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जीका के युग में मच्छर से मुक्त हुए गांव

विश्वरत्न श्रीवास्तव, मुंबई१२ फ़रवरी २०१६

ऐसे समय में जब विश्व मच्छरों के माध्यम से फैलने वाले वायरस जीका से निपटने की तैयारी में लगा हुआ है महाराष्ट्र के कुछ गांव स्वयं को मच्छर-मुक्त बना चुके है. मच्छर नहीं होंगे तो उनसे फैलने वाली बीमारी भी नहीं होगी.

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Indien Maharashtra Anti-Mückenmaßnahme Soakpit
तस्वीर: DW/V. Shrivastava

भारत ही नहीं विश्व के अनेक देश इन दिनों जीका वायरस की आहट से चिंता में हैं. इससे बचने के लिए ना ही कोई दवा मौजूद है और ना ही टीका. मच्छरों से फैलने वाले डेंगू की तरह जीका से भी खुद को बचाना है तो मच्छरों से बचे रहना एकमात्र विकल्प है. इसी विकल्प को अपना कर महाराष्ट्र के कई गांवों ने मच्छर मुक्त होने के नुस्खे अपनाए हैं.

मच्छर मुक्त जिला अभियान

राज्य का नांदेड़ जिला इन दिनों मच्छरों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में मिली सफलता के लिए चर्चा में है. इस जिले के कई गांव मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों से मुक्त हो चुके हैं. जिले के तेमभुरनी गांव से शुरू हुआ यह अभियान अब कई गांवों में पहुंच चुका है. अभियान की शुरुआत लागभग एक दशक पहले तेमभुरनी में प्रह्लाद पाटिल के द्वारा हुई थी. इंजीनियरिंग का करियर छोड़कर गांव के विकास के लिए प्रह्लाद पाटिल ने गांधीवादी अवधारणा को अपनाया.

Indien Maharashtra Anti-Mückenmaßnahme Soakpit
तस्वीर: DW/V. Shrivastava

गांव में जगह जगह जलभराव से निपटने के लिए सोक पिट्स का निर्माण किया गया. घरों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए घर के बाहर ही 4 फुट का गड्ढा खोदकर मच्छरों पर नियंत्रण और जल-स्तर बढ़ाने का प्रयास किया. नांदेड़ जिला परिषद् के सीईओ अभिमन्यु काले ने डॉयचे वेले को बताया कि सोक पिट्स बनाने का तरीका बहुत पुराना है और सफल भी. ग्रामीण इलाकों में दौरे के दौरान मच्छरों को देखकर उन्होंने इससे निपटने के लिए मैजिक पिट (सोक पिट्स) बनाने पर जोर दिया.

अभिमन्यु काले बताते हैं कि नांदेड़ को मच्छर मुक्त जिला बनाने के लिए शुरू में कम आबादी वाले गांवों का चयन किया गया. ज्यादा आसान और असरदार बनाने के लिए तेमभुरनी मॉडल में थोड़ा परिवर्तन किया गया है. जिले के अन्य गांवों में बनाए जा रहे सोक पिट्स में 4x4 के गड्ढे में पौने तीन फीट की सीमेंट की टंकी होती है. इसे चारों ओर से पत्थरों से ढंक दिया जाता है. पाइप में ऊपर से पानी जाने की जगह होती है. इसमें जमा होने वाला पानी जमीन में चला जाता है. जिससे मच्छरों को पनपने की जगह नहीं मिल पाती.

Indien Maharashtra Anti-Mückenmaßnahme Soakpit
तस्वीर: DW/V. Shrivastava

अब तक लगभग 500 गांव इस अभियान से जुड़ चुके हैं. स्वच्छ भारत अभियान के शुरू होने के बाद इसमें और तेजी आयी है. सेनीटेशन विभाग के गंगाधर रामोद ने डॉयचे वेले से इस अभियान की सफलता का दावा करते हुए कहा, “जिले के 72 गांवों में ढूंढने से भी मच्छर नहीं मिलेंगे.” जिला परिषद् ने अब स्वच्छता अभियान के सहारे 1300 गांवों को मच्छर मुक्त बनाने का बीड़ा उठाया है. अभिमन्यु काले का दावा है, “अगले कुछ महीनों में ही यह जिला पूरी तरह मच्छर मुक्त बन जायेगा.”

भूजल स्तर में वृद्धि

तेमभुरनी के निवासियों की पहल ने गांव को ना केवल मच्छर मुक्त बना दिया अपितु इस गांव का भूजल स्तर भी बढ़ गया. तेमभुरनी मॉडल को अपनाने वाले अन्य गांवों में भी जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ रहा है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना नरेगा में तकनीकी अधिकारी विनोद गंडेवार का कहना है, “कम खर्चे में निर्मित यह मैजिक पिट क्षेत्र के भूजल स्तर को बढ़ाने में वाकई मैजिक साबित हो रहा है.” हडगांव तहसील के माराडगा के बारे में विनोद गंडेवार कहते हैं कि इस गांव को पहले पानी के लिए टैंकर मंगवाना पड़ता था अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं पड़ती. उनके अनुसार योजना में शामिल गांव के भूजल स्तर में 15-20 फीट की वृद्धि हुई है.

स्थानीय सांसद और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने डॉयचे वेले से बात करते हुए हुए जिला परिषद् और ग्रामीणों के प्रयासों की तारीफ की. उन्होंने मच्छर जनित बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक जागरुकता पर जोर दिया. गंगाधर रामोद भी सामाजिक जागरुकता की आवश्यकता जताते हुए कहते हैं कि गांव के हर छोटी और बड़ी गंदे पानी की जगह को भरने में अब तक ग्रामीणों का सहयोग सराहनीय रहा है. अभिमन्यु काले का मानना है, “ग्रामीणों की मदद से ही मच्छरों के खिलाफ लड़ाई में जीत हासिल होगी.” डेंगू हो या चिकुनगुनिया या फिर नया नया आया जीका वायरस, इन सभी से लड़ने के लिए तेमभुरनी मॉडल उपयोगी साबित हो सकता है.