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भारत में सात करोड़ छात्र लेते हैं निजी कोचिंग

प्रभाकर७ अप्रैल २०१६

देश में सात करोड़ से ज्यादा छात्र कोचिंग या निजी ट्यूशन का सहारा लेते हैं. यह कुल छात्रों की तादाद का लगभग 26 फीसदी है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की इस रिपोर्ट ने देश में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा कर दिया है.

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Eurythmie und Bihu-Tanz
तस्वीर: DW/L. Heller

इससे साफ है कि स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का स्तर ठीक नहीं है. इस रिपोर्ट ने कोचिंग के तौर पर देश में चल रही समानांतर शिक्षा व्यवस्था से भी पर्दा उठा दिया है. निजी ट्यूशन लेने वाले छात्रों की तादाद के मामले में पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा 81 फीसदी के साथ पहले और पश्चिम बंगाल 78 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है.

भारत में शिक्षा की स्थिति पर एनएसएसओ ने यह सर्वेक्षण वर्ष 2014 में 66 हजार घरों में किया. इसकी रिपोर्ट अभी जारी की गई है. इसमें कहा गया है कि निजी ट्यूशन या कोचिंग का सहारा लेने वालों में 4.1 करोड़ छात्र हैं और तीन करोड़ छात्राएं. रिपोर्ट के मुताबिक, परिवार की कुल आय का 11 से 12 फीसदी निजी ट्यूशन पर खर्च होता है. कुछ मामलों में यह रकम 25 फीसदी तक है.

स्कूलों से ज्यादा ट्यूशन पर खर्च

निजी ट्यूशन के मामले में अमीरों व गरीबों के बीच कोई खास अंतर नहीं है. हर तबके के लोग अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक अपने बच्चों को निजी ट्यूशन के लिए भेजते हैं. अभिभावकों और छात्रों से बातचीत के हवाले इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं है. वहां छात्रों के मुकाबले शिक्षकों की तादद कम होने की वजह से उनके लिए हर छात्र पर समुचित ध्यान देना संभव नहीं होता. ऐसे में बेहतर नतीजों और आगे बेहतर संस्थानों में दाखिले के लिए निजी ट्यूशन छात्र जीवन का एक अहम हिस्सा बन गए हैं.

दिलचस्प बात यह है कि ग्रामीण इलाकों की सबसे गरीब 20 फीसदी आबादी में से भी 17 फीसदी घरों के बच्चे निजी ट्यूशन को तरजीह देते हैं. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 38 फीसदी से कुछ ज्यादा है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों के छात्रों के मामले में निजी ट्यूशन पर खर्च ज्यादा है और कई मामलों में परिवार की कुल आय का एक-तिहाई हिस्सा इसी में खर्च होता है. गैर-सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का खर्च सरकारी स्कूलों के मुकाबले 22 गुना ज्यादा है.

स्कूलों में पढ़ाई का स्तर

आखिर इस परिस्थिति की वजह क्या है? इस सवाल का जवाब देते हैं एक अभिभावक सुनील मित्र. वह कहते हैं, "स्कूलों की पढ़ाई के भरोसे अच्छे नंबर लाना संभव नहीं है. निजी ट्यूशन रखना हमारी मजबूरी है." तो क्या देश के ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई का स्तर घटिया है? एक अन्य अभिभावक सावित्री दत्त इस सवाल का जवाब सवाल से ही देती हैं. सावित्री कहती हैं, "अगर स्कूल में पढ़ाई बढ़िया होती तो हमें ट्यूशन पर इतना खर्च क्यों करना पड़ता?"

एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल मनोज मोहंती कहते हैं, "यह दरअसल एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या है. आजकल हर मां-बाप अपने बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहता है." वह कहते हैं कि खासकर सरकारी स्कूलों में एक कक्षा में अमूमन सौ से ज्यादा छात्र होते हैं. ऐसे में किसी शिक्षक के पास सभी छात्रों पर पर्याप्त ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पाता. निजी स्कूलों में स्थिति कुछ बेहतर जरूर है. लेकिन वहां भी किसी शिक्षक के लिए हर छात्र पर पूरी तरह ध्यान देना संभव नहीं है. मोहंती कहते हैं कि पैसे ज्यादा होने की वजह से प्रतिभावान शिक्षक भी स्कूलों की नौकरी छोड़ कर कोचिंग संस्थानों का रुख कर रहे हैं. ऐसे में स्कूलों के लिए बेहतर शिक्षक पाना भी एक समस्या बन गई है.

कोचिंग संस्थानों की दलील

कोचिंग संस्थानों के पास अपने पक्ष में पर्याप्त दलीलें हैं. एक ऐसे ही संस्थान के मालिक मोहित राय कहते हैं, "स्कूलों में शिक्षक एक छात्र पर एक मिनट से ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता. ऐसे में वह छात्र क्या समझेगा?" एक अन्य निजी शिक्षक पलाश कुमार दत्त कहते हैं कि अगर कोचिंग या निजी ट्यूशन से फायदा नहीं होता, तो लोग इस पर इतनी बड़ी रकम नहीं खर्च करते. तमाम ऐसे शिक्षकों की दलील है कि अगर स्कूलों में पठन-पाठन का स्तर बेहतर होता, तो छात्र ऐसे संस्थानों का रुख नहीं करते. इसके अलावा छात्रों की तादाद लगातार बढ़ रही है और उस अनुपात में बेहतर कॉलेजों में सीटों की तादाद नहीं बढ़ रही. इस प्रतिद्वंद्विता ने भी निजी ट्यूशन को बढ़ावा दिया है.

बच्चों की पसंद का स्कूल

आखिर इस परिस्थिति में सुधार कैसे किया जा सकता है? इस पर सबकी अलग-अलग दलीलें हैं. समाजविज्ञानी मनोहर घटक की राय में कॉलेजों में सीटों की तादाद बढ़ा कर परिस्थिति में कुछ हद तक सुधार किया जा सकता है. लेकिन मोहंती कहते हैं कि यह कोई स्थायी समाधान नहीं है. पहले लोगों की सोच में बदलाव जरूरी है. उनको तय करना होगा कि आखिर उनकी शिक्षा का मकसद क्या है और वे जीवन में आगे चल कर क्या हासिल करना चाहते हैं.

बहरहाल इस रिपोर्ट ने देश की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को आईना तो दिखा ही दिया है.