1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मनी में रवांडा कत्लेआम का केस

१६ जनवरी २०१३

दो साल की सुनवाई, 99 गवाह फिर भी फैसला सुनाने में मुश्किल. जर्मनी की एक अदालत रवांडा में कत्लेआम के एक मामले में गवाही की विश्वसनीयता को लेकर पसोपेश में है.

https://p.dw.com/p/17Kx3

दो साल पहले 18 जनवरी 2011को फ्रैंकफर्ट के हाई कोर्ट में रवांडा के वनस्फोरे आर. के खिलाफ नरसंहार का मुकदमा शुरू हुआ था. दो साल बीत चुके हैं, 99 लोगों की गवाही ली जा चुकी है, लेकिन अदालत किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रही है. 56 वर्षीय आरोपी पर 1994 में अपने देश रवांडा के किजिगुरो इलाके में हुतू छापामारों के कत्लेआम का आदेश देने का आरोप है. हमले में तुत्सी समुदाय के 1,200 लोग मारे गए थे. मुकदमे में शामिल पक्ष इस बात पर एकमत हैं कि सबसे मुश्किल चुनौती गवाहों की विश्वसनीयता का आकलन है.

तीन संघीय वकील अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने रवांडा के इंजीनियर वनस्फोरे आर. पर मुकदमे की शुरुआत में कत्लेआम के तीन मामलों में भागीदारी का आरोप लगाया, जिसमें उसने मेयर और कमांडर के रूप में अपने 3,700 नागरिकों को मौत के मुंह में धकेल दिया. 2012 में अदालत ने अपराध के मामले की संख्या घटाकर एक कर दी.

महाधिवक्ता कार्यालय के प्रवक्ता का कहना है कि एकल आरोपों के मामले में जब सच्चाई की तलाश मुश्किल हो जाती है तो ऐसा करने का प्रावधान है. बाद में सजा तय करते समय उस पर ध्यान दिया जा सकता है.

रवांडा में 1994 में हुए व्यापक नरसंहार में संयुक्त राष्ट्र के अनुसार आठ लाख लोगों को बर्बरता से मार डाला गया था. मारे जाने वाले ज्यादातर लोग तुत्सी थे. संघीय वकील थोमस बेक कहते हैं, "यह मुकदमा जर्मनी के कानूनी इतिहास में नया अध्याय है, क्योंकि अपराध जर्मनी में नहीं हुआ." वनस्फोरे आर. ने 1985 में जर्मनी के ट्रियर शहर में पढ़ाई की. 2002 में वह फिर से जर्मनी आ गया और 2007 से उसे परिवार के साथ शरणार्थी का दर्जा मिला.

उसके बाद संघीय अभियोक्ता कार्यालय ने रवांडा के मामले की जांच शुरू की और 2010 में किजिगुरो के पूर्व मेयर वनस्फोरे आर. को फ्रैंकफर्ट के पास ऐर्लेनजे में गिरफ्तार कर लिया गया. 22 जनवरी को मुकदमे की 89वीं सुनवाई होगी. उस दिन अदालत में 100वीं गवाही सुनी जाएगी. सबूत के तौर पर 40 दस्तावेज और अनगिनत तस्वीरें और वीडियो अदालत में पेश की गई हैं. 23 गवाहों के बयान अदालत ने रवांडा की राजधानी किगाली से वीडियो पर लिए हैं. उनमें से 21 कत्लेआम में भागीदारी के कारण कैद हैं. जर्मनी के संघीय अपराध कार्यालय का एक अधिकारी महीनों से रवांडा में गवाहों को खोज रहा है और जर्मनी में अदालत में सुनवाई के लिए जरूरी इंतजाम कर रहा है.

Ruandas Präsident Paul Kagame
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पूर्व मेयर वनस्फोरे आर. ने जिस कत्लेआम का कथित तौर पर आदेश दिया वह किजिगुरो के उस चर्च में घटा जहां तुत्सी लोगों ने भागकर पनाह ली थी. यह बात विवादों से परे है कि वहां हुतू हमलावरों ने हथियारों और कुल्हाड़ियों से उन्हें मार डाला. अदालत घटनास्थल को समझने के लिए 3 डी लेजरस्कैन का इस्तेमाल कर रहा है. इस तकनीक की मदद से दो बार मुकदमे में शामिल लोगों को पता चला कि गवाह ने घटना के बारे में जो बयान दिया था वह वहां संभव नहीं था.

मुकदमे की सुनवाई थोमस जागेबील की अदालत में हो रही है. गवाहों को सुनते हुए उनके चेहरे के भाव के बदलते रहते हैं. हमले और सिर काटने के बारे में विस्तार से सुनना आसान नहीं. दूसरी ओर करीब एक दर्जन गवाहों के बयान पर संदेह करना मुश्किल है जिन्होंने घटना के समय वनस्फोरे आर. के चर्च में होने का दावा किया है. बचाव पक्ष की वकील नताली फॉन विस्टिंगहाउजेन इसे स्वीकार करती हैं. साथ ही वे इस बात की आलोचना करती हैं कि जर्मन अधिकारियों ने रवांडा में एकतरफा जांच की है. फ्रैंकफर्ट में ऐसे गवाह भी आए हैं जिन्होंने उनके मुवक्किल को राहत दी है.

मार्गबुर्ग यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर क्रिस्टॉफ जाफरलिंग अपने छात्रों के साथ इस मुकदमे पर नजर रख रहे हैं, "इस मुकदमे में वजहें हैं कि गवाह गलतबयानी कर सकते थे या बयान बदल सकते थे." जिन लोगों को इस बीच सजा हो चुकी है वे अब पहले अपनी सुरक्षा में दिए गए बयान को बदल सकते हैं तो दूसरे खुद को बचाना चाहते हैं. प्रोफेसर जाफरलिंग का कहना है, "इसके अलावा रवांडा की सरकार की दिलचस्पी अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने में है." संयुक्त राष्ट्र ने मौजूदा तुत्सी राष्ट्रपति पॉल कागामे पर खुद अपराधों का आरोप लगाया है. रवांडा के लोगों को ध्यान देना होगा कि वे फ्रैंकफर्ट में क्या बोलते हैं.

संघीय वकील जागेबील अप्रैल तक गवाही की प्रक्रिया पूरी कर लेना चाहते हैं. न्यायालय की अपराध सुरक्षा पीठ के पांच जजों को उसके बाद फैसला करना होगा कि वे सच्चाई का पता करने के लिए किन गवाहों पर भरोसा कर सकते हैं. कानून के प्रोफेसर जाफरलिंग कहते हैं कि वे अदालत के जजों की जगह पर नहीं होना चाहते.

एमजे/एजेए (डीएपीडी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी