1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जेब में कैश और लक्ज़री आइटम की ख़रीदारी

१५ मई २०१०

उत्तर कोरिया अक्सर आर्थिक मुश्किलों और भूखमरी की वजह से चर्चा में रहता है. लेकिन उत्तर कोरियाई किम जोंग रयूल अभाव के साथ साथ भोग विलास को भी जानते हैं, क्योंकि वे तानाशाही परिवार के विलासिता के सामान ख़रीदते रहे हैं.

https://p.dw.com/p/NOdA
तस्वीर: AP

राजनयिक पासपोर्ट और जेबों में नोट भरे किंम जोंग रयूल पहली बार 1974 में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना पहुंचे थे. उनका मिशन था, उत्तर कोरियाई नेता किम इल सुंग और उनके कुनबे के लिए ख़रीदारी. ख़रीदारी की लिस्ट में शामिल था, मेटल डिटेक्टर, ज़हरीली गैस डिटेक्टर, फिंगर प्रिंट रीडर और इस तरह की विभिन्न चीज़े.

Nordkorea Kim Il Sung und Kim Jong Il auf Sportplatz 1992
तस्वीर: AP

रयूल कहते हैं, "तानाशाह जर्मन और ऑस्ट्रियाई उत्पादों से विला बनवाना चाहते थे, मसलन गोल्डप्लेट वाली साउंड प्रूफ और बुलेटप्रूफ खिड़कियां, विभिन्न रंगों में. मैं इन सबको बनवाकर कंटेनर में भर कर उत्तर कोरिया भेजा."

पचास के दशक में रयूल ने जर्मनी के समाजवादी हिस्से तत्कालीन जीडीआर में पढ़ाई की थी. उनके जर्मन ज्ञान के कारण उन्हें बाद के वर्षों में बार बार ऑस्ट्रिया भेजा जाता रहा. जबकि उत्तर कोरिया में लोग भूख के शिकार होते रहे, किम जोंग रयूल तानाशाह परिवार के महलों के लिए सिल्क के वॉलपेपर और मार्बल ख़रीदते रहे. शासक परिवार के लिए उन्होंने लक्जरी गाड़ियां ख़रीदीं.

75 वर्षीय किम जोंग रयूल ने अब अपनी जीवनगाथा लिखी है जिसका नाम है, तानाशाह की सेवा में. इसमें उन्होंने अपने काम के बारे में लिखा है. उनके काम यानि की तानाशाही कुनबे के लिए ख़रादारी का केंद्र वियना स्थित उत्तर कोरिया का दूतावास था. रयूल बताते हैं, "जनता भूखों मर रही थी, उनके पास हर रोज़ खाने को नहीं होता, लेकिन ये तानाशाह सत्तर के दशक में लक्जरी गाड़ियां चला रहे थे."

रयूल ने स्वीकार किया है कि वे कई बार स्टुटगार्ट गए जहां उन्होंने कुल मिलाकर दस से ज़्यादा बख्तरबंद मर्सिडिज़ पुलमन गाड़ियां ख़रीदी. उत्तर कोरिया को अक्सर ऐसी चीज़े भी ख़रीदनी होती थी जो प्रतिबंधों के कारण उन्हें बेची नहीं जा सकती थी. उत्तर कोरिया के लिए यह काम छोटी कंपनियां करती थीं, जो प्रतिबंधित मालों को रिपैक कर उत्तर कोरिया को भिजवाते थे और बदले में बड़ी रकम वसूलते थे.

1994 में उत्तर कोरियाई नेता किम इल सुंग की मौत के बाद रयूल ने देश छोड़ दिया और पश्चिम में रह गए. उन्हें पूरा विश्वास था कि उत्तर कोरिया की निरंकुश सरकार बहुत दिनों तक नहीं टिकेगी और लोकतंत्र आने में देर नहीं लगेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

परिवार के सुरक्षा के लिए रयूल ने अपने गायब होने को दुर्घटना की शक्ल दी थी. तब से वे अज्ञातवास में रहे. अब 75 की उम्र में उन्होंने सामने आने का फैसला किया एक किताब लिखकर. कहते हैं, "मरने से पहले मैं अंतिम बार शोर मचाना चाहता हूं, इस किताब के साथ जिसमें मैंने सारी बात लिख दी है." किम जोंग रयूल ने कम से कम अपना जी हल्का कर लिया है, लेकिन बाकियों को उत्तर कोरिया की तानाशाही संरचना के कार्यकलापों से परिचित भी करा ही दिया है.

रिपोर्ट: जिल्के बालवेग/मझ

संपादन: एस गौड़