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जलवायु सम्मेलन से क्या चाहता है भारत?

निखिल रंजन
१४ नवम्बर २०१७

बॉन के जलवायु सम्मेलन में देशों के बीच चर्चा अब अहम दौर में है. देशों के गुट अपनी बात लेकर बहस कर रहे हैं और सहमति बनाने की कोशिश हो रही है. भारत इस कोशिश में कहां है?

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COP23 Klimakonferenz in Bonn
तस्वीर: DW/A. Kumar

बॉन में जलवायु सम्मेलन अब उस हिस्से में पहुंच गया है जहां जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए देशों को एक दूसरे के साथ सहमत हो कर फैसले करने हैं. सम्मेलन में पहुंचे देश अपनी मांगों के लिए दबाव बना रहे हैं लेकिन सहमति अब भी दूर नजर आ रही है. भारत की तरफ से वार्ताकारों के दल का नेतृत्व कर कहे पर्यावरण मंत्रालय के सचिव सीके मिश्रा ने बताया कि बहुत सकारात्मक सोच के साथ भारत इस सम्मेलन में अपनी बात रख रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि सम्मेलन में माहौल सामंजस्य का है. मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में सीके मिश्रा ने कहा, "हर सुबह 77 देशों और चीन के प्रतिनिधियों की बातचीत हो रही है. बातचीत का माहौल पिछले सम्मेलनों की तुलना में ज्यादा सामंजस्यपूर्ण है. यह सम्मेलन एक समूह के रूप में काम कर रहा है."

सोमवार की रात बेसिक देशों के मंत्रियों की मुलाकात हुई जिसमें वह भारत की ओर से शामिल हुए. इन देशों में भारत के अलावा ब्राजील, चीन, दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. भारत और दूसरे विकासशील देशों की मांग है कि जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए उन्हें विकसित देशों की मदद की जरूरत है और वे पेरिस समझौते के दायरे के भीतर ही अपनी मांग रख रहे हैं. सीके मिश्रा ने बताया, "भारत चाहता है कि उसे विकास के लिए धन और नयी तकनीक विकसित करने की सुविधा मिले." एक दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी बॉन में कहा कि जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के फंड की जरूरत है. इसमें कौन देश कितना धन जुटायेगा, यह तय हुए बगैर जलवायु परिवर्तन की लड़ाई आगे नहीं बढ़ पायेगी.

बेसिक देशों के मंत्रियों की बैठक के बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया है. इसमें फिजी की अध्यक्षता का स्वागत करने के साथ ही उसे पूरा सहयोग देने की भी बात की गयी है. इन देशों ने पेरिस जलवायु समझौते को एक बड़ी कामयाबी बताते हुए कहा है कि अब इससे पीछे नहीं हटा जा सकता. अब तक इस समझौते की दुनिया के 169 देशों ने पुष्टि कर दी है. इस समझौते में 2020 से पहले और उसके बाद के लिए कुछ लक्ष्य तय किये गये हैं लेकिन इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जिन कदमों को उठाने की जरूरत है उस पर सहमति नहीं बन पा रही है. भारत और उसके जैसे विकासशील देश बराबरी, पारदर्शिता और अलग वर्गीकरण के आधार पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लक्ष्यों के लिए काम करना चाहते हैं. उन्हें विकास के लिए पर्याप्त संसाधन के साथ आगे बढ़ने का रास्ता चाहिए. दूसरी तरफ विकसित देश सबके लिए एक जैसे लक्ष्यों की मांग पर अड़े हैं.

जलवायु परिवर्तन के लिए दुनिया के देशों को एक तरफ कार्बन उत्सर्जन में कमी लानी है और दूसरी तरफ अक्षय ऊर्जा के विकास पर काम करना है. इस बीच भारत ने अक्षय ऊर्जा की दिशा में अपनी बढ़ती क्षमताओं को भी दुनिया के सामने रखा है. दुनिया के देश अक्षय ऊर्जा की क्षमता पूरी दुनिया में हासिल करना चाहते हैं. इसके लिए दो साल पहले इंटरनेशनल सोलर अलायंस यानी आईएसए का गठन किया गया. आईएसए ने 2030 तक 1000 गीगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है. इस समझौते पर 44 देशों ने दस्तखत किये हैं. इस पर अमल के लिए 15 देशों से पुष्टि की जरूरत थी  और 16 देशों ने इसकी पहले ही पुष्टि कर दी है. अगले 6 दिसंबर से यह समझौता लागू हो जाएगा. इससे पहले ही भारत ने अपनी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं.  भारत में अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव आनंद कुमार ने बताया, "भारत 2022 तक 175 गीगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता हासिल कर लेगा. इस साल इसका 17 फीसदी और 2020 तक 33 फीसदी हासिल करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है."  

भारत ने विकास की अपनी जरूरतों का हवाला देते हुए यह भी बात सामने रखी कि देश में अब भी 30 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और उन्हें इससे बाहर निकालने का लक्ष्य भी उसके सामने है. भारतीय वार्ताकारों के दल में शामिल पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अरुण मेहता ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों से ऊपर है लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का लक्ष्य."