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स्कूली पढ़ाई का सालाना खर्च सवा लाख रुपये

१७ मई २०१५

एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार स्कूलों में बच्चों पर सालाना खर्च सवा लाख रुपये तक पहुंच गया है. स्कूलों की फीस महंगाई से दोगुना तेजी से बढ़ रही है. माता-पिता के लिए बच्चों को पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा है.

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Deutschunterricht in Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जो काम भारत में परिवार नियोजन के कई कार्यक्रम नहीं कर पाए वह अब स्कूलों की महंगाई कर रही है. स्कूलों की बढ़ती फीस और महंगी होती शिक्षा के कारण लोग अब एक से ज्यादा बच्चा नहीं चाहते और उन्हें 'हमारे एक' से ही संतोष करना पड़ता है. उद्योग संगठन एसोचैम द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 10 साल में स्कूलों की फीस, ट्यूशन फीस, ड्रेस तथा कॉपी किताबें और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से बच्चों को पढ़ाने का खर्च 150 प्रतिशत तक बढ़ गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके कारण बड़े शहरों में अभिभावकों के लिए बच्चों की ट्यूशन फीस और अन्य खर्च उठा पाना मुश्किल हो गया है.

संगठन ने कहा है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य मुख्य जरूरतों के बढ़े खर्च की तुलना में लोगों की आय में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है. रिपोर्ट के अनुसार एक बच्चे पर शिक्षा से जुड़ा खर्च 2005 के 55 हजार रुपये प्रतिवर्ष से बढ़कर 2015 में सवा लाख रुपये प्रतिवर्ष पर पहुंच गया है. एसोचैम ने कहा है कि अपनी युवा जनसंख्या का भरपूर फायदा उठाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और इसे लोगों की आय के दायरे में लाने की जरूरत है और इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को जिम्मेदारी लेनी होगी.

इस सर्वे में अप्रैल-मई 2015 के दौरान दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, अहमदाबाद, देहरादून, बेंगलुरु और चंडीगढ़ जैसे शहरों के करीब 1600 अभिभावकों ने हिस्सा लिया. रिपोर्ट के अनुसार हर दस में से नौ लोगों का कहना था कि बच्चों का स्कूली खर्च पूरा कर पाना बहुत मुश्किल हो गया है. साथ ही स्कूलों की बढ़ती फीस के कारण स्कूलों की पसंद भी प्रभावित हो रही है. सर्वे के मुताबिक 70 प्रतिशत से अधिक अभिभावक अपनी आय का 30 से 40 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं.

रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के स्कूलों की औसत फीस 65,000 रुपये से सवा लाख रुपये तक पहुंच गयी है, जबकि तीन से पांच साल के बच्चों के प्ले स्कूलों की फीस भी 35,000 से 75,000 रुपये तक हो गयी है. इन खर्चों में यूनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी, परिवहन, खेलकूद की गतिविधियां, स्कूल ट्रिप एवं अन्य स्कूली खर्च शामिल हैं.

रिपोर्ट के अनुसार स्कूलों की फीस महंगाई से दोगुना तेजी से बढ़ी है. दो या अधिक बच्चों वाले अभिभावक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. अधिकांश मामलों में स्कूल अपनी यूनिफॉर्म में जंपर, ब्लेजर या विशिष्ट ओवरकोट शामिल करते हैं. अधिकांश स्कूलों की यूनिफॉर्म किसी विशेष दुकान पर ही उपलब्ध होती है, जिससे दुकानदार अभिभावकों से मनचाही कीमत वसूलते हैं. सर्वे में कहा गया कि 80 प्रतिशत अभिभावक बच्चों के स्कूली खर्च के कारण घूमने और घरों की मरम्मत जैसी जरूरतों पर होनेवाले खर्च में कटौती करते हैं.

आईबी/एमजे (वार्ता)