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बिजली गिरने से मौत को कितना रोकेंगे ताड़ के पेड़

१२ नवम्बर २०१९

बांग्लादेश में गड्ढों से भरी घियोर गांव की सड़कों पर एक ही तरह के पेड़ खड़े दिखाई देते हैं. ये ताड़ के पेड़ हैं. 2017 में इन पेड़ों को लगाया गया ताकि बिजली गिरने के हादसों से लोगों को बचाया जा सके.

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Bangaldesch Senf-Felder in Manikganj
तस्वीर: Muhammad Mostafigur Rahman

बांग्लादेश के कृषि विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञानी मुराद अहमद फारुख बताते हैं कि बंगाल की खाड़ी से आती नम और गर्म हवा और दूसरी तरफ से ठंडी और भारी हवा जो हिमालय के इलाके से उठ कर यहां पहुंचती है, इन दोनों का आपस में मिलना बांग्लादेश में आसमानी बिजली पैदा करता है. 

जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण गर्म हो रहा है और इसमें ज्यादा नमी रह रही है. इसकी वजह से घातक बिजली गिरने की घटनाएं पहले के मुकाबले अब ज्यादा हो रही हैं. बांग्लादेश के लिए तो बीते सालों में यह सबसे घातक आपदा बन गई है.

बांग्लादेश के आपदा मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल बांग्लादेश में करीब 360 लोगों की जान बिजली गिरने की घटनाओं में गई. यह संख्या बाढ़ और चक्रवात के कारण होने वाली मौतों से कहीं ज्यादा है. 2016 में तो बिजली गिरने की एक ही घटना में 80 लोगों की जान चली गई थी.

Bangladesch BG Bildergalerie Mann auf Gochsengespann
तस्वीर: DW/Mustafiz Mamun

घियोर के लोग इस खतरे को कम करने की कोशिश कर रहा है. ताड़ के पेड़ बिजली की दिशा बदल कर लोगों की रक्षा कर सकते हैं. स्थानीय प्रशासन ने 2017 में प्रधानमंत्री शेख हसीना की अपील पर पेड़ लगाने शुरू किए. प्रधानमंत्री ने लोगों से मकानों को अर्थिंग सिस्टम के साथ बनाने की भी अपील की. यह सिस्टम आसमान से गिरने वाली बिजली को सीधे जमीन के अंदर पहुंचा देता है.

आसमानी बिजली से बचाव के उपायों को अब देश के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना और नेशनल बिल्डिंग का हिस्सा बना दिया गया है. घियोर के स्थानीय चुने हुए अधिकारी अब्दुल बातेन ने बताया कि उन्होंने आपदा प्रबंधन मंत्रालय और दूसरी योजनाओं से मिले 500 अमेरिकी डॉलर खर्च कर ताड़ के 500 पेड़ लगाए हैं. बातेन ने कहा, "यह बिजली गिरने के कारण जाने वाली लोगों की जानों को बचाने के लिए सरकार की ओर से एतियाती उपाय है."

बांग्लादेश के आपदा प्रबंधन विभाग ने पूरे देश में 48 लाख ताड़ के पेड़ लगाने में मदद की है. पहले 10 लाख पेड़ों का लक्ष्य रखा गया था. हालांकि बिजली गिरने की वजह से होने वाली मौतों का सिलसिला अब भी जारी है. घियोर में हाल ही में 55 साल के मोंगोल चंद्र सरकार की मौत हुई है. उस वक्त वह तालाब में नहाने जा रहे थे. 57 साल के अब्दुल बातेन बताते हैं कि अब तो जैसे ही बारिश शुरू होती है, वह अपने खेतों से बाहर निकल जाते हैं.

Bangladesch Anpflanzung von Palmen als Schutz vor Blitzschlägen
तस्वीर: Reuters/A.Z.M. Anas

ईंट के भट्ठे में मजदूरी करने वाले 55 साल के अब्दुल लतीफ भी यही करते हैं. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के बारे में तो नहीं जानते, लेकिन यह जरूर देख सकते हैं कि वातावरण गर्म हो रहा है. पास के कालिया गांव में रहने वाले आजाद मियां बिजली गिरने की बढ़ती घटनाओं के लिए बड़े पेड़ों की कटाई को जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है कि लोगों ने घर बनाने और चावल के खेतों के लिए जंगल साफ कर दिए हैं. उन्होंने कहा, "खजूर, सुपारी, नारियल और ताड़ जैसे ऊंचे पेड़ तो अब बिल्कुल खत्म हो गए हैं." उन्होंने बताया कि इस तरह के पेड़ गिरती बिजली से लोगों को बचाते थे.

मौत से बचाव

लोगों में जागरूकता से मौतों की संख्या में कमी आ सकती है. इस साल सितंबर के मध्य तक 180 लोगों की जान बिजली गिरने से गई है. पिछले साल यह सख्या 360 थी. हालांकि राजधानी ढाका में लोगों को जागरूक करने के लिए काम करने वाली एक एजेंसी का दावा है कि इस साल फरवरी से अगस्त तक 246 लोंगों की मौत हुई है. यह दावा मीडिया रिपोर्टों के आधार पर किया गया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 307 लोगों की मौत हुई जो 2015 के मुकाबले दोगुनी है.

आपदा मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव मोहम्मद मोहसिन का कहना है कि जैसे जैसे लोग इस खतरे के बारे में जान रहे हैं, वे इससे बचने और खतरे को कम करने के उपायों पर काम भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "सबसे बड़ा कारण है जागरूकता." उनका कहा है कि इस आपदा का असर अर्थव्यवस्था पर भी हो रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल सुनामगंज इलाके में किसानों को मजदूरी के लिए लोग नहीं मिल रहे थे. इस इलाके में बिजली गिरने की घटनाएं बहुत ज्यादा होती हैं.

पर्यावरण विज्ञानी फारुख के मुताबिक तेजी से बढ़ने वाली चावल की फसल का इस्तेमाल लोगों को इस आपदा से कुछ राहत दे सकता है. चावल की यह फसल अप्रैल महीने में ही तैयार हो जाती है जबकि यहां बिजली गिरने का असल मौसम मई और जून में आता है.

Bangladesch Anpflanzung von Palmen als Schutz vor Blitzschlägen
तस्वीर: Reuters/A.Z.M. Anas

बिजली गिरने की चपेट में आए लोगों को सिर्फ जान जाने का ही खतरा नहीं है, बल्कि बहुत से लोग जल जाते हैं तो कुछ के कान बेकार हो जाते हैं. बहुत से लोगों को न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी होती हैं.

खतरा कम कैसे हो

फारुख बिजली गिरने के लिए जंगलों की कटाई, बढ़ते वायू प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है, "हमारे वातावरण में कुछ अभूतपूर्व घटित हो रहा है." बांग्लादेश के मौसम विभाग में काम करने वाले अब्दुल मन्नान का कहना है कि बिजली गिरने का समय अब बढ़ कर लगभग पूरे साल हो गया है. यह फरवरी से ही शुरू हो जा रही है.

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश ने बीते दशकों में चक्रवात और बाढ़ से होने वाली मौत को कम करने में सफलता पाई है. इसमें अर्ली वार्निंग सिस्टम और सुरक्षात्मक संरचनाओं की बड़ी भूमिका है. अब बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए भी इसी तरह के उपाय करने होंगे.

आपदा मंत्रालय के मोहसिन का कहना है कि बांग्लादेश में जब ज्यादा बड़े पेड़ थे, तब यहां बिजली गिरने से होने वाली मौत की संख्या कम थी. हालांकि वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि पेड़ों को बड़ा होने में वक्त लगेगा और ऐसे में अगले कई साल तक इनसे कोई बचाव नहीं मिल सकेगा. इस बीच कुछ और चीजों को बदलने की जरूरत होगी. फारुख ने कहा, "क्या आप 25 साल तक इंतजार करेंगे? तब तक तो बहुत से किसान और मछुआरे मर जाएंगे."

फारुख का आकलन है कि बिजली गिरने से मरने वालों में 80 फीसदी लोग किसान और मछुआरे हैं जिन्हें घर से बाहर निकल कर काम करना पड़ता है.

एनआर/एके (रॉयटर्स)

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