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टला नहीं है ग्रेक्जिट का खतरा

२३ जुलाई २०१५

ग्रीस में कर्जदाताओं के दबाव में सुधार कानूनों के पास किए जाने पर जर्मन मीडिया में प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास की चुनौतियों पर टिप्पणी हुई है. कुछ ने ग्रीस के प्रति रवैया बदलने की वकालत भी की है.

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वित्त मंत्रालय के सफाई कर्मचारियों के साथ सिप्रासतस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Pantzartzi

जर्मन समाचार पत्रिका डेय श्पीगेल का कहना है कि ग्रीस ने नए राहत पैकेज पर बातचीत करने के लिए कर्ज देने वाले देशों की शर्तें पूरी कर ली है. अब बातचीत शुरू हो सकती है. पत्रिका ने अपने ऑनलाइन संस्करण में लिखा है, "संसद ने बड़े बहुमत से दो सुधार कानूनों को पास कर दिया, जिसे कर्जदाताओं ने तीसरे राहत पैकेज के लिए शर्त बना दिया था."

कर्ज देने वाले संगठनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय केंद्रीय बैंक और यूरोग्रुप के साथ सफल वार्ता के बाद ग्रीस को 86 अरब यूरो का नया कर्ज मिलेगा ताकि वह अगले तीन साल के खर्च की गारंटी कर पाए. वार्ता शुक्रवार को शुरू होगी. वार्ता के सफल न होने पर ग्रीस के यूरोजोन से बाहर होने का खतरा बना हुआ है. इसके बारे में बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेस्श्पीगेल लिखता है, "बचत के आदेश को ग्रीक जनता को समझाना संभव नहीं है. यूरोजोन को उस देश को रियायत देनी होगी, नहीं तो ग्रेक्जिट का खतरा है. वह नजदीक आ रहा है. औपचारिक रूप से यूरो संकट विराम कर रहा है और जर्मन संसद ग्रीस के लिए एक और राहत पैकेज का फैसला कर ग्रीष्मावकाश में चली गई है. लेकिन मदद का आश्वासन इरादे की घोषणा मात्र है, उस स्थिति के लिए जब ग्रीस कटौती करने के कर्जदाताओं के आदेश को मानेगा."

अखबार का कहना है कि ग्रीस के लोग तेजी से गरीब होते जा रहे हैं लेकिन यूरोजोन के देश ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे वे आलसी हों और ये चल नहीं सकता. फिलहाल तीसरे राहत पैकेज पर शुक्रवार को बातचीत शुरू हो रही है. आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस बार बातचीत में कर्जदाताओं की तिकड़ी के बदले चौकड़ी होगी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय केंद्रीय बैंक और यूरोजोन के प्रतिनिधियों के अलावा यूरोपीय स्थिरता मैकेनिज्म ईएसएम का प्रतिनिधि भी बातचीत में हिस्सा लेगा.

दक्षिण जर्मन अखबार डी ओबरबाडिशे का कहना है कि संसद में दूसरे सुधार कानूनों के पास होने के बाद ग्रीक प्रधानमंत्री के सामने नई चुनौतियां हैं. अखबार लिखता है, "सिप्रास की सीरिजा पार्टी के अंदर का विरोध सामने आ गया. यह वामपंथी धड़े के सांसदों का मजबूत दल है. उन्होंने सिप्रास को समर्थन देने से लगातार दूसरी बार मना कर दिया." अखबार का कहना है कि संसद में सुधार कानून विपक्ष के समर्थन से ही पास हो पाया, सरकारी बहुमत फिर से खत्म हो गया है.

संसद में कामयाबी के बाद अलेक्सिस सिप्रास कुछ समय तक चैन की सांस ले सकते हैं लेकिन ग्रीक संकट का असर जर्मनी की राजनीति पर भी दिख रहा है, जहां चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के बहुत से सांसद ग्रीस को और वित्तीय सहायता दिए जाने का विरोध कर रहे हैं. उनमें से एक संसद के गृहनैतिक समिति के प्रमुख वोल्फगांग बोसबाख भी है. दैनिक फ्रैंकफुर्टर अलगेमाइने का कहना था कि वे चांसलर की नीतियों के विरोध में होने के कारण संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं. श्पीगेल ऑनलाइन के अनुसार उन्होंने संसदीय समिति की अध्यक्षता छोड़ दी है.

एमजे/आरआर