमें स्किल डेवलपमेंट पर प्रधानमंत्री की नेशनल कौंसिल, उसके बाद नेशनल स्किल डेवलपमेंट कोऑर्डिनेशन बोर्ड और फिर नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का स्थान था. कोऑर्डिनेशन बोर्ड को इस योजना के तहत विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों के साथ तालमेल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जबकि एनएसडीसी के जिम्मे ठोस योजना बना कर स्किल डेवलपमेंट के लिए धन जुटाने की खातिर निजी-सार्वजनिक भागीदारी माडल को बढ़ावा देने का काम था. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के उपाध्यक्ष एस. रामदोराई को अपना स्किल एडवाइजर बनाया था. लेकिन स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में समस्याएं अब भी जस की तस हैं. दरअसल, विभिन्न विभागों के बीच ठीक से तालमेल नहीं हो पाना और आईटीआई जैसी संस्थाओं और उद्योगों को इसमें सक्रिय भागीदारी के लिए तैयार नहीं कर पाना इस योजना की राह में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हुई.

अब मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने इसी ढांचे में फेरबदल करते हुए स्किल डेवलपमेंट के लिए एक नए मंत्रालय का गठन किया है. लेकिन अब भी स्किल डेवलपमेंट से संबंधित कई योजनाएं विभिन्न मंत्रालयों के पास लटकी हैं. वर्ष 2022 तक भारत में कामकाजी उम्र वाले लोगों की तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा होगी. व्यापार संगठन फिक्की और केपीएमजी ग्लोबल स्किल रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इनको समुचित तरीके से प्रशिक्षित किया गया तो यह लोग देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन इसकी राह में अभी कई चुनौतियां हैं. दरअसल पारंपरिक मानसिकता, अपनी जगह छोड़ने का इच्छुक नहीं होने और शुरूआती दौर में वेतन कम होने की वजह से छात्रों को प्रशिक्षण के लिए तैयार करना एक बड़ी चिंता है.

नियोक्ताओं को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उम्मीदवार ने नौकरी के दौरान स्किल विकसित किया है या फिर औपचारिक प्रशिक्षण से. उम्मीदवारों को मौजूदा नौकरियों की चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए जिस प्रशिक्षण की जरूरत है उसके लिए सही पार्टनर की तलाश भी अहम है. नौकरियों और युवा वर्ग की उम्मीदों के बीच व्याप्त खाई भी इस राह में एक प्रमुख बाधा है. आमतौर पर देखने में आया है कि ज्यादातर लोग जिस नौकरी में हैं उसी को जारी रखना चाहते हैं. इसकी वजह यह है कि नए प्रशिक्षण के बावजूद उनको बेहतर नौकरी या पैसे मिलने की कोई गारंटी नहीं होती. प्रशिक्षित युवाओं के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना भी सरकार के लिए एक चुनौती है. फिलहाल उद्योगों में स्किल्ड, सेमी-स्किल्ड और अनस्किल्ड वर्ग में अलग-अलग वेतनमान तय हैं. लेकिन प्रशिक्षण के स्तर के साथ इनको जोड़ना जरूरी है. अगर प्रशिक्षण के बावजूद वेतन-भत्ते नहीं बढ़े तो कोई भला स्किल डेवलपमेंट के बारे में क्यों सोचेगा.

लेकिन इन चुनौतियों से पार पाना असंभव नहीं है. देश के कुल श्रम बल में से महज दो फीसदी के पास औपचारिक स्किल प्रमाणपत्र हैं. ऐसे में सरकार व उद्योग को मिल कर ऐसे हालात तैयार करने होंगे कि लोग वोकेशनल ट्रेनिंग की ओर सहज ही आकर्षित हो सकें. कामगारों को प्रोत्साहित करने के लिए सूक्ष्म नीतियों की जरूरत है. सरकार को मानव-शक्ति से जुड़ी परियोजनाओं में स्किल्ड वर्करों की नौकरी का एक न्यूनतम कोटा तय कर देना चाहिए. इसे हर साल बढ़ाना जरूरी है. इससे स्किल्ड लोगों में यह भरोसा पैदा होगा कि किसी खास विधा में प्रशिक्षण के बाद उनके सामने करियर की नई राहें खुल जाएंगी. स्थानीय स्तर पर तमाम उद्योग कम से कम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि ड्राइवर, हाउसकीपिंग और सुरक्षा से जुड़े कर्मचारियों के पास स्किल प्रमाणपत्र हो. इसके साथ ही न्यूनतम वेतन पर पुनर्विचार कर इसे नेशनल स्किल्स क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क के तहत परिभाषित स्तर के बराबर ले जाने से भी लोगों को आकर्षित किया जा सकेगा.

अगर एनडीए सरकार ने भी वही गलतियां दोहराईं जो मनमोहन सिंह सरकार ने की थीं तो यह महात्वाकांक्षी योजना नई बोतल में पुरानी शराब ही बन कर रह जाएगी.

ब्लॉग: प्रभाकर