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समाज

जन्नत जैसे दिखने वाले स्विट्जरलैंड का बदरंग अतीत

९ फ़रवरी २०२१

स्विट्जरलैंड का नाम लेते ही एक रईस देश की छवि सामने आती है जहां सब कुछ किसी परीकथा जैसा सुंदर है. लेकिन इस सुंदरता के पीछे एक ऐसा अतीत है जिस पर आज भी कई लोग शर्मिंदा हैं.

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Schweiz Matterhorn
तस्वीर: picture-alliance/robertharding

स्विट्जरलैंड हमेशा से कहता रहा है कि वह दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में से एक है. इस बात का उसे खूब गर्व भी है. पर क्या वाकई ऐसा है? यह सच है कि मध्य युग में भी वहां लोग साल में एक बार जुटा करते थे और समाज के निम्न वर्ग वाले भी बड़े बड़े फैसलों के लिए अपना मत दिया करते थे. लेकिन ये सब पुरुष थे. सदियों तक वहां वोट देने की परंपरा जारी रही. लेकिन 1971 तक महिलाओं को इससे दूर रखा गया. उन्हें महज पांच दशक पहले ही वोट देने का अधिकार मिला.

यहां तक कि स्विट्जरलैंड यूरोप के उन देशों की सूची में है जहां महिलाओं को यह अधिकार सबसे देर से मिला है. यूरोप में सबसे पहले फिनलैंड ने 1906 में महिलाओं को यह हक दिया था. 1918 से जर्मनी में भी महिलाएं वोट देने लगी थीं. तो फिर स्विट्जरलैंड को इतना वक्त क्यों लग गया? स्विट्जरलैंड की सबसे जानी मानी महिला कार्यकर्ता सिटा कुइंग इसका जवाब देती हैं, "इसकी वजह सरकार नहीं है. संसद भी नहीं है. इसकी वजह स्विट्जरलैंड के लोग हैं, वे पुरुष हैं जो फैसला लेने की हालत में थे."

Schweiz Frauenstimmrecht Marsch auf Bern 1969
1969 में अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उत्तरी महिलाएं तस्वीर: KEYSTONE/picture alliance

स्विट्जरलैंड का रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक समाज

67 वर्षीय कुइंग का जन्म स्विट्जरलैंड के एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ था. वह अपने परिवार की पहली महिला थीं जो यूनिवर्सिटी तक पहुंच सकीं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने बताया कि महिलाओं को अपना अधिकार हासिल करने के लिए इस बात का इंतजार करना पड़ा कि कब पुरुष का बहुमत उनके लिए खड़ा होगा.

महिला विषयों की जानकार इजाबेल रोनर ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया कि कई अन्य देशों की तरह स्विट्जरलैंड भी एक पितृसत्तात्मक समाज था जहां घर और बाहर को साफ साफ अलग रखा जाता था. राजनीति और सेना में पुरुष काम करते थे और घर में औरतें. 1848 में जब देश का संविधान लिखा गया तो उसमें सिर्फ पुरुषों को ही वोट करने का अधिकार दिया गया. रोनर कहती हैं, "आप लोकतंत्र की तो बात कर ही नहीं सकते, जब आप एक ऐसे समाज की बात कर रहे हैं जहां 50 फीसदी से ज्यादा लोगों को राजनीति और कानून में हिस्सा लेने का अधिकार ही नहीं है. 1971 से पहले तक कानून बनाते हुए महिलाओं के बारे में सोचा ही नहीं जाता था और कई बार तो ये कानून महिला विरोधी भी होते थे."

1960 का वो क्रांति वाला दशक

1960 के दशक में स्विट्जरलैंड में महिलाओं ने वोट देने के अधिकार के लिए आवाज उठानी शुरू की. देश के कुछ हिस्सों में वे राजनीति में सक्रिय होती भी दिखीं लेकिन ज्यादातर हिस्सों में ऐसा नहीं था. यह वह दौर था जब पश्चिमी देशों में कई तरह के प्रदर्शन चल रहे थे. अमेरिका में लोग वियतनाम युद्ध के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, अश्वेत लोगों के अधिकारों की बातें हो रही थीं और आसपास के देशों में युवा क्रांति ला रहे थे. उस वक्त स्विट्जरलैंड के अलावा यूरोप में लिष्टेनश्टाइन और पुर्तगाल ही वे देश थे जहां महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं था.

