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जर्मनी में दावत से मदद

२६ फ़रवरी २०१३

जर्मनी के बॉन शहर में रहने वाली सत्रह साल की अमल ने अपने घर में कुछ दोस्तों को दावत पर बुलाया. लेकिन यह दावत अलग है, यहां आने वाला हर व्यक्ति दुनिया भर के अनाथ बच्चों की मदद के लिए शामिल होता है. भला दावत से मदद कैसे?

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तस्वीर: DW/S. Fatima

इस्लामिक रिलीफ डॉयचलैंड ने इस तरह की दावतों की शुरुआत इसी साल जनवरी में की. दावत में आने वाले लोग अपनी इच्छानुसार कुछ पैसे चैरिटी के लिए दे कर जाते हैं. इन पैसों को इकट्ठा कर संस्था अनाथ बच्चों की मदद के लिए इस्तेमाल करती है. यासीन अल्डर इस्लामिक रिलीफ संस्था के एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर हैं. उन्होंने बताया कि अब तक इस तरह की 250 से 350 के बीच दावतें सिर्फ जर्मनी में ही हो चुकी हैं. मकसद है पैसे इकट्ठे करके जरूरतमंदों की मदद करना. 

अमल अल्जीरिया की हैं लेकिन अपने परिवार के साथ बचपन से जर्मनी में ही रहती हैं. अमल ने बताया कि उनको इस संस्था के बारे में उनकी बहन से पहली बार पता चला था और जिस तरह से यह संस्था काम करती है, यह जानकर उनका दिल भी हुआ कि वह आगे आकर लोगों की मदद कर सकें. उनके घर पर उनके कई हम उम्र साथी भी मौजूद थे. खाने की मेज पर कुछ इधर उधर की और कुछ इस्लाम धर्म की बातें चल रही थीं. सारे इंतजाम यासीन अल्डर की देख रेख में चल रहे थे.

क्या है इस्लामिक रिलीफ संगठन

अल्डर के अनुसार, "जर्मनी में इस्लामिक रिलीफ से हजारों लोग शामिल हैं जो और संकट से जूझ रहे देशों के लिए पैसे देते रहते हैं. इनमें केवल मुसलमान नहीं बल्कि हर समुदाय के लोग हैं."

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यासीन अल्डर इस्लामिक रिलीफ संस्था के साथ 2011 से जुड़े हैं और जर्मनी में संस्था के तमाम कार्यक्रमों का समंवयन करते हैं.तस्वीर: DW/S. Fatima

अल्डर ने बताया कि इस्लामिक रिलीफ की स्थापना 1984 में इंग्लैंड में हुई थी जब अफ्रीका भुखमरी की चपेट में था. उसके बाद इस संस्था का प्रसार हुआ. आज वे करीब 40 देशों को मदद पहुंचा रहे हैं. 28 देशों में इस्लामिक रिलीफ के दफ्तर हैं जिनमें बड़े दफ्तर जर्मनी, इटली, इंग्लैंड और अफ्रीका समेत 12 देशों में हैं. इस संस्था से लगातार जुड़ रहे लोग स्वेच्छा से पैसे देते हैं. इसके अलावा फंडिंग का बाकी पैसा दूसरे देशों में डोनेशन से आता है.

अल्डर ने बताया कि जर्मनी में ही संस्था से जुड़े हजारों लोग हैं जिनमें ज्यादातर तुर्की हैं. संस्था अनाथ बच्चों की पढ़ाई लिखाई, उनके स्वास्थ्य और बाढ़ और भूकम्प जैसे समय आकस्मिक मदद भी पहुंचाती है.

आत्मविश्वास बढ़ता है

इस दावत में मौजूद 14 साल की सबील अपने परिवार के साथ बॉन में रहती हैं, वह टूनीशिया की हैं.  सबील ने बताया, "मैं यहां हर बुधवार आती हूं. जब मुझे इस दावत के बारे में पता चला तो मुझे लगा यह बहुत अच्छा तरीका है एक दूसरे से मिलने के अलावा लोगों की मदद करने का. मैं इस्लाम को मानती हूं और सिर पर हिजाब पहन कर रहती हूं. कई बार स्कूल में मुझे इस बात के लिए चिढ़ाया भी जाता है. लेकिन मैं जब यहां आती हूं तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है. मुझे अपनी पहचान को लेकर कोई शर्म नहीं."

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सबील सिर्फ 14 साल की हैं. उन्हें इन दावतों में आकर मजा भी आता है और वह लोगों की मदद भी कर पाती हैं.तस्वीर: DW/S. Fatima

इस्लामिक रिलीफ संगठन से जुड़े सदस्य हर उम्र और हर संप्रदाय के हैं. अल्डर ने बताया, "दुनिया भर से जो भी लोग दूसरों को मदद पहुंचाना चाहता है वह हमारे साथ जुड़ जाते है. "

इस्लाम की तस्वीर

अल्डर कहते हैं, "आज हम मीडिया में इस्लाम से जुड़ी सिर्फ राजनैतिक बातें ही सुनते हैं. हर जगह हिंसा की खबरें सुनने को मिलती हैं. दुनिया पर इन खबरों का गलत असर पड़ रहा है. इस्लाम की सही तस्वीर लोगों तक पहुंचानी बहुत जरूरी है. हम इन बातों को ही अपनी मुलाकातों का मकसद नहीं बनाना चाहते. खाने के लिए जब लोग एक दूसरे से मिलते हैं तो हर तरह की बातें होती हैं, हंसी मजाक होता है, लोग एक दूसरे को समझते हैं और अच्छा समय बिताते हैं. इसके साथ ही डोनेशन में वे जो पैसे देते हैं, वह मदद के लिए इस्तेमाल होता है, जो कि एक बहुत बढ़िया एहसास है."

रिपोर्टः समरा फातिमा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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