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जेएनयू के छात्रों का दिल्ली में उग्र प्रदर्शन

आमिर अंसारी
१८ नवम्बर २०१९

जेएनएयू के छात्र आज संसद तक मार्च कर सांसदों से मिलकर अपनी बातें रखना चाहते थे लेकिन पुलिस ने पहले ही उन्हें वहां जाने से रोक दिया और इस दौरान कई छात्र पुलिस से भिड़ गए

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Indien Stundenten-Protest in Dehli
तस्वीर: AFP

दिल्ली में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र धारा 144 का उल्लंघन कर भारत की संसद की तरफ बढ़ रहे थे, तभी उनमें से एक छात्र को पुलिस बस की तरफ ले जाने लगी. वहां मौजूद एक संवाददाता ने छात्र से पूछा आप ऐसा क्यों करे रहे हैं, उस छात्र का जवाब था, "सस्ती शिक्षा लोकतांत्रिक अधिकार है."

इसी मांग को लेकर दिल्ली में जेएनयू के तीन हजार छात्र दिनभर पुलिस के साथ कभी भिड़ते, कभी चिल्लाते तो कभी नारे लगाते नजर आए.

संसद की तरफ जाने वाले एक छात्र का सवाल था कि उन्हें वहां जाने से क्यों रोका जा रहा है, उस छात्र ने पूछा, "संसद किसके लिए चल रही है? छात्रों के लिए, मजदूरों के लिए, किसानों के लिए. हम एक महीने से फीस बढ़ोतरी का विरोध कर रहे हैं, हमारी बात कोई नहीं सुन रहा है."

छात्रों के संसद मार्च को लेकर दिल्ली पुलिस ने संसद परिसर के बाहर धारा 144 लगाई है ताकि छात्र वहां इकट्ठा ना हो पाए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संसद मार्च में करीब तीन हजार छात्र शामिल थे.

Indien Stundenten-Protest in Dehli
तस्वीर: AFP

संसद का आज से शीतकालीन सत्र शुरु हुआ है और छात्र चाहते हैं कि चुने हुए प्रतिनिधि उनसे मिले और तमाम मुद्दों पर अपनी राय दे.

जेएनयू छात्रसंघ के उपाध्यक्ष साकेत मून ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम शांति के साथ अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. हमारा विरोध फीस बढ़ोतरी को लेकर है. देश में सामाजिक न्याय को खत्म किया जा रहा है. जेएनयू के कुलपति जगदीश कुमार हमसे नहीं मिल रहे हैं. देशभर में शिक्षा का निजीकरण हो रहा है. इसका विरोध करने पर हमारे ऊपर पुलिस ने लाठी चार्ज किया."

छात्रों की मांग

जेएनयू के प्रदर्शनकारी छात्रों की मांग है कि वाइस चांसलर जगदीश कुमार लिखित में दें कि उनकी बढ़ी हुई फीस वापस होगी और सांसदों से उन्हें मिलने दिया जाए ताकि वे अपनी बात रख सकें. छात्रों का कहना है कि वो पिछले कई दिनों से विरोध कर रहे हैं और कोई चुना हुआ प्रतिनिधि अब तक उनसे मिलने नहीं आया. छात्र चाहते हैं कि वे अपनी समस्या पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय से चर्चा करे. वहीं इस बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तीन सदस्यीय उच्च समिति बनाई है जो सभी पक्षों से बात कर यूनिवर्सिटी के कामकाज को सामान्य करने के उपायों पर अपनी राय देगी. यह समिति छात्रों के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन से बातचीत कर मंत्रालय को सिफारिश सौंपेगी.

साकेत का कहना है कि जब तक समिति अपनी राय देगी तब तक फीस बढ़ोतरी और हॉस्टल मैनुअल पर रोक लगी रहे. हालांकि पिछले दिनों विश्वविद्यालय प्रशासन ने कुछ बढ़ी हुई फीस में आंशिक कटौती जरूर की है. 

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतनलाल छात्रों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहते हैं, "सरकार को शिक्षा नीति पर बताना चाहिए कि आखिर वो क्या करना चाहती है. निजी स्कूल और कॉलेज खोले जा रहे हैं और कम कीमत में उन्हें सुविधाएं दी जा रही हैं. मौजूदा केंद्र सरकार ने ना तो दिल्ली विश्वविद्यालय ना ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्याल बनाया है, जो यूनिवर्सिटी बनी हुई है उसे सरकार क्यों बर्बाद करने में आमादा है. जेएनयू के छात्रों की मांग जायज है. यही हाल देश की आईआईटी का है जहां एमटेक की फीस बढ़ गई है, वहां फीस इतनी बढ़ गई है कि मध्यम वर्ग परिवार का बच्चा पढ़ ही नहीं पाएगा."

 

"शिक्षा अधिकार है, विशेषाधिकार नहीं"

साकेत आरोप लगाते हैं कि एक सोची समझी रणनीति के तहत शिक्षा का "भगवाकरण और निजीकरण" किया जा रहा है. प्रोफेसर रतनलाल के मुताबिक, "देश की जनता को उच्च शिक्षा का अधिकार है और अगर इन विश्वविद्यालयों में बड़े परिवार के बच्चे ही शिक्षा हासिल करेंगे तो यह बात सरकार को खुलकर बतानी चाहिए. "

पिछले 28 अक्टूबर से छात्र हॉस्टल फीस, अन्य सेवा पर शुल्क बढ़ोतरी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. विश्वविद्यालय के कुलपति ने एक वीडियो संदेश में छात्रों से अपील की है कि वे हड़ताल समाप्त कर पढ़ाई के लिए क्लास में लौटे. उन्होंने कहा कि छात्रों की हड़ताल की वजह से अकादमिक गतिविधियों को नुकसान हो रहा है.

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