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जान लेने वाली झील अब नया जीवन देगी

६ फ़रवरी २०१७

लद्दाख के एक इंजीनियर ने तबाही मचाने वाली झील को वरदान में बदल दिया. अब वह सिक्किम में भी हरियाली फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

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Bildergalerie "Earth Art" Nordosten des Himalaya See
तस्वीर: Scott Kelly/NASA

भारत के सुदूर उत्तर पूर्व में स्थित सिक्किम में राज्य सरकार ने विनाशकारी बाढ़ के जोखिम को कम करने का एक रास्ता निकाला है. सरकार बर्फ से भरी झीलों का अतिरिक्त पानी निकालकर उसे किसानों को देगी. इतने बड़े पैमाने पर पानी को स्टोर करने के लिए बर्फ के टावरों का सहारा लिया जाएगा. इस पानी का इस्तेमाल गर्मियों में सिंचाई के लिए किया जाएगा.

उम्मीद है कि इस बार सर्दियों के अंत तक दक्षिणी लोहनाक ग्लेश्यिर झील का जलस्तर 20 मीटर के अपने पिछले स्तर से 2 मीटर तक घट सकता है. सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों के मुताबिक यह सितंबर से शुरु की गई साइफनिंग प्रक्रिया के कारण ही संभव हो सका है. जलस्तर के इस अंतर की निगरानी के लिए एक सेंसर को 5,400 मीटर की ऊंचाई पर लगाया गया है. सेंसर इतनी ऊंचाई पर है कि वहां तक पहुंचने के लिए पांच दिन पैदल चलना पड़ता है. 

इस ऑपरेशन में सबसे इनोवेटिव है कि निकासी व्यवस्था में पाइपलाइनों के कुछ हिस्सों को सीधा खड़ा किया गया है. इनमें से जब पानी को दबाव से बाहर फेंका जाएगा वह निकलते ही आइस कोन में जम जाएगा.

पिछले तीन जाड़ों से ऐसी ही परियोजनी को लद्दाख में पर्यावरण इंजीनियर सोनम वांगचुक द्वारा चलाया जा रहा है. यहां वांगचुक ने एक 20 और चार मीटर के आइस कोन तैयार किये हैं.

वांगचुक अब सिक्किम सरकार की इस परियोजना में काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बसंत के दौरान इन आइस कोन से पिघले हुए पानी को टैंक में इकट्ठा किया जा सकता है जिसके बाद ड्रिप सिंचाई में इस पानी का इस्तेमाल हो सकेगा.

उन्होंने बताया कि लद्दाख में सबसे बड़ी आइस कोन से तकरीनब 10 लाख लीटर जल प्राप्त होता है. यह कोन, लद्दाख और सिक्किम में मिलने वाले स्तूपों की तरह नजर आते हैं. ये स्तूप बौद्ध धर्म के पूजास्थल हैं.

वांगचुक ने कहा "इस तरह के बर्फ के स्तूपों का निर्माण कर हमारी कोशिश किसानों की मदद करना है.” उन्होंने बताया कि लद्दाख में तो वह इस पर आइस स्केटिंग, आइस हॉकी आदि की संभावनाएं तलाश रहे हैं ताकि इसे विंटर टूरिज्म का भा मुख्य आकर्षण बनाया जा सके.

एए/ओएसजे (रॉयटर्स)