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आईएस से लौटे जिहादियों पर मुकदमा

मथियास फॉन हाइन/ईशा भाटिया३ अगस्त २०१५

कड़ी सुरक्षा के बीच सोमवार को जर्मनी की एक अदालत में आईएस से लौटे दो जिहादियों पर मुकदमा शुरू हुआ. 26 साल के इब्राहिम और 27 साल के अयूब का कहना है कि वे आईएस से नाता तोड़ चुके हैं.

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Deutschland Auftakt Prozess gegen zwei IS-Kämpfer aus Wolfsburg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Hollemann

इब्राहिम हीरो बनना चाहता था. एक ऐसा हीरो, जो अपनी कौम के लिए अपनी जान भी देने को तैयार था. और इस चाह ने उसे आईएस तक पहुंचा दिया. लेकिन वहां पहुंच कर जब उसका हकीकत से सामना हुआ, तब उसे इस्लामिक स्टेट की असलियत का पता चला. अब वह पूरी दुनिया को आईएस का असली चेहरा दिखाना चाहता है. सोमवार को जर्मनी में इब्राहिम पर मुकदमा शुरू हुआ है.

1970 के दशक में इब्राहिम के माता पिता ट्यूनीशिया से जर्मनी आए थे. पिछले साल वह कट्टरपंथियों के बहकावे में आ कर आईएस में शामिल होने निकल पड़ा. मई में वह तुर्की गया और वहां से सीमा पार कर सीरिया में आईएस के कैंप में शामिल हो गया. फोन, पैसे, पासपोर्ट, सब कुछ उससे ले लिया गया और ट्रेनिंग के लिए उसे दो विकल्प दिए गए. या तो वह लड़ाका बन सकता था, या आत्मघाती हमलावर. उसने दूसरा विकल्प चुना. उसके साथ अयूब भी था. उसने पहला विकल्प चुना. हालांकि अदालत में उसने कहा कि वह इस्लाम की पढ़ाई करने सीरिया गया था और वहां जबरन उसे आईएस में शामिल कर दिया गया.

भोग विलास का लालच

अयूब और इब्राहिम उन सैकड़ों युवाओं में से हैं जो आईएस का हिस्सा बन रहे हैं. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी से 700 लोग सीरिया के गृह युद्ध में शामिल होने आईएस जैसे संगठनों के साथ जाकर जुड़ चुके हैं. इस्लाम पर रिसर्च करने वाले जर्मनी के मनोवैज्ञानिक अहमद मंसूर के अनुसार यह आंकड़ा 2,000 तक हो सकता है. जर्मन अधिकारियों का कहना है कि सीरिया और इराक में अब तक कम से कम 90 जर्मन मारे जा चुके हैं. इनमें से सात जर्मनी के वुल्फ्सबुर्ग के हैं. यह वही जगह है, जहां से इब्राहिम भी नाता रखता है. जर्मनी में अधिकारियों का कहना है कि वुल्फ्सबुर्ग से 20 युवा सीरिया और इराक के लिए रवाना हुए. हालांकि इब्राहिम कुछ ही महीनों में वहां से भाग आया.

नवंबर में सीरिया से लौटते हुए उसे गिरफ्तार किया गया. हाल ही में उसे मीडिया से बात करने की अनुमति दी गयी. इस इंटरव्यू में उसने अपने तजुर्बे के बारे में बताया. इब्राहिम ने कहा, "हमें हफ्ते में एक ही बार नहाने की इजाजत थी. आईएस के कमांडर हमसे कहते थे कि मुहम्मद भी इसी तरह जिया करते थे." उसने बताया कि उन्हें भोग विलास की चीजों का लालच दिया जाता था, "वे कहते थे कि सीरिया में तुम महंगी से महंगी गाड़ी चला सकते हो, ऐसी जो तुम यूरोप में कभी खरीद ही नहीं पाओगे. वे बताते थे कि यूरोप में शादी करना कितना मुश्किल और महंगा है, जबकि यहां तुम चार चार शादियां कर सकते हो."

भयानक जीवन

इब्राहिम बताता है कि आईएस के लड़ाके बात बात पर इस्लामी कानून की दुहाई देते थे, "जबकि उनका इस्लाम से कोई लेना देना ही नहीं है". आईएस की क्रूरता के बारे में वह बताता है कि उन्हें हर किसी पर जासूस होने का शक लगा रहता था. इसी शक के चलते एक व्यक्ति को मार डाला गया और "हमें डराने के लिए वे उसकी लाश हमारे कमरे में छोड़ गए, उसका सर काट कर धड़ के ऊपर रख गए." इस "भयानक जीवन" से भाग कर इब्राहिम जर्मनी लौट आया. उसका कहना है कि सीरिया की उस आजादी की जगह, वह जर्मनी की जेल में रहना पसंद करेगा.

लंदन किंग्स कॉलेज में कट्टरपंथ पर शोध करने वाले पेटर नॉयमन का कहना है कि इब्राहिम की मिसाल युवाओं के लिए एक सीख बनेगी. जर्मनी के सरकारी चैनल एआरडी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "वहां से वापस आने वाले निराश हो कर लौटते हैं. वे अपनी कहानियां सुनाना चाहते हैं लेकिन नतीजे से डरते हैं." नॉयमन का कहना है कि सीरिया और इराक का रास्ता लेने वालों को खुद से सवाल करना चाहिए, "वहां जाने वाले बहुत से लोगों को लगता है कि वहां तो सब बेहद खुश हैं, वे उस विचारधारा को पूरी तरह स्वीकार लेते हैं, उन्हें उस पर कोई शक नहीं रह जाता. लेकिन इस उदाहरण ने उनके मिथक को तोड़ दिया है."

इब्राहिम और अयूब पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है. उम्मीद जताई जा रही है कि इन दोनों से आईएस के काम के तरीकों के बारे में ठोस जानकारी मिल सकेगी.