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जागेगा अंतरिक्ष यान

२५ मई २०१४

बरसों से अंतरिक्ष में सोए पड़े यान को दोबारा स्टार्ट करने की कोशिश हो रही है. नासा के इस विशाल रॉकेट को जगाने का काम कोई अंतरराष्ट्रीय एजेंसी नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों का एक छोटा सा ग्रुप करेगा.

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Planet Ceres
तस्वीर: Reuters

यह ग्रुप इंटरनेशनल कॉमेटरी एक्सप्लोरर (आईसीई) में उस वक्त जान फूंकने की कोशिश करेगा, जब यह पृथ्वी के पास से गुजरेगा. 1970 के दशक का यान अपना मिशन पूरा कर अंतरिक्ष में ही सुस्ता रहा है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया कि उसने "सिटिजन साइंटिस्ट" नाम के ग्रुप को इस काम के लिए हरी झंडी दिखाई है.

ग्रुप की योजना है कि वह इस यान से संपर्क करे, इसके इंजनों को स्टार्ट करे इसे पृथ्वी की नई कक्षा में पहुंचा दे. इसने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि वह 1978 के इसके असली मिशन को दोबारा शुरू करना चाहता है. नासा ने बताया कि यह ग्रुप कैलिफोर्निया की कंपनी स्काईकॉर्प के साथ मिल कर इस काम को अंजाम देने की कोशिश करेगा. नासा का कहना है कि यह पहला मौका है, जब किसी ऐसे बेकार पड़े अंतरिक्ष यान को दोबारा इस्तेमाल करने की कोशिश होगी.

आईसीई को शुरू में इंटरनेशनल सन एक्सप्लोरर 3 नाम दिया गया था. इसे 1978 में छोड़ा गया और इसका उद्देश्य धरती की तरफ आने वाली सौर किरणों का अध्ययन करना था. यह मिशन 1981 में पूरा हो गया. लेकिन यान में ईंधन और क्षमता बची हुई थी. लिहाजा इसे दो धूमकेतुओं की निगरानी के काम के लिए आगे भेज दिया गया. तब इसका नाम आईसीई कर दिया गया. नासा का कहना है कि 30 साल में यह जून के दौरान पृथ्वी के सबसे नजदीक चक्कर लगाएगा. इसी वक्त वैज्ञानिक इससे संपर्क करने की कोशिश करेंगे.

जर्मनी के बोखुम अंतरिक्ष वेधशाला के निदेशक थीलो एल्सनर ने कहा कि इस साल के शुरू में संकेत मिले कि आईसीई पृथ्वी के पास से गुजरेगा. इसके बाद ऑब्जर्वेटरी ने यान पर नजर रखना शुरू कर दिया. एल्सनर का कहना है कि नासा के लिए आईसीई से संपर्क करना बहुत मुश्किल काम था. क्या यान के उपकरण अभी भी काम कर रहे हैं. इस बात का पता तभी चलेगा, जब इंजन स्टार्ट होगा. एल्सनर कहते हैं कि अभी यह बहुत कम संकेत भेज रहा है, "यह सो रहा है."

सिटिजन साइंटिस्ट्स को नासा की तरफ से कोई वित्तीय मदद नहीं मिलेगी. यह अपने दम पर पैसे जमा कर रहा है और 15 मई तक सवा लाख डॉलर जुटा चुका है. इसके वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके पास सिर्फ थोड़ा सा वक्त है, जब वे इस यान से संपर्क कर पाएंगे. मुश्किल यह है कि 1970 के दशक में अंतरिक्ष भेजा गया यह यान पुरानी तकनीक से लैस है लेकिन अगर इसे फिर से कामयाब किया जा सका, तो यह दोबारा आंकड़े भेज सकेगा. इससे विज्ञान के छात्रों और आम लोगों को मदद मिल पाएगी. और अगर सिटिजन साइंटिस्ट नाकाम रहे, तो सूर्य के गिर्द इसका अनंत चक्कर जारी रहेगा.

एजेए/एमजे (डीपीए)