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जो घृणा बोएगा, वो वही फसल काटेगा भी

डानियल हाइनरिष/एमजे२ नवम्बर २०१५

तुर्की में राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एरदोवान की एकेपी पार्टी ने चुनाव बहुमत से जीत लिया है और राजनीतिक विरोधियों पर जीत का जश्न मना रही है. डानियल हाइनरिष का कहना है कि इसके बावजूद उम्मीद की किरण खत्म नहीं हुई है.

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Türkei - Erdogan
तस्वीर: Reuters

मतगणना के तुरंत बाद इस्तांबुल में देखा जा सकता था कि तुर्की की राजनीतिक संस्कृति में समस्या क्या है. जीत का जश्न मनाने एकेपी के समर्थक झंडे लहराते गाड़ियों के जुलूस में विपक्षी टीवी चैनल के दफ्तर के सामने पहुंचे और नारेबाजी की. उनकी आंखों में जीत की चमक और हारने वालों के खिलाफ बैर का भाव. उसके बाद वे गालियां बकने लगे. चैनल पर हमला बोलने की नौबत आ गई थी. यह शर्मनाक घटना थी, लेकिन इस रात की अकेली ऐसी घटना नहीं. एकेपी के कुछ समर्थक ऐसा बर्ताव कर रहे थे कि उन्होंने किसी दुश्मन को हरा दिया हो. एक लोकतांत्रिक और बहुलवादी समाज में विजेता को हारने वालों के साथ इस अनादर के साथ पेश नहीं आना चाहिए कि हारने वालों को अपनी जिंदगी का डर होने लगे.

समाज में दरार

सच यह भी है कि इस तरह की रुझानें तुर्की में एरदोवान काल और उनकी एकेपी पार्टी से पहले भी थी. इसी तरह सभी विपक्षी पार्टियों में कुछ अधिक या कम ताकतवर नेता और ध्रुवीकरण करने वाले विचारों का रुझान दिखता है. लेकिन एकेपी और राष्ट्रपति एरदोवान ने इस व्यवस्था की पराकाष्ठा कर दी है. उन्होंने पिछले सालों में समाज में दरार इतनी बढ़ा दी है कि राजनीतिक विरोधियों के प्रति घृणा देखकर शर्मिंदगी महसूस होती है.

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डानियल हाइनरिष

आप इस देश के अत्यंत दोस्ताना लोगों को कहना चाहते हैं, तुम्हें अहसास है कि तुम एक दूसरे के साथ कितनी नीचता के साथ पेश आ रहे हो. हम बनाम तुम का खेल इस हद तक जा चुका है कि अंकारा में आतंकी हमले के शिकारों की याद में हुई एक शोक सभा में एक पक्ष सीटियां बजाकर विरोध कर रहा था. मारे गए देशवासियों का विरोध. और ऊपर से घृणा को कितना बढ़ावा दिया गया है कि एक महिला ट्विटर पर एक मृत शरणार्थी बच्चे का शोक मनाने पर शर्म का इजहार करती है. वह बच्चा कोई कुर्द था.

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एकेपी के कुछ समर्थक ऐसा बर्ताव कर रहे थे कि उन्होंने किसी दुश्मन को हरा दिया हो.तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Kilic

उम्मीद की किरण

लेकिन उपर वाले के सम्मान में ही तुर्की में उम्मीद की किरण दिखाई देती है. एक देश जहां आदेशपूर्ण शब्दों के साथ इतने सारे लोगों को घृणा और विद्वेष की ओर भेजा जा सकता है, उन्हें समझौते की ओर भी ले जाया जा सकता है. इसलिए चुनावी नतीजों के विभिन्न आकलन के बावजूद एक उम्मीद है कि राष्ट्रपति एरदोवान और देश का राजनीतिक नेतृत्व जीत की सुरक्षा में शांत होंगे, और सत्ता के लिए देश को बंटने से बाज आएंगे.

वे अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए भी इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि राजनीतिक विरोधियों के साथ संवाद के जरिए अगले कदम तय किए जाएं, देश की भलाई के लिए. तुर्की के राजनीतिज्ञों को पता होना चाहिए कि जो घृणा बोएगा, उसे कभी न कभी घृणा की वही फसल काटनी भी होगी.