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समाज

जनसंख्या विस्फोट नहीं अब उसमें गिरावट पर चिंता

१० सितम्बर २०१९

व्यापार जगत की प्रमुख हस्तियों और विश्लेषकों का कहना है कि अगर आने वाली सदी में विश्व की जनसंख्या कम होती है तो उसका बाकी देशों की तुलना में चीन पर बहुत बुरा असर होगा. इस नौबत से बचने के लिए क्या करना होगा, जानिए.

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Jack Ma / Ma Yun Auftritt beim WEF in Davos 23.01.2015
चीनी ई-कॉमर्स कंपनी के संस्थापक जैक मा मानते हैं आबादी में गिरावट को बड़ा खतरा. तस्वीर: F. Coffrini/AFP/Getty Images

टेस्ला के सीईओ एलॉन मस्क और अलीबाबा के संस्थापक जैक मा, ऐसे दो बेहद सफल उद्यमी जब पहली बार एक सार्वजनिक मंच पर बहस करने के लिए आए तो दिखा कि वे लगभग हर विषय पर अलग राय रखते हैं. केवल एक चीज जिस पर दोनों अरबपति कारोबारी सहमत हुए वह इस सवाल का जवाब था कि भविष्य में दुनिया के सामने खड़ी सबसे बड़ी समस्या क्या होगी? दोनों मानते हैं, वह समस्या होगी पर्याप्त लोगों का ना होना.

मस्क ने कहा, "ज्यादातर लोगों को लगता है कि धरती पर बहुत सारे लोग हो गए हैं. लेकिन असल में यह एक पुराना नजरिया है." शंघाई में अगस्त में आयोजित एक कार्यक्रम में वे जैक मा के साथ मंच पर बैठे थे. उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि अगले 20 सालों में ही जो सबसे बड़ी समस्या दुनिया के सामने होगी, वह जनसंख्या विस्फोट नहीं बल्कि जनसंख्या में भारी गिरावट की होगी. विस्फोट नहीं  गिरावट."

मस्क की इस बात से जैक मा पूरी तरह सहमत हैं. मा ने मस्क को संबोधित करते हुए कहा, "जनसंख्या की समस्या बहुत बड़ी होने वाली है. चीन में 1.4 अरब लोग, सुनने में ज्यादा लगते हैं लेकिन अगले 20 सालों में जनसंख्या कम होने से बहुत बड़ी परेशानियां खड़ी हो जाएंगी. जनसंख्या घटने की दर और तेज हो जाएगी. आप इस भारी गिरावट को पतन कहते हैं तो मैं इस पर आपसे सहमत हूं."

China Familie mit Baby in Nanjing
2016 में चीन में 'एक बच्चा नीति' खत्म होने पर भी नहीं बढ़ी बच्चे पैदा होने की दर.तस्वीर: picture-alliance/dpa/Yu Ping

यह डराने वाली भविष्यवाणियां उन जनसंख्या विशेषज्ञों के विचारों से भी मेल खाती हैं जिनका तर्क है कि दुनिया में लोगों की आबादी का इस सदी के अंत तक बढ़ना बंद हो जाएगा. वे इसकी बड़ी वजह विश्व भर में गिरती प्रजनन दर को बताते हैं. फिलहाल विश्व भर में केवल अफ्रीका ही है जहां बाकी बची 21वीं सदी के सालों में अच्छी प्रजनन दर बरकरार रहने का अनुमान है.

प्यू रिसर्च सेंटर का पूर्वानुमान है कि सन 2100 तक विश्व की कुल आबादी 10.9 अरब होगी और उसमें सालाना वृद्धि दर 0.1 फीसदी से भी कम होगी. सन 1950 से अब तक विश्व की आबादी 1 फीसदी से 2 फीसदी सालाना की दर से बढ़ती आई है, नतीजतन कुल जनसंख्या 2.5 अरब से 7.7 अरब पर पहुंच गई. सन 2031 में चीन की आबादी अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने का अनुमान है जबकि जापान और दक्षिण कोरिया की आबादी 2020 के बाद से ही कम होने लगेगी. भारत की आबादी भी सन 2059 तक ही बढ़ेगी और 1.7 अरब के अपने सबसे ऊंचे स्तर को छुएगी.

आबादी में गिरावट चीन के लिए सबसे बड़ी समस्या क्यों

जैक मा ने बताया कि चीन में जनसंख्या का गिरना बाकी देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा असर डालेगा. आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो चीन ही दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. एक प्रतिष्ठित चीनी डेमोग्राफर यी फुशियान का मानना है कि असल तस्वीर को कम कर के दिखाया जा रहा है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मैडिसन में वरिष्ठ वैज्ञानिक और "बिग कंट्री विद एन एम्पटी नेस्ट" के लेखक का मानना है कि चीन में असल में आधिकारिक आंकड़े से करीब 11.5 करोड़ कम लोग रहते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "चीन अभी ही जनसंख्या के मामले में भारत से पिछड़ गया है. चीन की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिण और कूटनीतिक नीतियां सब की सब गलत जनसांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित हैं."

तीन दशक तक चीन ने देश में जनसंख्या पर काबू पाने के लिए "वन चाइल्ड पॉलिसी" चलाई. सन 2016 में इसमें छूट मिली और दो बच्चों वाली नीति का रास्ता खुला. लेकिन इसके बावजूद औसत प्रजनन दर गिरती ही रही. नीति में राहत मिलने के बाद 2016 में 1.79 करोड़ जन्म दर्ज हुए. 2017 में यह गिर कर 1.72 करोड़ और 2018 में और कम होकर 1.52 करोड़ रह गए. सन 1949 में चीन की स्थापना के समय से लेकर यह तीसरी सबसे कम जन्म दर रही.

लेबर फोर्स में युवा ही युवा

पिछले चार दशकों में चीन में हुए तेज आर्थिक विकास के पीछे युवा लोगों की मेहनत का बड़ा हाथ है. अब वे भी बुढ़ापे की ओर बढ़ चुके हैं और वर्कफोर्स में बुजुर्गों की तादाद काफी बढ़ चुकी है. सन 2017 में वर्कफोर्स में 20-64 के आयुवर्ग के छह लोगों के अनुपात में 65 साल से ऊपर वाला एक वरिष्ठ नागरिक था. सन 2039 तक यह अनुपात 2 कामगारों का और  2050 तक 1.6 कामगारों का हो जाएगा. यी फुशियान बताते हैं, "ना तो सामाजिक सुरक्षा है, ना ही पारिवारिक सुरक्षा और पेंशन का संकट भी सिर पर है - यह सब मिला कर एक बड़ी मानवीय त्रासदी पैदा होने वाली है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं छह-सात साल ज्यादा जीती हैं. जनसंख्या में कमी के कारण वे और भी ज्यादा प्रभावित होंगी."

जाहिर है और बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. लेकिन पढ़ाई का खर्च और शहरों में बढ़ते खर्चों के चलते विकसित देशों में वैसे भी लोग कम बच्चे पैदा करते हैं. खासकर महिलाओं को बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करना और और उनके पालन पोषण में हर तरह की सुविधा का इंतजाम करने से बात बन सकती है. 2018 में पहली बार ऐसा हुआ कि धरती पर 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 5 साल से कम वालों से ज्यादा थी. बच्चे पैदा करने के अलावा दूसरा तरीका बुजुर्गों को लंबे समय तक वर्कफोर्स में बनाए रखने का है. इसके अलावा बाहर से लोगों के आकर बसने यानि आप्रवासन से भी मदद मिल सकती है, जो कि चीन में फिलहाल न के बराबर है.

रिपोर्ट: क्लिफर्ड कूनन/आरपी

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