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जबर्दस्त भीड़ ने मक्का में बढ़ाई कीमतें

१४ नवम्बर २०१०

रहने की जगह की किल्लत और हाजियों की बढ़ती भीड़ से मक्का में कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं. पांच सितारा होटलों से लेकर सरकारी सब्सिडी लेकर हज करने आए गरीब हाजियों तक को इस साल कम से कम 15 फीसदी ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है.

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तस्वीर: dpa

दुनिया की 1.6 अरब मुस्लिम आबादी के लिए जिंदगी के सबसे जरूरी कामों में एक हज करना भी है. मेजबान सउदी अरब हर साल 25 लाख लोगों को ही अपने घर बुलाने में सक्षम है. ऐसे में ऊंची कीमतें भी बढ़ती मांग पर कोई असर नहीं डालतीं. मुंबई के एक ट्रैवल एजेंट शाह नवाज बताते हैं, "मक्का और मदीना में घर का किराया लगातार बढ़ रहा है, खाना महंगा हो गया है. लेकिन वहां जाने की ख्वाहिश रखने वालों की तादाद में कोई कमी नहीं है." इस्लाम धर्म मानने वालों के लिए जिंदगी में कम से कम एक बार हज करना जरूरी माना गया है.

Flash-Galerie Massenpanik in Mekka
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

बांग्लादेश के धार्मिक मामलों के मंत्री अनवर हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि विमान किराया और मक्का में रहने का खर्च लगातार बढ़ रहा है. इसके अलावा इंश्योरेंस और खाने पर भी अब ज्यादा खर्च करना पड़ता है.

सउदी अरब से आने वाले स्थानीय 2 लाख यात्रियों के लिए तो कीमतें करीब 20 फीसदी तक बढ़ गई हैं. पांच दिनों के लिए एक टेंट में रहने और दोनों वक्त खाने में गोश्त चावल परोसने वाली कंपनी यात्रियों से कम से कम 40 हजार रुपये वसूल रही है. अगर मीना शहर में कोई अपार्टमेंट ले तो 90 हजार रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं. सबसे बड़ी समस्या है रहने की जगह की. सरकारी सब्सिडी वाले पैकेज टूर में आने वाले यात्रियों को ज्यादातर टेंट में ही जगह मिलती है.

BdT Flughäfen in Bangkok weiter besetzt
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

ऐतिहासिक मस्जिद के जितने करीब रहने की जगह होगी कीमत उतनी ज्यादा. मस्जिद से सटे इलाके में बने लग्जरी होटलों में तो एक दिन के कमरे का किराया 45000 रुपये तक है. रहने की सबसे सस्ती जगह पवित्र मस्जिद से करीब साढ़े तीन किलोमीटर दूर तक हो सकती है जबकि सबसे नजदीक अब मस्जिद से बस 100 मीटर की दूरी पर भी रह सकते हैं.

सामान्य हज यात्रा तो बस पांच दिन की होती है जो इस बार 14 नवंबर से 18 नवंबर तक है लेकिन यहां आने वाले हाजी यहां कम से कम दो हफ्ते तो रुकते ही हैं. ऐसे लोग भी कम नहीं जो दो दो महीने यहीं रहते हैं. रहने खाने के स्तर के हिसाब से हजारों डॉलर का खर्चा एक शख्स के आने जाने पर आता है. ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देशों की सरकारें हाजियों को सब्सिडी के जरिए सस्ती यात्रा का विकल्प मौजूद कराती हैं. भारत से इस साल 1 लाख 75 हजार यात्री मक्का जा रहे हैं इनमें से करीब 80 फीसदी यात्रियों को सब्सिडी वाली सस्ती विमान यात्रा की सुविधा मिलेगी. सरकारी हज कमेटी 45 दिनों के लिए यात्रा का आयोजन करती है और इसका खर्च हर यात्री पर करीब 1 लाख 20 हजार रुपये आता है. निजी ऑपरेटर इसी यात्रा के लिए यात्रियों से करीब 3 लाख रुपये वसूलते हैं. हज कमेटी के अधिकारी बताते हैं, "भारत से जाने वाले यात्रियों के हज का खर्च हर साल तीन से पांच फीसदी बढ़ जाता है. अगर दूसरे देश से जाएं तो यह खर्च काफी कम है."

अब इंडोनेशिया को ही देखिये, जो इस साल 2 लाख 20 हजार यात्रियों को मक्का भेज रहा है. कीमतों में इजाफा होने के बावजूद यहां से सरकारी दर पर यात्रा करने वाले लोगों के खर्च पर असर नहीं पड़ा है. सरकारी दर से इंडोनेशिया जाने वाले हर यात्री को करीब 1 लाख 42 हजार रुपये देने पड़ते हैं. इनमें से सरकार हर यात्री पर करीब 29000 रुपये की सब्सिडी देती है. पिछले साल यह सब्सिडी 24000 रुपये थी.

पाकिस्तान से हज पर जाने वाले लोगों का खर्च इस साल करीब 16 फीसदी बढ़ गया है. यहां से जाने वाले कुल 1 लाख 60 हजार यात्रियों में से आधे लोगों को सरकारी सुविधा का फायदा मिलेगा जिन्हें सरकारी सुविधा मिलेगी उन्हें बस 1 लाख 24000 रुपये देने होंगे. निजी टूर ऑपरेटरों की मदद से जाने वाले यात्रियों को 1 लाख 82 हजार रुपये खर्च करना होगा. बांग्लादेश से जाने वाले हाजियों के खर्च में भी करीब पिछले साल के मुकाबले 2.7 फीसदी का इजाफा हुआ है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार