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जीडीपी के आंकड़े संकेत हैं आने वाले कठिन समय का

चारु कार्तिकेय
१ सितम्बर २०२०

सकल घरेलु उत्पाद का 24 प्रतिशत गिरना सिर्फ इसी बात का प्रमाण नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वक्त एक बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है बल्कि इस बात का भी स्पष्ट संकेत है कि आने वाला समय भी बहुत ही कठिन होने वाला है.

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Indien | Coronavirus
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta

अप्रैल से जून तक की इस अवधि में उत्पादन क्षेत्र में 39.3 फीसदी और निर्माण क्षेत्र में 50.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. सेवा क्षेत्र 5.3 फीसदी गिरा है. केवल कृषि क्षेत्र में 3.4 फीसदी वृद्धि हुई है. कोविड-19 का असर दुनिया में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा है, लेकिन भारत की स्थिति बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे खराब नजर आ रही है.

आर्गेनाईजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के सिर्फ अनुसार सिर्फ इंग्लैंड की जीडीपी में इस अवधि में भारत जैसी गिरावट देखने को मिली (लगभग 21 प्रतिशत). इसके अलावा फ्रांस में लगभग 14 प्रतिशत, इटली में 13, यूरोपीय संघ में 12, कनाडा में 11, जर्मनी में 10, अमेरिका में लगभग नौ और जापान में लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट देखी गई.

अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि पूरे वित्त-वर्ष के दौरान जीडीपी में 37.5 गिरावट होने की संभावना है. इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से जुड़े प्रोफेसर अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया था कि इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में 70 लाख करोड़ रुपए की कटौती होगी और कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर लगभग सभी में निवेश गिरेगा, खपत गिरेगी और सरकार के राजस्व में भी भारी गिरावट आएगी. आरबीआई भी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसी तरह की स्थिति की चेतावनी दे चुका है.

Indien | Coronavirus | Lockdown | Auto
हर आय वर्ग में सिर्फ जरूरत की चीजों पर ही खर्च के प्रमाण नजर आ रहे हैं. ना गांवों में मोटरसाइकिलें बिक रही हैं ना शहरों में गाड़ियां.तस्वीर: DW/C. Kartikeya

खपत का गिरना सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. भारत में खपत महामारी के पहले से गिर रही थी और महामारी की रोकथाम के लिए लगाई गई तालाबंदी ने इसे पूरी तरह से बैठा ही दिया. हर आय वर्ग में सिर्फ जरूरत की चीजों पर ही खर्च के प्रमाण नजर आ रहे हैं. ना गांवों में मोटरसाइकिलें बिक रही हैं ना शहरों में गाड़ियां. आरबीआई के अनुसार जुलाई में उपभोक्ता विश्वास (कंज्यूमर कॉन्फिडेंस) अपनी इतिहास में सबसे नीचे के स्तर पर पहुंच गया था.

कैसे होगा सुधार

अब सवाल यह है कि सुधार का नुस्खा क्या है? आरबीआई का कहना है कि खपत को प्रोत्साहन देने के लिए निवेश बढ़ना जरूरी है. निजी क्षेत्र को इसी उद्देश्य से कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई थी, लेकिन कंपनियों ने उस छूट का उपयोग अपनी उधारी कम करने में और अपने नकदी भंडार को बढ़ाने के लिए किया. सरकारी खर्च से भी खपत को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, लेकिन आरबीआई का कहना है कि कोविड-19 के असर को कम करने में सरकारी खर्च बहुत बढ़ गया है और अब और खर्च करने की सरकार के पास गुंजाइश नहीं बची है.

केंद्रीय बैंक ने और कर्ज लेने से भी मना किया है क्योंकि उसके अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों पर पहले से कर्ज का भार काफी बढ़ा हुआ है. ऐसे में समय घाटे और कर्ज को कम करने का है. आरबीआई ने सरकार की कमाई बढ़ने के लिए टैक्स डिफॉल्टरों की पहचान कर उनसे टैक्स वसूलने, लोगों की आय और संपत्ति को ट्रैक कर करदाताओं की संख्या बढ़ाने और जीएसटी तंत्र में आवश्यक सुधार करने का प्रस्ताव दिया है.

इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने स्टील, कोयला, बिजली, जमीन, रेलवे और बंदरगाह जैसे क्षेत्रों में सरकारी संपत्ति को बेचने की भी सलाह दी है. बैंक का कहना है कि इससे सरकार के पास पैसे आएंगे और निजी क्षेत्र को भी निवेश करने का प्रोत्साहन मिलेगा.

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