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जर्मन मदद से मिस्र का प्रोपगैंडा

राइनर सोलिच/एमजे ४ जून २०१५

अपने देश में मानवाधिकारों के बढ़ते हनन के बावजूद मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी का बर्लिन में चांसलर अंगेला मैर्केल ने स्वागत किया. डॉयचे वेले के राइनर सोलिच का कहना है कि यह एक गलत संकेत है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/von Jutrczenka

मिस्र में कम से कम 40,000 लोग राजनीतिक कारणों से जेल में हैं. इस बीच वहां मौत की सजा धड़ल्ले से सुनाई जा रही है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पिछले दो सालों में ही 740 से ज्यादा कानूनी तौर पर सवालिया फैसले रिकॉर्ड किए हैं. सरकारी दमन का शिकार सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथी ही नहीं हो रहे हैं बल्कि उदारवादी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लोकतंत्र समर्थक भी. ऐसे लोग जिन्हें यूरोप से समर्थन की उम्मीद है, और मिलनी भी चाहिए.

इसलिए मैं इसे गलत संकेत मानता हूं कि इस स्थिति के मुख्य जिम्मेदार मिस्र के निरंकुश शासक अल सीसी को जर्मनी में एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय मंच दिया जाए, कूटनीतिक सम्मान मिले और मेजबान के आलोचना वाले सवालों का जवाब न देना पड़े. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने हालांकि बातचीत में मानवाधिकारों का भी मुद्दा उठाया और मौत की सजाओं की आलोचना की. लेकिन मानवाधिकारों के हनन की गंभीरता को देखते हुए लहजा आश्चर्यजनक रूप से संयमित था. चांसलर से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि उन्हें इस समय अल सीसी को बुलाने की जरूरत ही क्या थी.

Deutsche Welle Rainer Sollich Arabische Redaktion
तस्वीर: DW/P. Henriksen

गलत संकेत

अंगेला मैर्केल ने खुद ही मिस्र में संसद का चुनाव कराए जाने को इस मुलाकात की शर्त बताया था. चुनाव अभी भी कराए जाने की संभावना नहीं दिख रही है और अभी के हालात को देखते हुए निष्पक्ष होंगे भी नहीं. अल सीसी अध्यादेशों से शासन कर रहे हैं और अपनी जनता के बड़े हिस्से को दबा रहे हैं. उन्हें सरकारी नियंत्रण वाले या समर्थित मीडिया की भी मदद मिल रही है जो अक्सर पश्चिम विरोधी लहजा भी अख्तियार करते हैं और बेरोकटोक षड़यंत्र की कहानियां फैलाते हैं. इस बारे में भी चांसलर ने दो टूक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, कम से कम सार्वजनिक रूप से नहीं. जर्मनी के कोनराड आडेनावर फाउंडेशन के दो कर्मचारियों की बेतुकी गिरफ्तारी की मैर्केल ने चर्चा जरूर की लेकिन उन्हें रिहाई की और पुरजोर मांग करनी चाहिए थी.

स्वाभाविक रूप से मिस्र एक महत्वपूर्ण देश है जिसकी जर्मनी और यूरोप उसी तरह अवहेलना नहीं कर सकते, जैसे कि रूस, चीन और सऊदी अरब जैसे वजनदार लेकिन निरंकुश शासन वाले देशों की. काहिरा को न तो आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में, न तो मध्यसागर के होने वाले शरणार्थी कांड में और न ही पूरे इलाके में अनगिनत संकटों के मामले में नजरअंदाज किया जा सकता है. लेकिन यूरोप को ठीक ठीक यह भी देखना होगा कि क्या मिस्र इस समय सचमुच मदद वाली भूमिका निभा रहा है.

मेरे विचार से स्थिति एकदम उलट है. अल सीसी की घरेलू नीति ट्यूनीशिया के विपरीत सामाजिक मेलजोल पर लक्षित नहीं है. वह ध्रुवीकरण करती है और मामले को और बिगाड़ने का खतरा पैदा करती है. मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं और समर्थकों का दमन आतंकवादी ताकतों को प्रचार में मदद देता है. लीबिया में भी अल सीसी ऐसी ताकतों को समर्थन दे रहे हैं जो मध्यमार्गी इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ सामाजिक संवाद को उनकी ही तरह अस्वीकार करते हैं. मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ उनकी सख्त कार्रवाई का नतीजा यह हुआ है कि मिस्र अब इस्राएलियों और फलीस्तीनियों के विवाद में तटस्थ मध्यस्थ नहीं रह गया है क्योंकि हमस मुस्लिम ब्रदरहुड का हिस्सा है. क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान की मेरी समझ अलग है.

लोकतांत्रिक सिद्धांत

अल सिसी को नहीं बुलाने या बाद में बुलाने के बहुत से कारण दिए जा सकते थे. मसलन जब वे एक विश्वसनीय सुधार कार्यक्रम पेश करेंगे या कम से कम चुनाव की तिथि की घोषणा करेंगे. खासकर आर्थिक रूप से अल सीसी जर्मनी पर उससे ज्यादा निर्भर हैं जितना जर्मनी मिस्र के ऊपर. अल सीसी पर ज्यादा दबाव डालने की जर्मनी में मानवाधिकार संगठनों और विपक्ष की अनगिनत मांगों के बावजूद इस संभावना का इस्तेमाल नहीं किया गया. बंद कमरों के पीछे उन्हें जो भी आलोचना सुननी पड़ी हो, जर्मन यात्रा को अल सीसी अपनी प्रोपगैंडा कामयाबी मानेंगे.

कम से कम एक व्यक्ति ने लोकतांत्रिक सिद्धातों के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दिया. चांसलर मैर्केल की पार्टी के सांसद और जर्मन संसद बुंडेसटाग के अध्यक्ष नॉर्बर्ट लामर्ट ने मिस्र में मानवाधिकारों के व्यापक हनन का हवाला देकर अल सिसी से मिलने से मना कर दिया. लेकिन एक और आवाज भी है जो मिस्र के राष्ट्रपति को पंसद आई होगी. यह आवाज है मैर्केल की पार्टी के संसदीय दल के नेता फोल्कर काउडर की, जिन्होंने मिस्र के एक चैनल पर तानाशाह अल सीसी को समझाने वाला और विश्वसनीय बताया, जैसे कि मानवाधिकारों की उनके और उनकी पार्टी के लिए कोई भूमिका ही न हो.