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छात्रों को नहीं लुभा रहा आईटी

२६ जनवरी २०१३

कभी इंजीनियरिंग के बेहतरीन छात्रों को आकर्षित करने वाला आईटी उद्योग अपना आकर्षण खो रहा है. युवा इंजीनियर उच्च शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं.

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तस्वीर: AP

इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को हाल तक आईटी यानी सूचना तकनीक का क्षेत्र काफी लुभावना लगता था. यह कहें तो बेहतर होगा कि इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद किसी आईटी कंपनी में नौकरी पाना ज्यादातर छात्रों का सपना होता था. लेकिन अब इसका आकर्षण तेजी से घट रहा है. इस क्षेत्र की कंपनियों के आकर्षक पैकेज भी भारत के बेहतरीन इंजीनियरिंग कालेजों के होनहार छात्रों को नहीं लुभा पा रहे हैं. ऐसे तमाम छात्र अब आईटी कंपनी में नौकरी की बजाय मास्टर डिग्री के लिए जरूरी ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) को तरजीह दे रहे हैं.

लेकिन आखिर इन छात्रों के आईटी क्षेत्र से परहेज करने की वजह क्या है ? यादवपुर विश्वविद्यालय में इलेट्रिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र सुमित कांजीलाल कहते हैं, "साफ्टवेयर मेरी खासियत नहीं है. मैं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में काम करना चाहता हूं ताकि चार साल के दौरान हासिल प्रशिक्षण का बेहतर इस्तेमाल कर सकूं." वह बताते हैं कि आईटी कंपनियां पैसे तो ठीक दे रही हैं. लेकिन वहां काम से संतुष्टि नहीं मिलेगी. इसलिए सुमित गेट के जरिए सरकारी कंपनियों में नौकरी हासिल करना चाहते हैं. ऐसा नहीं भी हुआ तो गेट से उच्च शिक्षा के दरवाजे तो खुल ही जाएंगे.

Fachkräften aus Indien
सिर्फ आईटी ही नहीं...तस्वीर: picture-alliance/dpa

सुमित के सहपाठी शिलादित्य कहते हैं, "आईटी क्षेत्र में कुछ दिनों बाद कुछ नया करने को नहीं बचता. कुछ साल बाद जीवन नीरस हो जाता है." यही वजह है कि टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) का बढ़िया पैकेज छोड़ कर वह गेट की तैयारी कर रहे हैं.

बदल गया समय

पहले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां कैंपस इंटरव्यू के जरिए ही नौकरियां देती थीं. लेकिन अब उहोंने ऐसा करने की बजाय गेट में बढ़िया अंक हासिल करने को ही चयन का पैमाना बना लिया है. यही वजह है कि ज्यादातर छात्र गेट की ओर मुड़ रहे हैं. आंकड़े खुद इसकी गवाही देते हैं. पिछले साल 7.8 लाख छात्र गेट की परीक्षा में शामिल हुए थे. लेकिन इस साल यह आंकड़ा बढ़ कर 11.5 लाख तक पहुंच गया है. तमाम इंजीनियरिंग कालेजों में आईटी कंपनियां बड़े पैमाने पर छात्रों को नौकरी देती हैं. लेकिन आम धारणा यह है कि वहां काम के मुकाबले पैसे नहीं मिलते और जिंदगी एक ढर्रे में बंध जाती है.

यादवपुर के ही केमिकल इंजीनियरिंग छात्र कृष्णेंदु बनर्जी के मुताबिक, गेट के अंकों के आधार पर चयन की इस नई प्रक्रिया ने छात्रों के सामने नए विकल्प खोल दिए हैं. पहले आईटी क्षेत्र में जाना उनकी मजबूरी थी. दूसरा कोई विकल्प नहीं था. वह कहते हैं, "मैंने साफ्टवेयर इंजीनियर बनने के लिए केमिकल इंजीनिरिंग की डिग्री नहीं ली है. आईटी क्षेत्र अपनी चमक खो रहा है. इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरियों का परिदृश्य बदल रहा है. मैं किसी नवरत्न कपंनी में नौकरी हासिल करना चाहता हूं."

Luftverschmutzung in Indien
...इंजीनियरों के सामने अब बिजली, पर्यावरण...तस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/GettyImages

बंगाल इंजीनियिंरग एंड साइंस यूनिवर्सिटी (बेसू) के सिविल इंजीनियरिंग छात्र अरित्रो दत्त कहते हैं, "मेरी दिलचस्पी डिजाइन तैयार करने में है. लेकिन मुझे जिन नौकरियों के आफर मिले उनमें दूसरा काम करना था. इसलिए मैंने गेट के जरिए मास्टर डिग्री हासिल करने का फैसला किया है."

यादवपुर के प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास कहते हैं कि परिदृश्य पूरी तरह नहीं बदला है. उनका दावा है कि निजी इंजीनियरिंग कालेजों में बेहतर पढ़ाई नहीं होने की वजह से छात्रों को नौकरी नहीं मिलती. इसलिए वही लोग गेट को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं, ताकि बढ़िया संस्थानों से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद बेहतर नौकरी मिल सके. विश्वास कहते हैं, "इंजीनियरिंग कालेजों में शिक्षकों के 40 प्रतिशत पद खाली हैं. मास्टर डिग्री होना इन पर बहाली की अनिवार्य शर्त है. छात्रों के गेट के प्रति आकर्षित होने की यह भी एक प्रमुख वजह है. इंजीनियरिंग कालेजों में शिक्षकों का वेतन किसी भी सरकारी कंपनी के बराबर है."

लेकिन उसी विश्वविद्यालय के एक अन्य प्रोफेसर डी.के. घोष कहते हैं, "अब विश्वविद्यालय के 70 से 80 प्रतिशत छात्र गेट की परीक्षा दे रहे हैं. यह छात्र अपने क्षेत्र में महारत हासिल करना चहते हैं. कोई विकल्प नहीं होने की वजह से अब तक तमाम छात्र आईटी कंपनियों की नौकरी में चले जाते थे."

Indien Wirtschaftskraft
...और ऑटो उद्योग जैसे नए विकल्प भी हैं.तस्वीर: Reuters

बेसू के एक छात्र मंसूर आलम ने कैंपस इंटरव्यू में मिली दो नौकरियां छोड़ दी हैं. वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने का मन बना रहे हैं. मंसूर कहते हैं, "आईटी क्षेत्र में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है."

छात्रों का शोषण

शिक्षाविदों का कहना है कि आईटी कंपनियों में छात्रों का शोषण ज्यादा होता है. इसलिए अब इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले ज्यादातर छात्र या तो एम.टेक की पढ़ाई की ओर बढ़ रहे हैं या फिर एमबीए की. उसके बाद उनको बेहतर नौकरियां मिल जाती हैं. आईटी कंपनियों में करियर की बेहतरी के मौके बेहद सीमित हैं.

जाने-माने शिक्षाविद सुनंद सान्याल कहते हैं, "चार साल की जी-तोड़ मेहनत के बाद आईटी कंपनियां छात्रों को महज 20-25 हजार रुपये के वेतन पर नौकरी देती हैं. हर महीने इससे ज्यादा खर्च तो उनकी इंजीनिरिंग की पढ़ाई पर हो चुका होता है." वह कहते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनियां भी अब गेट के स्कोर के आधार पर ही नौकरी देती हैं. बेहतर करियर और स्थायित्व की तलाश इन छात्रों को नई राह पर ले जा रहा है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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