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जलियांवाला बाग "शर्मनाक" घटना

२० फ़रवरी २०१३

1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के घाव अब भी नहीं भरे हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरन ने अमृतसर पहुंचकर ब्रिटिश शासन की इस क्रूरता को शर्मनाक तो बताया, लेकिन साफ माफी मांगने से वह परहेज कर गए.

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तस्वीर: Reuters

1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने वहां जमा हजारों भारतीयों पर फायरिंग करने का आदेश दिया. बाग में मौजूद निहत्थे लोग बेरहमी से मारे गए. करीब 94 साल बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन वहां पहुंचे हैं. कैमरन भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार को बढ़ाने के मकसद से तीन दिन के भारत दौरे पर हैं.

1919 के हत्याकांड को उन्होंने एक "शर्मनाक" हादसा बताया, लेकिन औपचारिक माफी से बचे रहे. जलियांवाला बाग की विजिटर्स बुक में उन्होंने एक संदेश में लिखा, "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी और उस वक्त विंस्टन चर्चिल ने भी इसे भयानक हादसा कहा था. हमें नहीं भूलना चाहिए यहां क्या हुआ और हमें सुरक्षित करना है कि ब्रिटेन दुनिया भर में शांतिपूर्वक विरोध का समर्थन करे."

क्या हुआ 1919 में

13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन था और हजारों सिख श्रद्धालु जलियांवाला बाग के पास हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे में खालसा पंथ के गठन को याद करने पहुंचे थे. 1699 में सिखों के आखिरी गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ का गठन किया था. पूजा के बाद श्रद्धालु जलियांवाला बाग में जमा हुए. बाग के चारों ओर ईंट की दीवार बनी है. बाग में एक कुआं भी है. माना जाता है कि वहां 15 से 20 हजार लोग मौजूद थे.

1857 के गदर के बाद भारत में अंग्रेज शासन दोबारा उस स्तर पर विद्रोह को रोकना चाहता था और इसलिए शासकों को जलियांवाला बाग में लोगों का जमा होना संदिग्ध लगा. लोगों को तितर बितर करने के मकसद से अमृतसर में तैनात ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने 50 बंदूकधारी सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंचे. उनके पास मशीन गन वाले टैंक भी थे, लेकिन बाग के संकरे दरवाजे से इन्हें ले जाने में दिक्कत आ रही थी जिस वजह से उन्हें बाहर छोड़ दिया गया. अंदर जनरल डायर ने लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने का आदेश दिया. दीवार से घिरे बाग से भागने का लोगों के पास चारा नहीं था जिस वजह से कई लोग गोलियों का शिकार बने. बहुत लोग कुएं में कूदकर मारे गए. उस वक्त अंग्रेजी शासन ने मृतकों की संख्या 400 बताई, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि गोलियों के शिकार लोगों की संख्या 1,000 से भी ज्यादा थी. हत्याकांड के बाद डायर की जांच करने हंटर आयोग पहुंचा और डायर को उसके पद से हटा दिया गया.

माफी मांगने का नतीजा

लेकिन आज तक उस हत्याकांड के लिए ब्रिटेन की सरकार ने माफी नहीं मांगी है. अमृतसर में भूषण बेहल हत्याकांड के पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं. उनके नाना भी इस दौरान मारे गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि कैमरन माफी मांगेंगे. बेहल मानते हैं कि अगर कैमरन के स्तर का नेता माफी मांगता है तो इससे कई भारतीय अपने दर्दनाक इतिहास को पीछे छोड़ आगे बढ़ पाएंगे.

कैमरन से पहले महारानी एलिजाबेथ भी अमृतसर आ चुकी हैं. 1997 में उन्होंने मृतकों को श्रद्धांजलि दी, लेकिन उस वक्त उनके पति प्रिंस फिलिप ने कहा कि भारतीयों ने मृतकों की संख्या को बढ़ा चढ़ा कर बताया है. वहीं, कूटनीतिक तौर पर कैमरन के ऐसा करने से ब्रिटिश शासन के अधीन रहे बाकी देश अपने देश में ब्रिटिश क्रूरता के लिए माफी की उम्मीद कर सकते हैं. यह ब्रिटिश सरकार के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है.

रिपोर्टः एमजी/ओएसजे(एपी, एएफपी)

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