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जापान में बदलेगा सौ साल पुराना बलात्कार कानून

८ जून २०१७

जापान 100 सालों में पहली बार बलात्कार कानून में सबसे बड़े बदलाव करने जा रहा है. इसके अंर्तगत बलात्कार की नयी परिभाषा, उम्रकैद की मियाद बढ़ाना और पीड़िता के मुकदमा दर्ज न कराने पर भी अभियोग चलाने जैसे संशोधन शामिल होंगे.

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Japan | Fukushima | Evakuierte Mütter ziehen vor Gericht
तस्वीर: Greenpeace/N. Hayashi

जापान के 1907 के बलात्कार कानून को बदलने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और बलात्कार पीड़िताओं ने लंबा अभियान चलाया है. बलात्कार पीड़िताओं के प्रति समाज का रवैया बहुत ही उदासीन था और बहुत से लोग आलोचना के डर से चुप रह जाते थे. 2014 में जारी किए गये सरकारी आंकड़ों के मुताबिक संभोग के लिए मजबूर की गई औरतों में से सिर्फ 5 प्रतिशत ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी. इसके अलावा सिर्फ एक तिहाई महिलाओं ने इस बारे में किसी से बात की.

30 हजार लोगों द्वारा भेजी ऑनलाइन याचिका में से एक में यह बात कही गयी है कि 100 साल बाद दंड संहिता को बदलने का यह मौका है. इस वक्त बलात्कार का जो कानून लागू है वह उस समय बनाया गया था, जब महिलाओं को वोट देने का भी अधिकार नहीं था. और इसका मुख्य मकसद ‘परिवार का सम्मान' बचाना था. नए कानून में प्रस्तावित बदलावों को लागू करने के लिए इसे संसद के ऊपरी सदन में  भी पास कराना होगा. इस वक्त समय की कमी है क्योंकि वर्तमान संसद सत्र 18 जून को समाप्त होना है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे बढ़ाया भी जा सकता है.

इस बिल को पारित कराने में इसलिए देरी हुई कि सदन में एंटी कॉन्सपिरेसी बिल को लेकर विवाद चल रहा था और प्रधानमंत्री शिंजो आबे का गठबंधन बिल पारित करने पर जोर दे रहा था. इस बिल में बलात्कार की नए तरीके से व्याख्या की गई है, जिसमें जबरदस्ती संभोग, गुदा मैथुन और मुख मैथुन को भी बलात्कार के अंर्तगत शामिल किया गया है. इस नियम के तहत पुरुषों को भी संभावित पीड़ितों में शामिल किया जाएगा. इसमें सजा को बढ़ाया जाएगा और न्यूनतम सजा की अवधि को तीन साल से बढ़ा कर पांच साल किया जायेगा.

बदले हुए कानून के तहत माता-पिता और अभिभावकों द्वारा 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ किये गए यौन शोषण में हिंसा और भय के शामिल होने की शर्त को खत्म किया जायेगा. चार नागरिक समूहों ने कानून मंत्री के सामने एक याचिका पेश की थी, जिसमें पीड़ितों पर सभी तरह की शर्तों को हटाये जाने का दबाव डाला गया था. उन्होंने कहा कि कई मामलों में शारीरिक प्रतिरोध दर्ज न होने की वजह से मामले बलात्कार की जगह सहमति से किये गये संभोग की तरह देखे जाते हैं. इस मुद्दे पर अभियान चला रहे एक वकील ने कहा कि ये बदलाव बहुत जरूरी हैं, हालांकि ये भी बहुत देर से आ रहे हैं.

एसएस/एमजे (रॉयटर्स)