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टीके जिन्हें ठंडा रखने की जरूरत नहीं

Brigitte Osterath१ अप्रैल २०१४

जब टीके बहुत गर्मी में रखे जाएं तो उन्हें फेंकना पड़ता है. अब शोधकर्ता ऐसे टीके का डिजाइन तैयार कर रहे हैं जो गर्मी झेल सके. नैनोटेकनोलॉजी इस काम में मददगार साबित हो सकती है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

उत्पादन से लेकर इंजेक्शन देने या किसी और इस्तेमाल तक स्वास्थ्य कर्मियों को टीके को ठंडा रखना पड़ता है. डॉक्टर्स विदआउट बॉडर्स के साथ काम करने वाले चिकित्सक सेबास्टियान डीटरिष कहते हैं, "एक कारण यह भी है कि हम बच्चों को उन बीमारी से बचाने के लिए टीका लगाने में असमर्थ हैं जो विकसित देशों में जड़ से खत्म हो चुकी हैं, जैसे पोलियो. दूर दराज के इलाकों में टीके को ठंडा रखते हुए पहुंचाना संभव नहीं है." संवेदनशील टीके के घोल का तापमान जैसे ही आठ डिग्री के ऊपर पहुंचता है वह बेकार हो जाता है. डीटरिष और उनके सहयोगियों का जिम्मा जरूरतमंदों तक टीका खराब हुए बिना पहुंचाना है. उन्हें ऐसे कमरों की तलाश करनी होती है जहां टीके को ठंडा रखने का बेहतर इंतजाम हो.

कभी कभी असफल

कई बार पूरी खेप ही फेंकनी पड़ जाती है, डीटरिष के मुताबिक, "कई बार टीके आठ डिग्री से ज्यादा में गर्म हो जाते हैं. ऐसा तब हो सकता है जब फ्रिज का दरवाजा ठीक से बंद न किया गया हो. और जब ऐसा होता है तो हमें पूरी खेप फेंकनी पड़ती है." एक बार टीका बेसर हो जाता है तो वह प्रतिरक्षा की शुरुआत नहीं कर सकता. डीटरिष का कहना है कि वे ऐसे टीके का सपना देखते हैं जिसे ठंडा रखने की बिल्कुल भी जरूरत न पड़े. वे कहते हैं, "अगर हमारे पास ऐसे टीके हों, जो एक हफ्ता या फिर एक ही दिन बिना कोल्ड स्टोरेज के रखे जा सकें तो इससे बहुत फर्क पड़ेगा."

Nigeria Polio-Impfung
पोलियो अब भी कई देशों से पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है. इसका एक कारण टीके को ठंडा रखना भी है.तस्वीर: Global Polio Eradication Initiative

"नैनोवैक्सीन" पद्धति के जरिए गर्म प्रतिरोधी टीके का विकास हो सकता है. नैनोवैक्सीन में नैनो आकार के प्राकृतिक तरीके से गलने वाले पॉलीमर का इस्तेमाल होता है. इस हफ्ते डैलेस में अमेरिकन केमिकल सोसायटी की राष्ट्रीय बैठक में आयोवा राज्य की यूनिवर्सिटी के बालाजी नरसिंहन ने नैनोवैक्सीन के साथ किए गए परीक्षण के ताजा नतीजे पेश किए. उनकी टीम चूहों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ाने में सफल रही. बालाजी नरसिंहन कहते हैं, "हमने दिखाया कि यह चूहों की प्रजाति के साथ काम करता है, और अब हम दिखाना चाहते हैं कि ये बड़े जानवरों में भी काम कर सकता है." उनकी टीम का काम इन्फ्लुएंजा के टीके पर केंद्रित है. नरसिंहन कहते हैं जिन कणों का इस्तेमाल वे करते हैं, वे उष्णकटिबंधीय बीमारियों के खिलाफ टीके के लिए भी उपयुक्त है. यह पूरी तरह से टीके के उत्पादक पर निर्भर करता है कि कौन सा एंटीजन नैनोकण के भीतर डालता है.

नैनोवैक्सीन का सबसे बड़ा संभावित लाभ यह है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता उसे कमरे के तापमान में छह से दस हफ्ते तक रख पाएंगे. नरसिंहन कहते हैं. "नैनोकण ऐसी सामग्री से बने होते हैं जो उच्च स्थिरता वाले होते हैं. सिर्फ पानी ही उन्हें अलग कर सकता है. उन्हें सिर्फ सूखी जगह पर रखने की जरूरत है." लोगों को सिर्फ एक ही खुराक की जरूरत होगी. नैनोवैक्सीन की खासियत ये है कि स्प्रे के जरिए भी दवा की खुराक ली जा सकती है. इसमें सुई की भी जरूरत नहीं पड़ती. नरसिंहन फिलहाल जानवरों पर इसका परीक्षण कर रहे हैं. अगर लैब में नैनोवैक्सीन अच्छा प्रदर्शन जारी रखता है तो भी इसके बाजार में आने में सालों लग जाएंगे.

अब तक जो गर्मी प्रतिरोधी टीका मौजूद है वह केवल मेन अफ्री वैक (MenAfriVac) है. जिसका इस्तेमाल मस्तिष्क ज्वर के लिए होता. स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसके 40 डिग्री तापमान में चार दिन तक रखने के बाद इस्तेमाल की मंजूरी दी है. साल 2012 में शोधकर्ताओं ने चैड और बेनिन में टीकाकरण अभियान के दौरान इस टीके का सफल परीक्षण किया था. डीटरिष मेन अफ्री वैक अभियान पर चैड में काम कर चुके हैं. डीटरिष कहते हैं, "वह सब कुछ बदल देता है. ज्यादातर समय उसे ठंडा रखना पड़ता है लेकिन जैसे टीका अभियान शुरू होता है, आप कार में सवार होकर जहां जाना चाहते हैं जा सकते हैं." लेकिन अब तक साफ नहीं है कि हर टीके को ठंडा रखने की जरूरत होती है या नहीं. अक्सर, यह फैसला शोधकर्ताओं के प्रयोगशाला में किए गए परीक्षण पर निर्भर करता है. डीटरिष कहते हैं, "हमें पता है कि टिटेनस और हिपेटाइटिस के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले टीके अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं. सैद्धांतिक रूप से हम उन्हें कम अवधि के लिए कोल्ड स्टोरेज के बाहर रख सकते हैं."

रिपोर्टः ब्रिगिटे ओस्टेराथ/एए

संपादनः आभा मोंढे

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