1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हवा से बच के रहना

३ अगस्त २०१४

हवाई जहाज में सफर करते वक्त अकसर पास बैठे यात्री के मोजों की बदबू सताती है. और उनसे कहें भी तो कैसे कि मोजों से बदबू आ रही है. लेकिन हो सकता है कि बदबू मोजे से नहीं बल्कि कहीं और से आ रही हो. और यह खतरनाक हो.

https://p.dw.com/p/1CnaL
तस्वीर: Fotolia/Olly

2012 में जर्मन एयरलाइन कंपनी जर्मनविंग्स का एक विमान क्रैश होते होते बचा. जांच में पता चला कि कॉकपिट में बैठे दो पायलट जिस हवा में सांस ले रहे थे, वह जहरीली थी. उन्होंने किसी तरह होश संभाला और अपना प्लेन लैंड किया. ऐेसी घटना को फ्यूम इवेंट कहा जाता है. विमान के इंजन से निकल रहा तेल किसी तरह विमान के अंदर की हवा में घुस गया था. इसके बाद गंदे मोजे जैसी बदबू फैली. लेकिन यह मोजों से नहीं बल्कि विमान के फर्श पर बिछे कालीन के नीचे से आ रही थी.

वेल्ट आम जोनटाग नाम की पत्रिका ने एक शोध प्रकाशित किया जिसे कोंडोर नाम की विमान कंपनी ने करवाया था. इसमें विमानों में टीसीपी यानी ट्राइक्रेसिलफोस्फेट नाम की गैस का पता लगाने को कहा गया. टीसीपी तंत्रिका तंत्र के लिए जहर है. शोध में पता चला कि एयरबस ए320 के 12 में से 11 विमानों में टीसीपी है. बोइंग 757 के 13 में से 5 विमानों में टीसीपी पाई गई और बोइंग 767 की नौ में से छह मशीनों का यही हाल था.

सबूत नहीं

Betanken eines Flugzeugs
तस्वीर: AP

टीसीपी जहरीली है, इसका सबूत मिलना मुश्किल है. लेकिन जानकार कहते हैं कि यह सारिन नर्वगैस जैसी ही ऑर्गैनोफोस्फेट परिवार की है जिसे सूंघने के बाद जापान की मेट्रो में कई लोग मारे गए थे. विमानों में जंग से बचने के लिए इसका इस्तेमाल होता है और जब विमान के कैबिन के लिए प्रोपेलर से हवा ली जाती है टीसीपी साथ आ जाती है. यह एसी में घुस जाती है. इसकी एक ही बूंद हवा में जहर घोल देती है.

गैस सूंघने से लोगों पर अलग अलग असर होता है. कुछ को सिरदर्द होता है, कुछ को उल्टी आती है, कुछ सो नहीं पाते और कुछ को ध्यान देने में दिक्कत होती है. इसलिए इसके जहरीलेपन का सीधा सीधा सबूत देना मुश्किल है. डॉक्टर फ्रांक बेर्ट्राम कई पायलटों का इलाज कर चुके हैं. वह कहते हैं, "इन सबके शरीर में एक खास जेनेटिक पैटर्न था, जिसकी वजह से यह ऑर्गैनोफोस्फेट शरीर में खत्म नहीं होते या और जहरीले हो जाते हैं."

एयरोटॉक्सिक सिंड्रोम

1999 में पहली बार इस बीमारी को नाम दिया गया लेकिन 1950 के दशक में ही लोग इसकी शिकायत कर रहे थे. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक इस बीमारी को मान्यता नहीं दी है. मतलब, विमान निर्माता और एयरलाइन कंपनियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

एयरोटॉक्सिक एसोसिएशन ने हाल ही में एक ब्रिटिश पायलट का पोस्टमार्टम किया. उन्हें साफ संकेत मिले कि पायलट की मौत ऑर्गैनोफोस्फेट गैसों से हुई. 2012 दिसंबर में रिचर्ड वेस्टगेट की मौत हुई थी. उनके डॉक्टर उनकी बीमारी दूर नहीं कर पाए. वेस्टगेट के दिल की पेशियों में इन्फेक्शन हो गया था. उन्हें ब्लड कैंसर और मल्टिपल स्क्लीरोसिस हो गया था. विशेषज्ञ अब दावे से कह सकते हैं कि यह जहरीली गैस सूंघने का नतीजा था.

टीसीपी के खतरनाक असर

अगर ज्यादा गैस सूंघ ली जाए तो त्वचा में महसूस करने की ताकत खत्म हो सकती है या विकलांग होने का खतरा भी हो सकता है. कॉकपिट संघ के योर्ग हांडवेर्ग कहते हैं कि उनके साथ काम कर रहे सहयोगियों को इस वजह से नौकरी खोनी पड़ी.

कई सालों से कॉकपिट संघ कोशिश कर रहा है कि एयरलाइंस पायलटों के कॉकपिट में सेंसर लगाएं ताकि ऑर्गैनोफोस्फेट की मात्रा पर नजर रखी जा सके. हांडवेर्ग बताते हैं, "फिल्टर भी नहीं है, जबकि हम नौ सालों से एक हल ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं." और अगर इंजन से तेल की भाप विमान के अंदर तक न पहुंचे तो फ्यूम इवेंट्स को रोका जा सकेगा. लेकिन हांडवेर्ग कहते हैं कि एयरलाइंस के लिए यह महंगा पड़ेगा.

रिपोर्टः ओफीलिया हार्म्स आरूती/एमजी

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी