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जीवन का अधिकार ही सबसे बड़ा मानवाधिकार: कश्मीर पर सफाई

चारु कार्तिकेय
३ दिसम्बर २०१९

कश्मीर के हालात को लेकर यूरोपीय देशों में बढ़ती चिंता के बीच भारत ने स्वीडन को कश्मीर में उठाए गए कदमों का संदर्भ समझाने की कोशिश की है. स्वीडन की विदेश मंत्री ने कश्मीर में लागू सभी प्रतिबंध हटाने की मांग की थी. 

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Indien Kaschmir-Konflikt l Stadt Srinagar
तस्वीर: picture-alliance/Xinhua/J. Dar

लिंड इस दिनों स्वीडन के राजा कार्ल सोलह गुस्ताव के साथ भारत के दौरे पर हैं. सोमवार को लिंड भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिलीं. इसके बाद जयशंकर ने ट्वीट किया कि उन दोनों के बीच आतंकवाद, विशेष रूप से सीमा-पार का आतंकवाद की चुनौतियों पर चर्चा हुई. उन्होंने ये भी ट्वीट किया कि उन्होंने लिंड के साथ बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि जीवन का अधिकार सबसे मूलभूत मानवाधिकार है. दोनों विदेश मंत्रियों ने ये भी निर्धारित किया कि आतंकवाद की चुनौती का कैसे सामना किया जाए, इस पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साथ काम करेंगे.
  

माना जा रहा है कि जयशंकर ने ट्विटर पर जिन बिंदुओं के बारे में बताया है, वो कश्मीर के ही संदर्भ में स्वीडन को भारत का दिया जवाब है. लिंड ने कश्मीर में मानवाधिकारों की बात उठाई थी इसीलिए जयशंकर ने जीवन के अधिकार को ही सबसे बड़ा मानवाधिकार बता कर कहने की कोशिश की है कि कश्मीर में भारत सरकार के कदमों का उद्देश्य मानवाधिकारों की रक्षा ही है. 

लिंड ने स्वीडन की संसद में 27 नवंबर को कहा था, "हम मानवाधिकारों का आदर करने की अहमियत पर जोर देते हैं और ये चाहते हैं कि कश्मीर के हालात को और खराब होने से बचा लिया जाए". उन्होंने यह भी कहा था, "कश्मीर में स्थिति चिंताजनक है और स्वीडन की सरकार घटनाओं पर नजदीकी से नजर रख रही है. स्वीडन और यूरोपीय संघ भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वो जम्मू और कश्मीर पर लगाए गए बाकी प्रतिबंध भी हटाए".

König Carl von Schweden
तस्वीर: Getty Images/M. Campanella

स्वीडन संयुक्त राष्ट्र की निरीक्षण संस्था यूएनएमओजीआईपी का हिस्सा है. यूएनएमओजीआईपी 1949 से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का निरिक्षण कर रही है.

भारत सरकार ने पांच अगस्त को जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया था और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इन कदमों की वजह से कोई अशांति न हो, इसलिए राज्य में भारी संख्या में सुरक्षाबलों को तैनात किया गया, आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिए गए और इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गईं. 

पिछले कुछ दिनों में इन प्रतिबंधों में कुछ ढील दी गई है. लैंडलाइन पर टेलीफोन सेवाएं और पोस्टपेड मोबाइल सेवाएं बहाल कर दी गई हैं, लेकिन प्रीपेड मोबाइल सेवाओं और इंटरनेट पर अब भी प्रतिबंध है. स्कूल और कॉलेज खोल तो दिए गए हैं पर उनमें छात्र नहीं आ रहे हैं. बाजार कभी खुलते हैं और कभी बंद पड़े रहते हैं लेकिन उनमे निरंतरता नहीं आई है.

Indien Protest von Journalisten in Kaschmir
तस्वीर: AFP/T. Mustafa

अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस स्थिति को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. स्वीडन की विदेश मंत्री से पहले जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल भी जब भारत दौरे पर आई थीं तब उन्होंने भी कश्मीर में लागू प्रतिबंधों पर कहा था कि "वहां के लोगों की मौजूदा हालत टिकाऊ नहीं है,और अच्छी नहीं है. निश्चित तौर पर उसे बेहतर करने की जरूरत है."

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