1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ट्रिपल तलाक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

अपूर्वा अग्रवाल
११ मई २०१७

भारतीय सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मसले पर सुनवाई शुरू कर दी है. कोर्ट ट्रिपल तलाक, निकाह, हलाला और बहुपत्नी प्रथा के खिलाफ दायर याचिका पर छह दिनों तक सुनवाई करेगी.

https://p.dw.com/p/2cm1F
Indien Bombay Massenhochzeit von Muslimen
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

पिछली सुनवाई में भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस मसले से जुड़े पक्षकारों से राय मांगी थी और कहा था कि कोर्ट 11 मई को ही वह सवाल तय करेगा जिन पर सुनवाई होगी. कोर्ट ने यह पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह निकाह हलाला, बहुपत्नी प्रथा और ट्रिपल तलाक से जुड़े मुद्दे पर ही सुनवाई करेगा. मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यों वाली बेंच के सभी न्यायाधीश अलग-अलग धर्मों से हैं.

एनडीटीवी के हवाले से कहा गया है कि "बेंच यह देखेगी कि क्या यह धर्म का मामला है. अगर पाया गया कि यह धर्म का मामला है तो कोर्ट इसमें दखल नहीं देगी. लेकिन अगर यह धर्म का मामला नहीं निकला तो सुनवाई आगे चलती रहेगी. तीन तलाक से मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है या नहीं, इस की जांच कोर्ट करेगी. बहुविवाह पर कोर्ट सुनवाई नहीं करेगा." मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पहले तीन तलाक का मुद्दा ही सुना जाएगा. इस सुनवाई में पहले तीन दिन चुनौती देने वालों को मौका मिलेगा. फिर तीन दिन डिफेंस वालों को मौका मिलेगा.

चुनौती देने वालों को बताना पड़ेगा कि धर्म की स्वतंत्रता के तहत तीन तलाक का मुद्दा नहीं आता. वहीं दूसरे पक्ष को बताना होगा कि क्या यह धर्म का हिस्सा है. मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर याचिका में मुस्लिम समुदाय में जारी तीन तलाक प्रथा को चुनौती देते हुए उसे असंवैधानिक बताया गया है. कोर्ट ने बीती सुनवाई में जोर देते हुये कहा था कि यह मामला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता. हालांकि कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस सुनवाई में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कोई चर्चा नहीं की जायेगी.

मामले में पक्षकार बनी केंद्र सरकार ने इस मसले पर अपने सवाल कोर्ट को सौंप दिये हैं. सरकार ने कोर्ट से पूछा है कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह की इजाजत दी जा सकती है? सरकार ने दूसरे सवाल में पूछा है कि समानता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में से किसे प्राथमिकता दी जाए? तीसरे सवाल में पूछा गया है कि पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं? और क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं?