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'जिहाद की दुल्हन' का सपना

४ अक्टूबर २०१४

माता पिता को कई दिनों तक पता नहीं चलता कि उनकी बेटियां कहां हैं. फिर एक फोन आता है, बेटी बताती है कि वह सीरिया में है और लड़ाई में मर्दों की मदद के लिए इस्लामिक स्टेट की सदस्य बन गई हैं.

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तस्वीर: Reuters

उत्तर सीरिया के राक्का शहर पर कुछ महीनों से इस्लामिक स्टेट आईएस के कट्टरपंथियों ने कब्जा किया हुआ है. आईएस के हथियारबंद पहरेदार पूरे शहर में फैले हुए हैं. वह वहां रह रहे लोगों पर नजर रखते हैं, देखते हैं कि महिलाओं ने बुर्का सही तरह से पहना है या नहीं और क्या शहर में सबकुछ शरिया कानून के मुताबिक चल रहा है.

तनाव भरे इस माहौल में एक महिला इंटरनेट कैफे पहुंचती है. अपने लंबे काले बुर्के के नीचे उसने एक वीडियो कैमरा छिपाया हुआ है. इससे वह इंटरनेट कैफे में बैठे लोगों का वीडियो बनाती है. इस वीडियो को फ्रांस 24 और फ्रांस 2 टेलिविजन चैनलों ने सार्वजनिक किया है.

फिल्म में कैफे के एक कंप्यूटर पर बैठी दो लड़कियों को देखा जा सकता है. वह फ्रांस में अपने माता पिता से इंटरनेट के जरिए बात कर रही हैं, "मां मैं वापस नहीं आऊंगी. वापस आने की बात तो तुम भूल जाओ." फ्रेंच में अपनी मां से बात कर रही लड़की आगे बोलती है, "मैंने यहां तक पहुंचने के लिए इतना जोखिम इसलिए नहीं उठाया ताकि मैं फ्रांस वापस लौट जाऊं...मैं यहां रहना चाहती हूं. मुझे यहां अच्छा लग रहा है. टीवी में तो बढ़ा चढ़ा कर बोलते हैं."

Bildergalerie Alltag in Syrien unter IS Herrschaft
तस्वीर: Reuters

लंदन के किंग्स कॉलेज ने एक रिपोर्ट जारी किया है जिसमें लिखा है कि यूरोप से सीरिया जाने वाली महिलाओं की उम्र अकसर 16 और 24 साल के बीच होती है. इनमें से ज्यादातर के पास कॉलेज की डिग्री होती है. माना जाता है कि यूरोप के देशों से 3000 युवा महिलाएं और पुरुष आईएस का सदस्य बनने सीरिया चले गए हैं. इनमें से 10 प्रतिशत महिलाएं हैं.

जिहाद का खुमार

राक्का के इंटरनेट कैफे में अपनी मां से बात कर रही महिला भी फ्रांस से आई है. फ्रांस से ही 60 महिलाएं और किशोरियां आईएस में शामिल होने आई हैं. फ्रांस के अधिकारियों के मुताबिक वह 60 और महिलाओं पर निगरानी रख रहे हैं क्योंकि उन पर शक है कि वह आईएस का सदस्य बनने सीरिया जाने वाली हैं.

ब्रिटेन से भी 50 महिलाएं और किशोरियां सीरिया में आईएस की सदस्य बन गई हैं. इनमें से ज्यादातर राक्का शहर में हैं और कुछ लड़ाई में भी हिस्सा ले रही हैं. जर्मनी में माना जा रहा है कि 40 महिलाएं इराक और सीरिया में आईएस का हिस्सा बन चुकी हैं. इनमें से ज्यादातर अपने माता पिता से पूछे बिना वहां गई हैं.

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तस्वीर: Reuters

जर्मनी की घरेलू खुफिया सेवा फरफासुंगशुत्स के प्रमुख हंस गेयोर्ग मासेन ने राइनिशे पोस्ट अखबार को एक इंटरव्यू में बताया, "कई नाबालिग लड़कियों को जिहादियों की दुल्हन बनना रुमानी लगता है. वे फिर उन युवा जिहादियों से शादी करती हैं जिनसे इंटरनेट पर मिली हैं."

ज्यादातर लड़कियां अपना घर इस उम्मीद में छोड़ती हैं कि उन्हें सीरिया और इराक के लड़ाकों में अपने सपनों का राजकुमार मिलेगा और वह उससे शादी करेंगे. इनमें से कई इन पुरुषों से यूरोप में मिली थीं. पहले फ्रांस की खुफिया एजेंसी में काम कर चुके लुई काप्रियोली कहते हैं कि ऐसी महिलाएं जिहादियों को उनकी लड़ाई में सहारा देना चाहती हैं और बच्चे पैदा करना चाहती हैं ताकि इस्लाम के फैलने में मदद कर सकें.

इंटरनेट पर सदस्यों की खोज

बेल्जियम में मोंतासेर अल देमेह अंटवैर्प विश्वविद्यलय में इस्लामी कट्टरपंथ पर शोध कर रहे हैं. अल मोनिटर नाम की वेबसाइट पर वह कहते हैं कि यूरोप में दक्षिणपंथी पार्टियों के इस्लाम विरोधी प्रचार की वजह से कम उम्र की महिलाएं आतंकवादी संगठनों की सदस्य बन रही हैं. इसके अलावा इन महिलाओं के बचपन के अनुभव का भी असर पड़ता है. अल देमेह बताते हैं, "इन लड़कियों को अकसर लगता है कि समाज में उनके लिए कोई जगह नहीं है. उनके समुदाय के मुस्लिम भी उन्हें स्वीकार नहीं करते, जब वे दूसरे मुस्लिमों से संपर्क करती हैं, जो बिलकुल ऐसा महसूस करते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्हें प्यार और स्वीकृति मिल रही है."

ऐसे में सोशल नेटवर्क बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. वहां यूरोप के समाज में अपनी पहचान खोज रही महिलाएं और लोगों से मिलती हैं और योजनाएं बनाती हैं कि वह तुर्की से सीरिया कैसे पहुंचेंगी. जो महिलाएं सीरिया में पहले से हैं, वह इंटरनेट के जरिए यूरोप में अपनी "बहनों" को जिहाद में आकर मदद करने के लिए आमंत्रित करती हैं. वह आईएस के बनाए गए खिलाफत और वहां की जिंदगी की एक खूबसूरत तस्वीर बनाती हैं. यूरोप से जाने वाली महिलाओं को पैसों का लालच भी दिया जाता है.

लेकिन सीरिया पहुंचने के बाद तस्वीर अलग होती है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि आईएस के जिहादियों ने 1500 महिलाओं और किशोरियों को यौन बंदी बना रखा है और कई महिलाओं को बेचा भी है. उनके साथ बुरा सलूक किया जाता है. कुछ महिलाएं सीरिया से वापस जर्मनी भी आ चुकी हैं.

रिपोर्टः डियाना होदाली/एमजी

संपादनः महेश झा