1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

छुट्टियों में निर्वाण की तलाश

३१ जुलाई २०१३

सूर्योदय से पहले ही आंखें खुल जाती हैं, रात और दिन एक भिक्षु की तरह, बिना बोले आप अपने मन से उमड़ रही भावनाओं का सामना करते हैं और आपके अंदर क्रोध, तनाव, झुंझलाहट और निराशा पिघल जाते हैं. ऐसा सचमुच हो सकता है.

https://p.dw.com/p/19Hip
तस्वीर: S.Kodikara/AFP/Getty Images

दफ्तर में राजनीति, नए फ्लैट के लिए कर्ज की चिंता और ढेरों निजी परेशानियों में दिमाग आम तौर पर उलझा रहता है. कई बार दिमाग सोते वक्त भी इसी तनाव में फंसा रहता है, बार बार वही बातें सोचता है, हल ढूंढने की कोशिश करता है तो कभी और परेशानियां खड़ी कर देता है. फिर इन सब से दूर होने के लिए छुट्टी लेने का विचार आता है और छुट्टी में वही पार्टी और डांस, शराब और फिल्में. लेकिन ऐसा करने से परेशानियां कुछ देर तक भुलाई जा सकती हैं, वह खत्म नहीं होतीं और तनाव के साथ साथ यह जीवनशैली आपको थका भी देती है.

तो दीवार पर सिर पटकें?

क्या तनाव कम किया जा सकता है. शायद नहीं, लेकिन तनाव से जूझने का तरीका बदला जा सकता है, मन में शांति लाकर. म्यांमार के बौद्ध पगोडों में इसी तरह की कोशिश हो रही है. छुट्टी लेकर आए पर्यटक समुद्रतट पर पार्टी के बजाय मन शांत कर रहे हैं. ब्रिटेन के कला इतिहास विशेषज्ञ रूपर्ट ऐरोस्मिथ कहते हैं, "शुरुआत में तो ऐसा लगता है जैसे दीवार पर सिर पटक रहे हैं क्योंकि आपका मन शांत ही नहीं हो पाता है."

Maday Island Birma Shwedagon Pagode
तस्वीर: picture alliance/ZUMAPRESS.com

ऐरोस्मिथ ने 45 दिन बिना कुछ बोले बिताया है. वह रंगून के पास च्यानमाय येकथा मठ में रहे. उन्होंने मठ के दूसरे लोगों की तरह कपड़े पहने और दिनचर्या भी काफी कुछ भिक्षुओं जैसी रखी. सुबह साढ़े तीन बजे उठते और दिन भर ध्यान करते. मठ के आसपास हरे भरे खेत हैं और चिड़ियों की आवाज के अलावा कुछ भी नहीं सुनाई देता. सुबह साढ़े 10 बजे दिन का अंतिम खाना परोसा जाता है. शाम को फिर वह सोने चले जाते हैं. उनका कमरा सादा है और वह एक चटाई पर सोते हैं. इस तरह के ध्यान को विपासना कहते हैं.

डिजनीलैंड नहीं

यहां चमक दमक तो नहीं लेकिन ऐरोस्मिथ मानते हैं कि अगर आप अपने आप को जानना चाहते हैं और पता करना हो कि आपका मन कैसे काम करता है तो यहां आना फायदेमंद होगा. म्यांमार आ रहे पर्यटकों को खास ध्यान करने के लिए वीजा आसानी से मिल जाता है.

मठों में पुरुष और महिलाओं के लिए अलग अलग जगह है. यहां एक हफ्ते से लेकर कई महीनों तक रहा जा सकता है. इस वक्त दुनिया भर से 1000 लोग म्यांमार आते हैं जबकि 50 विदेशी वहां मठों में भिक्षु बन कर रहने लगे हैं. रंगून में महासी मेडिटेशन सेंटर के भिक्षु भदंत कहते हैं, "जब सरकार ने बाजार खोला तो कई विदेशी ध्यान करने आए. इस साल और आ रहे हैं." लेकिन हैरानी वाली बात है कि मठों में आने वाले विदेशियों को खाना स्थानीय लोग खिलाते हैं क्योंकि मठ अपना खर्चा स्थानीय लोगों के दान से निकालते हैं. दान करना पुण्य माना जाता है लेकिन ऐरोस्मिथ जैसे पर्यटक इससे खुश नहीं क्योंकि स्थानीय लोग आम तौर पर गरीब होते हैं और उनके पास खुद खाने को कम होता है.

शेयर बाजार से निर्वाण तक

Tourist Myanmar Pagode
तस्वीर: AFP/Getty Images

लेकिन म्यांमार के बौद्ध नेताओं की आलोचना भी हो रही है. आरोप है कि हाल में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को बौद्ध नेताओं ने उकसाया. पर ऐरोस्मिथ को पक्का विश्वास है कि कुछ लोगों की वजह से पूरे धर्म को या म्यांमार के बौद्ध भिक्षुओं को खारिज नहीं करना चाहिए. "मैंने तो खुद कभी किसी बौद्ध भिक्षु को यहां हिंसक होते नहीं देखा है. वह ध्यान, अहिंसा और हर जीव के लिए खुशहाली की कामना करते हैं."

निर्वाण की राह पर चल रहे भिक्षु तपस्या के अलावा मोहमाया से हटकर सारे जीवों से प्यार की दुहाई देते हैं. निर्वाण का शाब्दिक अर्थ तो "बुझा देना" होता है लेकिन बौद्ध धर्म में इसका अर्थ होता है अपने मन को ऐसी स्थिति में लाना जिसमें कामनाएं खत्म हो जाएं और जिससे दुखों से छुटकारा मिल सकता है.

जापान से आए शिगेनारी मोरिया पहले शेयर बाजार के चक्रव्यूह में उलझे थे. अब वे म्यांमार में धूप और वहां के लजीज खाने का मजा ले रहे हैं और मन को शांत कर रहे हैं, "म्यांमार में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा धर्म, यानी सत्य है." तीन महीने के लिए म्यांमार आए मोरिया अब अपना पूरा जीवन निर्वाण की तलाश में लगाना चाहते हैं.

एमजी/एजेए (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी