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टूटी मोदी की चुप्पी या लोगों का भ्रम

१४ अक्टूबर २०१५

दादरी कांड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी लंबी चुप्पी तोड़ दी है. लेकिन कुलदीप कुमार का कहना है कि इससे हिंदुत्ववादी तत्वों पर किसी भी तरह का अंकुश लगने की संभावना नहीं है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

दादरी कांड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कहा है उससे इस बात की कोई उम्मीद नहीं बंधती कि आने वाले दिनों में सांप्रदायिक प्रचार में कमी आएगी और हिंदुत्ववादी तत्वों पर किसी भी तरह का अंकुश लगेगा. मोदी ने दादरी में हुई घटना को ‘दुखद' बताया है.

दादरी में कई दिनों तक एक बछिया के खोने और उसे काटे जाने की अफवाह फैलाए जाने के बाद रात में साढ़े दस बजे एक मंदिर के लाउडस्पीकर से यह घोषणा की गई कि अखलाक नाम के व्यक्ति के घर में गौमांस खाया गया है और अभी भी उसके फ्रिज में वह रखा हुआ है. इसके बाद एक उन्मादी भीड़ ने अखलाक के मकान पर हमला बोल दिया और उसे पीट-पीट कर जान से मार डाला. उसके लड़के की इतनी पिटाई की गई कि वह अस्पताल के आईसीयू में हफ्तों जिंदगी और मौत के बीच झूलता रहा. उसके परिवार का कहना था कि फ्रिज में बकरे का गोश्त था और बाद में जांच के बाद यह बात सही निकली.

इस घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी के विधायक संगीत सोम, सांसद साक्षी महाराज, केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा और लोकप्रिय नेता साध्वी प्राची ने कई दिन तक लगातार भड़काऊ बयान दिए.

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की नजर से ये सारे तथ्य ओझल हैं. उनका कहना है कि इस घटना को उनके विरोधी ‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि उनकी पार्टी ऐसे ‘छद्म-धर्मनिरपेक्ष' लोगों के हमेशा खिलाफ रही है. कानून-व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है. फिर दादरी की घटना के लिए केंद्र सरकार को क्यों दोष दिया जा रहा है? मोदी ने सवाल किया है कि बार-बार उनकी चुप्पी के बारे में सवाल क्यों पूछे जा रहे हैं जबकि इसका केंद्र सरकार से कोई लेना-देना नहीं है और उनकी पार्टी इस तरह की घटनाओं के खिलाफ रही है.

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी ही पार्टी के नेताओं और अपनी ही सरकार के मंत्रियों के मुस्लिम-विरोधी बयानों से बेखबर हैं? यदि नहीं, तो फिर उन्होंने आज तक इन बयानों की आलोचना क्यों नहीं की? यदि भारतीय जनता पार्टी दादरी कांड जैसी घटनाओं के विरुद्ध है, तो उसने अपने विधायकों और सांसदों पर लगाम क्यों नहीं कसी? इसके पहले भी उसके अनेक नेता सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाले बयान देते रहे हैं लेकिन पार्टी ने कभी उन पर किसी तरह का अंकुश नहीं लगाया. क्या शीर्ष नेताओं का सिर्फ यह कह देना पर्याप्त है कि पार्टी ऐसी घटनाओं के विरुद्ध है?

प्रधानमंत्री मोदी के बयान से उन लोगों को निराशा होगी जो यह उम्मीद कर रहे थे कि देश का प्रधानमंत्री होने के नाते वह राजधर्म का निर्वाह करेंगे. उन्हें यह तकनीकी मुद्दा उठाना शोभा नहीं देता कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन है क्योंकि दादरी कांड और इस तरह की अन्य अनेक घटनाओं के पीछे उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का सीधा-सीधा हाथ है और वे घटना के पहले और बाद में भी खूब सक्रिय रहे हैं.

यदि यह मान भी लें कि मोदी का यह आरोप सही है कि उनके विरोधी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं, तो इस कोशिश को नाकाम करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा और केंद्र सरकार क्या कर रहे हैं? उन्होंने इस ध्रुवीकरण को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं और उनकी भविष्य की योजना क्या है?

मोदी के बयान से इस बारे में कोई संकेत नहीं मिलता. उनके बयान में स्पष्ट तौर पर दीख रहा है कि उनकी कोशिश इस पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ने और सारा दोष विरोधियों के मत्थे मढ़ने की है. उनकी चुप्पी से कम-से-कम देशवासियों को कुछ भरम तो बना हुआ था. चुप्पी टूटते ही वह भरम भी टूट गया है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार