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जल्लीकट्टू करने पर तुले समर्थक, राष्ट्रपति तक पहुंचे विरोधी

१३ जनवरी २०१७

सांड़ों से लड़ाई की विवादित परंपरा को सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद जारी रखने की कोशिशें लगातार जारी है. इसके समर्थक कोशिश कर रहे हैं कि अध्यादेश जारी करके इस परंपरा पर सुप्रीम कोर्ट का लगाया प्रतिबंध हटा दिया जाए.

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Bildergalerie Stierkampf Indien Pongal Festival in Madurai
तस्वीर: UNI

कई पशु प्रेमियों और जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने राष्ट्रपति से दखल देने की अपील की है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और केंद्र सरकार से इन कार्यकर्ताओं ने अपील की है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हो और इस हफ्ते आयोजित होने वाली यह खूंखार प्रतियोगिता आयोजित न होने पाये.

पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) और फेडरेशन और इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशंस (FIAPO) ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे को इस बारे में पत्र लिखा है. पेटा ने बताया, "अपने पत्रों में पेटा और एफआईएपीओ ने लिखा है कि पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के तहत जल्लीकट्टू एक अवैध गतिविधि है. 2014 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसे अवैध करार दे चुका है. और पर्यावरण और वन मंत्रालय ने भी 2011 में सांड़ों के किसी प्रदर्शन में भाग लेने पर रोक लगा दी थी. ऐसे में यदि इस परंपरा को जारी रखने के लिए कोई अध्यादेश लाया जाता है तो उसे असंवैधानिक और सत्ता का दुरुपयोग माना जाए."

तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जल्लीकट्टू पर बैन हटाने की अपील की थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया. इसके बाद से तमिलनाडु में कुछ जगह विरोध प्रदर्शन हुए. फिर खबरें आईँ कि सरकार बैन हटाने के लिए अध्यादेश ला सकती है. पेटा ने तमिलनाडु सरकार से भी आग्रह किया है कि इस खेल पर लगे बैन को पूरी सख्ती से लागू किया जाए. भारत में पेटा की सीईओ पूर्वा जोशीपुरा ने कहा, "अगर शरारती तत्व भगवान शिव के मंदिर में घुसते हैं और नंदी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाते हैं तो लोग इसका समर्थन नहीं करेंगे. फिर जिंदा बैलों के साथ इस तरह की क्रूरता को कैसे सहन किया जा सकता है."

एफआईएपीओ के निदेशक वरदा मेहरोत्रा ने कहा कि कोई संस्कृति हिंसा का समर्थन नहीं करती. उन्होंने कहा, "कोई संस्कृति हिंसा का समर्थन नहीं करती, जानवरों के प्रति तो बिल्कुल भी नहीं. और सांड़ों का तो भारतीय संस्कृति में बहुत सम्मान है."

वीके/एमजे (पीटीआई)