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रोकना होगा 'ट्रिपल तलाक'

आशुतोष पांडेय२ अगस्त २०१५

एक बार में तीन बार तलाक कह दिया और टूट गया रिश्ता? शादी के जिस संबंध को तमाम कसमों और गवाहों के सामने जोड़ा जाता है, उसे तोड़ने के इतने आसान नियम क्या स्वीकार्य होने चाहिए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत में फेसबुक और ट्विटर जैसे अन्य सोशल मीडिया वेबसाइटों, स्काइप और मोबाइल फोन के जरिए बढ़ते हुए तलाक के मामलों के मद्देनजर कुछ मुस्लिम महिला संगठनों समेत कई महिला अधिकार संगठन 'ट्रिपल तलाक' यानी एक ही बैठक में होने वाले तलाक को गैरकानूनी घोषित किए जाने की मांग कर रहे हैं.

मुसलमान पुरुष तीन बार तलाक शब्द का उच्चारण करके अपनी शादी समाप्त कर सकते हैं. लेकिन कई मुस्लिम देशों में ये उच्चारण एक ही बार में ना कर के तीन महीने की अवधि में करने का नियम है, ताकि पति को तीसरे और अंतिम बार तलाक के उच्चारण से पहले अपने फैसले पर ठीक से विचार करने का पर्याप्त मौका मिल सके.

Pakistan Frauen in Burka
पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई इस्लामी देशों में ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित है.तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Qureshi

पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई इस्लामी देशों में ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित है. कई देशों में तो पति-पत्नी के बीच सुलह करवाने के लिए मध्यस्थता परिषदों और न्यायिक हस्तक्षेपों का भी प्रावधान है. लेकिन भारत में स्थिति इससे अलग है. मुस्लिम पर्सनल लॉ अभी भी इस तरह के ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है.

भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़े कोई संहिताबद्ध कानून नहीं हैं. ये मुख्य रूप से अंग्रेजों के समय के दो कानूनों द्वारा नियंत्रित होते हैं. पहले 1937 एक्ट में कहा गया है कि भारत के मुसलमान शरिया से संचालित होंगे. लेकिन उसमें यह उल्लेख नहीं है कि शरिया में क्या शामिल है और क्या नहीं और शरिया के विभिन्न पहलू क्या हैं. दूसरा है 1939 एक्ट, जिसमें ऐसे 9 कारणों का जिक्र है जिनके आधार पर एक मुस्लिम महिला तलाक के लिए अदालत जा सकती है. इनके अलावा 1986 का रखरखाव अधिनियम भी है जिसके अनुसार तलाक के बाद मुस्लिम महिला एकमुश्त रखरखाव पाने की हकदार है.

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की ज़ाकिया सोमन कहती हैं "मामले से जुड़े सभी पहलुओं का नियंत्रण ऐसे कुछ धार्मिक लोगों की समझ पर निर्भर करता है, जिनमें काफी सीमित और पितृसत्तात्मक सोच वाले 100 फीसदी पुरुष हैं. इसी का नतीजा हमें ट्रिपल तलाक और बहुविवाह की घटनाओं के रूप में दिखता है."

सोमन आगे कहती हैं कि "इसलिए कुरान की वो हिदायतें जो महिलाओं के अधिकारों की बात करती हैं या कुरान की वह भावना जिसमें महिलाओं को शादी और घर में तमाम अधिकारों की बात है, उन्हें ज्यादा नहीं फैलाया गया.”

बीएमएमए ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए कुरान पर आधारित एक मसौदा तैयार किया है. यह संगठन समाज और संसद से शादी और परिवार के मामलों को नियंत्रित करने के लिए संहिताबद्ध कानून बनाने का आह्वान कर रहा है. साथ ही ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाने के लिए पुरुषों सहित समुदाय के अन्य सदस्यों से समर्थन जुटा रहा है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे रूढ़िवादी मुस्लिम संगठन ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहते. उनके अनुसार यह इस्लामी कानून का अभिन्न हिस्सा है. बोर्ड के एक मेंबर कमाल फारूखी ट्रिपल तलाक के दुरुपयोग को हतोत्साहित करने की बात तो करते हैं लेकिन वे इस इस्लामी कानून पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं हैं.

इस पर ज़ाकिया सोमन कहती हैं "इंतजार करने से बात नहीं बनेगी. हम भारत में चार स्थानों पर शरिया अदालतें चलाते हैं. 2014 में हमारे सामने आए करीब 250 मामलों में से अधिकतर ट्रिपल तलाक, एकतरफा तलाक, पत्नी या गवाहों की अनुपस्थिति में तलाक के मामले थे."

मुस्लिम समुदाय के बहुत से उलेमा और विद्वान भी 'ट्रिपल तलाक' को कुरान और शरिया में उल्लिखित तलाकों का सबसे खराब रूप मानते हैं.

ज़ाकिया सोमन कहती हैं "इस कानूनों में किसी भी तरह के सुधार लाने की कोशिशों को यह कहकर रोका जाता है कि धार्मिक मामलों में दखल मत दो. वे कहते हैं कि कानून दिव्य है. जबकि हम सब जानते हैं कि कानून के बारे में कुछ भी दिव्य नहीं है और उसे इंसानों ने ही बनाया है."

रिपोर्ट: आशुतोष पांडेय