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जर्मनी में विदेशी बच्चों की रिकॉर्ड पैदाइश

लाविनिया पीतू
५ अक्टूबर २०१६

जर्मनी में 2015 के दौरान जन्म लेने वाले हर पांच बच्चों में से एक ऐसा था जिसकी मां के पास किसी अन्य देश की नागरिकता है. विदेश मरीजों के मामले में जर्मन अस्पतालों में नौकरशाही से जुड़ी कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है.

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Neu- geborenes Baby
तस्वीर: picture-alliance/maxppp/V. Voegtlin

महमूद का जन्म बर्लिन के मेडिकल कॉलेज अस्पताल शेरिटे में हुआ. जन्म के बाद बेटे को गोद में लिए हुए उसके पिता ने बताया, "सब कुछ ठीक रहा. हम बहुत खुश हैं. यहां हमें बहुत ही अच्छे लोग मिले.” महमूद का परिवार एक साल पहले सीरिया से जर्मनी पहुंचा और अब महमूद बर्लिन में ही रहेगा.

जर्मनी के संघीय सांख्यिकी कार्यालय का कहना है कि 2015 में जर्मनी में पैदा होने वाले हर पांच बच्चों में एक बच्चा विदेशी मां का है. इस संख्या में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी की वजह जर्मनी में शरणार्थियों और पूर्व यूरोप से प्रवासियों के आगमन को माना जा रहा है.

जर्मनी में 2015 में 4,800 सीरियाई महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया जबकि 2014 में इनकी संख्या 2,300 थी. आंकड़ों के मुताबिक रोमानियाई महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या (2015 में 8,154, 2014 में 5,552) में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं बुल्गारियाई महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या 2014 में जहां 3,135 थी वहीं पिछले साल ये बढ़कर 4,202 हो गई और इस तरह वहां वृद्धि दर 34 प्रतिशत दिखाई पड़ती है.

वहीं इस दौरान जर्मनी में अपने बच्चे को जन्म देने वाली तुर्क मांओं की संख्या कुछ कम हुई है, लेकिन उनकी संख्या ज्यादा होने के कारण 21,555 जन्मों के साथ वे इस सूची में सबसे ऊपर हैं. वहीं ऐसी पोलिश महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या 10,831 है.

शेरिटे अस्पताल के डॉ. वोल्फगांग हाइनरिश कहते हैं कि वो तो सभी मरीजों को बराबर समझते हैं, लेकिन अलग नागरिकता की वजह से वित्तीय और अन्य तरह की दिक्कतें होती हैं. वह कहते हैं, "बेशक शरणार्थी माओं की संख्या में इजाफा हो रहा है. हमें जो एक बड़ी समस्या आती है वो है भाषा. ऐसे में, हमें या तो कोई इंटरप्रेटर तलाशना पड़ता है या फिर अस्पताल में ही कोई ऐसा व्यक्ति जो उस भाषा को समझ सके.”

हर साल 5000 से ज्यादा बच्चों के जन्म को देखते हुए शेरिटे ने अपने चारों अस्पतालों में कम से कम एक सीरियाई डॉक्टर को नियुक्त किया है. डॉ हाइनरिश कहते हैं कि इंटरप्रेटर रखना बहुत महंगा पड़ता है. लेकिन अस्पताल में तो इराक, ईरान, अफगानिस्तान और अन्य अफ्रीकी देशों की महिलाएं भी आ रही हैं, ऐसे में उनके लिए कई बार तत्काल इंटरप्रेटर का इंतजाम करना मुश्किल होता है.

जर्मन शहर कासेल में लेबोरेट्री फिजिशियन डॉ. फोल्कर म्यूलर बताते हैं कि शरणार्थी या फिर गैर यूरोपीय संघ देशों से आए मरीजों का इलाज करना उनके लिए एक दुविधा वाली स्थिति होती है. वह कहते हैं, "इंटरप्रेटर को पैसे देने के अलावा कई बार यह तय करना भी मुश्किल होता है कि उनके इलाज का खर्च कौन उठाएगा.”