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समाज

खतरे में नहीं हैं किताबें

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ जनवरी २०२०

भीड़ के लिहाज से कोलकाता पुस्तक मेला दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है. आयतन के हिसाब से फ्रैंकफर्ट और लंदन पुस्तक मेले के बाद यह तीसरे नंबर पर है. एशिया का यह सबसे बड़ा पुस्तक मेला है.

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Indien Kolkata Buchmesse
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

कोलकाता के प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली सुमित्रा चटर्जी का कहना है, "डिजिटल तकनीक चाहे कितनी भी विकसित हो जाए, किताबों की अहमियत अपनी जगह जस की तस है. हाथों में पुस्तक लेकर पढ़ने से उसके प्रति जो लगाव महसूस होता है वह अहसास स्मार्टफोन, लैपटाप या टैब में पढ़ते हुए नहीं हो सकता." उनकी यह टिप्पणी किताबों की अहमियत बताती है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मेला कहा जाने वाला कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला 28 जनवरी से शुरू हो गया है और इसमें खरीददारों की भीड़ भी उमड़ने लगी है. सोमवार को मेले का उद्घाटन करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी लगभग यही बातें कहीं. साल-दर-साल बढ़ता मेले का टर्नओवर भी इसकी पुष्टि करता है. किताबों के कारोबार से जुड़े लोगों लोगों का मानना है कि डिजिटल क्रांति के बाद प्रकाशन उद्योग की चुनौतियां तो बढ़ी हैं. लेकिन साथ ही इससे गुणवत्ता बेहतर हुई है और कारोबार भी बढ़ा है.

44वां कोलकाता पुस्तक मेला

कोलकाता पुस्तक मेला इस साल तय दिन से एक दिन पहले 28 जनवरी को ही शुरू हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि 29 जनवरी को राज्य में सरस्वती पूजा मनाई जानी थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "इंटरनेट के मौजूदा दौर में भी पुस्तकों की काफी मांग है और यह हमेशा बनी रहेगी.” इस दौरान भारत में रूस के राजदूत कुदाशेव निकोलाए रिशातोविच भी उपस्थित थे. पुस्तक मेला आगामी नौ फरवरी तक चलेगा.

Indien Kolkata Buchmesse
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

रूस इस वर्ष पुस्तक मेले का थीम देश है. इसके अलावा संयुक्त राज्य, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, जापान, वियतनाम, फ्रांस, अर्जेंटीना, ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरु, आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश समेत 11 लैटिन अमेरिकी देश मेले में शिरकत कर रहे हैं. पुस्तक मेले के दौरान भारत व रूस में साहित्यिक आदान-प्रदान देखने को मिलेगा. मेले में रूस के कई जाने-माने साहित्यकार शामिल होंगे. कोलकाता में रूस के कौंसुल जनरल एलेक्सी इडामकिन कहते हैं, "रूस सबसे ज्यादा पढ़ने वाला देश है और बंगाल सर्वाधिक पढ़ने वाला राज्य. पुस्तक मेले में लगे हमारे स्टाल के जरिए कोलकाता के लोग रूसी साहित्य से वाकिफ होंगे.”

नौ फरवरी तक चलने वाले इस मेले में लगभग छह सौ स्टाल लगाए गए हैं. भीड़ के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है. आयतन के हिसाब से फ्रैंकफर्ट और लंदन पुस्तक मेले के बाद यह तीसरे नंबर पर है. लेकिन यह एशिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला तो है ही. पुस्तक मेला परिसर में सातवें कोलकाता लिटरेचर उत्सव का भी आयोजन किया जाएगा. इसमें जाने-माने लेखक, निदेशक, इतिहासकार, रंगमंच, फिल्म, संगीत व खेल से जुड़ी हस्तियां शिरकत करेंगी.

जस की तस है किताबों की अहमियत

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों या रूस के राजदूत कुदाशेव निकोलाए रिशातोविच या फिर मेले में उमड़ने वाली खासकर युवाओं की भीड़, एक बात पर इन लोगों में आम राय है कि इंटरनेट की अहमियत और पहुंच तेजी से बढ़ने के बावजूद किताबों का मह्तव कम नहीं हुआ है. मेले के आयोजक पब्लिशर्स एंड बुक सेलर्स गिल्ड के अध्यक्ष त्रिदिब कुमार चटर्जी बताते हैं, "कोलकाता पुस्तक मेले में साल-दर-साल बढ़ती बिक्री से साफ है कि किताबों की अहमियत कम नहीं हुई है. मेले में युवा तबके के लोगों की भीड़ ही सबसे ज्यादा है.” वह कहते हैं कि हर साल इस मेले का आकार, यहां आने वाली भीड़ और बिक्री का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. मेले में रोजाना औसतन ढाई करोड़ रुपए की किताबें बिक रही हैं. उनका कहना है कि यह आंकड़े हकीकत बयान करते हैं. चटर्जी ने बताया कि वर्ष 2019 में लगभग 22 करोड़ की पुस्तकें बिकी थीं. इस साल यह आंकड़ा 25 करोड़ के पार जाने की उम्मीद है.

हालांकि ऐसा नहीं है कि डिजिटल तकनीक के प्रसार की वजह से पुस्तक प्रकाशन उद्योग को चुनौतियों से नहीं जूझना पड़ा हो. कोलकाता के जाने-माने प्रकाशक देज पब्लिशिंग के सुधांशु शेखर दे कहते हैं, "हमें शुरुआत में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. मन में डर भी था कि कहीं डिजिटल हमले की वजह से यह उद्योग खत्म तो नहीं हो जाएगा. लेकिन उन चुनौतियों से निपटने के लिए उद्योग ने तकनीक और गुणवत्ता बेहतर की. नतीजा सामने है. पुस्तकों की बिक्री पहले के मुकाबले ज्यादा हो रही है.”

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तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

खतरे में नहीं हैं किताबें

बांग्ला के मशहूर प्रकाशक आनंद पब्लिशर्स के प्रबंध निदेशक सुबीर मित्र कहते हैं, "इंटरनेट से छपी हुई पुस्तकों को कोई खतरा नहीं है. हमारी बिक्री के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं.” वह कहते हैं कि इंटरनेट की बढ़ती पहुंच छपी हुई पुस्तकों के लिए वरदान साबित हुई है. इसके सहारे लोग घर बैठे आनलाइन पुस्तकें मंगा रहे हैं. लेकिन आखिर इसकी वजह क्या है? जब पुस्तकें इंटरनेट पर मुफ्त में मौजूद हैं तो लोग उनके लिए जेब क्यों हल्की करेंगे? इसका जवाब देती हैं कोलकाता विश्वविद्यालय की छात्रा सुरभि चटर्जी. वह कहती हैं, "छपी हुई हाथ में पुस्तक लेकर पढ़ने पर जो अहसास होता है वैसा ई-बुक्स पढ़ते समय नहीं होता.” महानगर के एक कालेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर धीरेन गांगुली भी इसकी पुष्टि करते हैं. वह कहते हैं, "छपी हुई पुस्तकों की लाइब्रेरी तो अब हर घर का हिस्सा बन चुकी है. जब जी चाहा, बुकशेल्फ से मनपसंद पुस्तक निकाल ली.”

भारत में सर्वेक्षण करने वाली संस्था नीलसन ने वर्ष 2018 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत दुनिया में किताबों का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है. यहां अंग्रेजी भाषा में ही नौ हजार से अधिक प्रकाशक हैं जो साल भर में 90 हजार से ज्यादा किताबें छापते हैं. वर्ष 2018 में ही अमेरिकी जर्नल ‘इलेक्ट्रॉनिक मार्केट्स' में छपे एक अन्य सर्वेक्षण में कहा गया था कि युवा पीढ़ी भी ई-रीडर्स के बजाय छपी हुई किताबों को ज्यादा तवज्जो देती है और उनमें किताबों के प्रति लगाव अधिक उम्र के लोगों के मुकाबले ज्यादा है.

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