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सरकारी मदद पर बहस

३ जनवरी २०१४

करीब 200 साल पहले जर्मनी में चर्च और राज्य को औपचारिक तौर से अलग किया गया और चर्चों की संपत्ति सरकार ने ले ली. तब से सरकार हर साल चर्चों को मुआवजा दे रही है. अब उस पर बहस छिड़ गई है.

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Köln
तस्वीर: picture-alliance/Horst Galuschka

जर्मनी में चर्चों के पास बेशुमार पैसा है. हाल ही में चर्च की संपत्ति को लेकर तब विवाद छिड़ा जब लिम्बुर्ग के बिशप टेबार्त्स फान एल्स्ट के बंगले की शानशौकत की बात सामने आई. इस अमीरी के बावजूद कैथोलिक चर्च की मांग है कि 200 साल पहले हुए फैसले के अनुसार सरकार को उसे मुआवजा देना जारी रखना चाहिए. मुआवजे को रोकने का वामपंथी पार्टी का प्रस्ताव समर्थन के अभाव में विफल हो गया.

एक ऐतिहासिक बोझ

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200 साल पुराने फैसले का मुआवजा मांग रहें हैं चर्चतस्वीर: Fotolia/Kautz1

जर्मन सरकार इवांजेलिक और कैथोलिक चर्चों को 1803 से उसकी संपत्ति के अधिग्रहण के लिए सालाना मुआवजा देती है. इस साल उसे 48 करोड़ यूरो का मुआवजा देना है. हैम्बर्ग और ब्रेमेन को छोड़कर जर्मन के सभी प्रदेश इस राशि में हिस्सा बंटाते हैं. मुआवजा बढ़ रहा है जबकि जर्मनी में चर्च जाने वाले लोगों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. देखा जाए तो चर्च आम तौर पर अलग अलग स्रोतों से जितना कमाते हैं, उसके मुकाबले 48 करोड़ यूरो बहुत ही मामूली रकम है. सरकारी मुआवजा चर्च की कुल आमदनी का करीब दो प्रतिशत हिस्सा है. प्रोटेस्टेंट चर्चों में आमदनी का 2.5 प्रतिशत पैसा सरकार से आता है. राज्य सरकार किश्तों में यह पैसे चर्चों को वापस चुका सकते हैं.

चर्च में सुधारों के सिलसिले में 1795 और 1814 के बीच जर्मनी में कई सारे फैसले लिए गए और शाही अधिकारों का फायदा उठाने वाले संस्थानों के अधिकारों को कम किया गया. उस समय जर्मनी पर पवित्र रोम साम्राज्य का नियंत्रण था. 1806 में पवित्र रोमन साम्राज्य के पूरी तरह खत्म हो जाने से पहले यह सबसे अहम फैसले थे. 1803 में चर्चों से संबंधित एक फरमान जारी किया और चर्चों की संपत्ति राज्य ने ले ली और उसके बदले मुआवजा देने का आश्वासन दिया. पवित्र रोमन साम्राज्य के बाद जर्मन संघ बनाया गया, जर्मन एकीकरण के बाद वाइमार गणतंत्र और फिर दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के नए संविधान में भी इन सारे पुराने कानूनों को शामिल किया गया. तब से लेकर अब तक यह कानून वैसे के वैसे हैं.

चर्चों की मांग

Limburger Bischof Franz-Peter Tebartz-van Elst
धांधली के आरोपों में घिरे लिंबुर्ग के बिशप टेबार्त्स फान एल्स्टतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में प्रोटेस्टेंट और कैथलिक चर्च दोनों इस मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हैं और इस पुराने कानून को बदलना भी चाहते हैं लेकिन वे सरकार से इस सिलसिले में एक अच्छे एकमुश्त मुआवजे की उम्मीद कर रहे हैं. राज्य और केंद्रीय स्तर पर राजनीतिज्ञ बहस करते रहे हैं लेकिन अब तक कुछ ठोस नहीं हुआ है. राज्यों के लिए 200 साल के लायक मुआवजा एक बार में चुकाना मुश्किल है. एकमुश्त मुआवजे के समर्थक राजनीतिज्ञ दसगुने मुआवजे की बात कर रहे हैं लेकिन चर्च 200 साल के लिए मुआवजा मांह रहे हैं. उनकी दलील है कि अगर किराएदार अपना किराया हर महीने चुकाता भी है तो भी वह मकान का मालिक नहीं बन जाता.

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर एक बार में पैसे देने हों तो कुल मुआवजा यानी 48 करोड़ यूरो का 20 या 25 गुना सही रहेगा. लेकिन प्रांतीय सरकारें अब तक सालाना किश्तों में चर्चों को यह राशि देने के लिए तैयार हुई हैं. कुछ मामलों में प्रदेश सीधे चर्च से बात करके भी मुआवजा तय कर सकते हैं क्योंकि केंद्रीय सरकार को नहीं लगता है कि मामले में अभी ध्यान देने की जरूरत है.

लेकिन चर्चों की तरफ से मुआवजे की अपील जर्मनी में काफी लोगों को खल रही है. कैथोलिक चर्च में धांधली और यौन शोषण के आरोपों के सामने आने के बाद उनकी लोकप्रियता घटी है और श्रद्धालु बड़ी संख्या में चर्चों से मुंह मोड़ रहे हैं. कुछ नेताओं ने तो साफ साफ कह दिया है कि चर्चों को यह राशि देने की जरूरत नहीं और इस पर बात करना भी बेकार है.

एमजी/एमजे (डीपीए)

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