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जर्मन अर्थव्यवस्था के विकास पथ के रोड़े

हेनरिक बोएमे/आरआर१६ मई २०१५

आखिर यूरोप की आर्थिक इंजिन में क्या खराबी आ गई? कुछ हफ्ते पहले तक जर्मनी की विकास की संभावनाएं उज्जवल थीं. अब अचानक कौन इसकी राह में रोड़े अटका रहा है. हेनरिक बोएमे बता रहे हैं कि मंदी के पूरे आसार थे.

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Symbolbild Autoindustrie Deutschland VW-Werk in Wolfsburg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Stratenschulte

जब अर्थव्यवस्था के जानकार विकास के पूर्वानुमान को ऊंचा करने लगें, तो चिंतित होना लाजमी है. हाल के महीनों में कई आर्थिक विशेषज्ञों से लेकर रिसर्च संस्थाओं, जर्मन सरकार और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सबका यही मानना था कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था सतत वृद्धि के समय में है. तब ऐसी भविष्यवाणी के लिए माहौल भी सही था. वृद्धि के लिए सभी जरूरी सूचक मौजूद थे: यूरो कमजोर था, तेल सस्ता और ब्याज दर शून्य के करीब थी. वृद्धि लगभग तय थी जब तक कोई अप्रत्याशित कारक आकर इसे पटरी से ना उतार दे.

रुकावट के कारण

जर्मन आर्थिक विकास को पटरी से उतारने के लिए जो कारण जिम्मेदार हैं वे बीते काफी समय से अस्तित्व में थे, लेकिन अब अचानक उनका तेज असर होता दिख रहा है. अनिश्चितता में झूलती वैश्विक राजनीतिक स्थितियां, अमेरिका में फ्रैकिंग की गतिविधियों का धीमा पड़ना, साथ ही यूरो और डॉलर की चकराती विनिमय दर, जिससे जर्मन उत्पादों के अमेरिका में आयात पर असर पड़ रहा है. इसके अलावा कुछ ही महीने पहले जनवरी में 50 डॉलर प्रति बैरल की कीमत से करीब 34 फीसदी उछलकर तेल की कीमतें आज 67 डॉलर प्रति बैरल पर आ चुकी हैं, जो कि आगे भी जारी रह सकती है. इन सब कारकों से साथ साथ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं भी किसी ना किसी तरह जर्मनी के आर्थिक विकास के राह में रुकावट बन रही हैं. लेकिन ये भी सही है कि इनमें से कोई भी बदलाव बहुत चौंकाने वाला नहीं हैं.

Deutsche Welle Henrik Böhme Chefredaktion GLOBAL Wirtschaft
डीडब्ल्यू के हेनरिक बोएमेतस्वीर: DW

यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) की आक्रामक मौद्रिक नीति अब अपना असर दिखा रही है. हाल ही तक अत्यंत निचले, शून्य के आसपास रहने वाले उपभोक्ता मूल्यों में मुद्रास्फीति धीरे धीरे खत्म होती दिख रही है. दाम फिर से बढ़ रहे हैं और ईसीबी अपने 2 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर के लक्ष्य के पास जा रहा है. जर्मनी में इसके कारणों में से एक 1 जनवरी से लागू हुआ नया न्यूनतम वेतन कानून भी है. इसके कारण कई सेवाएं महंगी हुई हैं. टैक्सी के किराए में 12 फीसदी, बाल कटवाने में औसतन 3.6 फीसदी तो रेस्त्रां में खाना औसतन 3 फीसदी महंगा हुआ है. न्यूनतम वेतन से कम वेतन अर्जित करने वालों की कमाई बढ़ाने का महंगाई पर असर पड़ा है.

निर्यात में कमी

2009 से ही पूरे यूरोजोन को प्रभावित करने वाली मंदी को उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में जर्मन निर्यात के लिए ढीली पड़ चुकी मांग के फिर बढ़ने से कुछ बल मिला है. वरना जहां भी देखें, कोई ना कोई ऐसी समस्या है जिससे जर्मन उत्पादों की मांग कम हो. रूस में तेल की कम कीमतें और पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंध, चीन में बैंकों पर से अत्यधिक कर्ज के बोझ को कम करने की कोशिशें, तो ब्राजील में बढ़ती मुद्रास्फीति और मंदी में जाती अर्थव्यवस्था है. दक्षिण अफ्रीका की जीडीपी वृद्धि दर पिछले तीन सालों से नीचे ही गिरती जा रही है तो भारत का भविष्य केवल एक व्यक्ति - देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी - की नीतियों पर इतना आधारित है कि उसके बारे में कुछ भी पक्के तौर पर कहना मुश्किल है.

यह देखते हुए कि जर्मनी का करीब 40 प्रतिशत निर्यात इन्हीं देशों और कुछ अन्य गैर-ईयू देशों को होता है, बात समझ में आने लगती है कि क्यों 2015 की पहली तिमाही में जर्मन अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर प्रभावित हुई है. जर्मनी के बवेरिया की ऑटो कंपनी बीएमडब्ल्यू से रिटायर हो रहे सीईओ नॉर्बर्ट राइटहोफर ने पिछले साल के अपने उत्कृष्ट कंपनी खाते पेश करते हुए कहा था कि आज की ठोस, सावधानी से बनाई गई योजनाएं, कल कचरा साबित हो सकती हैं. हम भी आर्थिक मामलों के उस्तादों से सच्चाई को ऐसी ही सौम्यता से देखने की उम्मीद कर सकते हैं.