रोनर बताती हैं, "स्विट्जरलैंड के लिए यह शर्मिंदगी की बात थी कि जो देश खुद को सबसे पुराना लोकतंत्र कह रहा था वहां आधी आबादी लोकतंत्र का हिस्सा ही नहीं थी." यह वह जमाना भी था जब "यूरोपियन कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स" लिखा जा रहा था और स्विट्जरलैंड की इसमें भी भागीदारी थी. एक तरफ वह महिलाओं को अधिकार नहीं दे रहा था और दूसरी ओर मानवाधिकारों की बात कर रहा था. इस दोगलेपन के चलते 1969 में देशव्यापी प्रदर्शन हुए. रोनर बताती हैं, "महिलाओं ने अब ठान लिया था कि पुरुषों को अपनी आवाज सुनानी है. वे दिखा रही थीं कि वे गुस्से से भरी हुई हैं."

महिलाओं के साथ "गुलामों" जैसा व्यवहार

1971 में आखिरकार उनकी जीत हुई. स्विट्जरलैंड के पुरुषों ने एक रेफरेंडम में अपनी पत्नियों, माओं और बेटियों को वोट का अधिकार दे दिया था. हालांकि देश का एक हिस्सा था जहां महिलाएं रेफरेंडम हार गई थीं. स्विट्जरलैंड में राज्यों को कैंटॉन का नाम दिया गया है. 26 में से एक कैंटॉन आपेनसेल इनेरहोडेन में महिलाओं को बीस साल और संघर्ष करना पड़ा. 1991 में जाकर वे अपना हक हासिल कर पाईं.

सिटा कुइंग इसे सिर्फ शुरुआत भर बताती हैं, "जाहिर है, राजनीतिक अधिकार जरूरी हैं. लेकिन हमें गर्भपात के अधिकार के लिए लड़ना पड़ा, हमें गर्भ निरोधन के लिए लड़ना पड़ा, हम कैसे जिएंगी, क्या पढ़ेंगी. हमें महिलाओं और बच्चों की आर्थिक स्थिति बदलने के लिए आवाज उठानी पड़ी. न्याय के लिए, सामाजिक बदलाव के लिए, हिंसा के खिलाफ हमने आवाज उठाई. और मैं स्विट्जरलैंड के इस पूरे संघर्ष का हिस्सा रही हूं."

Schweiz Frauenstimmrecht Marsch auf Bern 1969
1969 की क्रांति ने बदला स्विट्जरलैंड को तस्वीर: KEYSTONE/picture alliance

स्विट्जरलैंड में ऐसा कानून था जिसके तहत शादीशुदा महिलाओं को अपना खुद का बैंक अकाउंट रखने की अनुमति नहीं थी. उन्हें अपने पति से इसके लिए स्वीकृति लेनी पड़ती थी. वे कहां रहेंगी, इसका फैसला भी वे खुद नहीं ले सकती थीं. रोनर इसे "गुलामी" का नाम देती हैं क्योंकि शादी होते ही महिलाओं से उनके सभी अधिकार छीन लिए जाते थे. इस कानून का बदलना स्विट्जरलैंड के इतिहास में सबसे अहम पड़ावों में से एक माना जाता है. कुइंग कहती हैं कि ऐसा सिर्फ इसीलिए मुमकिन हो सका क्योंकि महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला. अगर पुरुष ही फैसले लेते रहते तो महिलाओं को कभी उनके हक नहीं मिल पाते.

50 साल का सफर 

आज इस अधिकार मिलने के 50 साल बाद स्विट्जरलैंड में महिलाओं का क्या हाल है? यूरोप के अन्य देशों से तुलना की जाए तो हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. महिला और पुरुषों को समान अधिकार देने में स्विट्जरलैंड अब भी काफी पीछे है. 2019 में #MeToo मूवमेंट के तहत महिलाएं एक बार फिर सड़कों पर उतरीं. उन्होंने महिलाओं को कम वेतन मिलने, घर के काम के लिए कोई आर्थिक सहयोग ना मिलने और राजनीति में कम भागीदारी जैसे मुद्दे उठाए.

रोनर का कहना है कि स्विट्जरलैंड में आज भी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से महिलाओं के पास समान अधिकार नहीं हैं. लेकिन वे यह भी मानती हैं कि देश में सुधार हो रहा है. राजनीति में महिलाएं 42 फीसदी पदों पर हैं. कुछ दशकों पहले इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. उनका कहना है, "1971 में पहल हुई थी एक समान समाज बनाने की. (50 साल बाद) वह संघर्ष खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अभी तो बस शुरुआत ही है."

रिपोर्ट: ऑलिवर जीवकोविक/आईबी

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