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तालिबान और अल कायदा पर आईएस का दबाव

२७ अक्टूबर २०१४

इस्लामिक स्टेट के अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पैठ बनाने की कोशिशों से अधिकारी ही नहीं जिहादी भी चिंतित हैं. आने वाले समय में इस्लामिक स्टेट तालिबान के लिए समस्या पैदा कर सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/abaca/Yaghobzadeh Rafael

इन गर्मियों में जब सीरिया और इराक के बड़े इलाकों में कट्टरपंथी इस्लामी आंदोलन शुरू हुआ तो 2001 से अफगानिस्तान में युद्ध लड़ रहे तालिबानी चरमपंथियों को समझ में नहीं आया कि वे क्या प्रतिक्रिया दिखाएं. साथी जिहादियों के तौर पर उनका दबे तौर पर स्वागत किया गया, लेकिन यह मुद्दा तब विवादास्पद हो गया जब इस्लामिक स्टेट के प्रमुख अबु बकर अल बगदादी ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया. तालिबान का नेता मुल्लाह उमर अमीर उल मोमिनीन है जिसका मतलब है मुसलमानों का शीर्ष नेता है. 1996 में एक हजार मौलवियों ने मुल्लाह उमर को यह खिताब दिया. हालांकि उसने खुद को कभी खलीफा घोषित नहीं किया ना ही उसने देश को खिलाफत बताया.

समाचार एजेंसी डीपीए को विद्रोहियों से जुड़े करीबी सूत्रों ने बताया कि अफगान तालिबान की इस मुद्दे पर आईएस तक पहुंचने की कोशिश खराब रहीं. एक अफगान खुफिया अधिकारी के मुताबिक, "आईएस ने तालिबान से कहा कि मुल्लाह उमर के विपरीत अल बगदादी खलीफा है और कहा कि अगर अफगान तालिबान चाहता है तो अल बगदादी के प्रति निष्ठा की शपथ ले सकता है." कम से कम दो पूर्व तालिबान अधिकारियों ने जिनका रिश्ता अब भी चरमपंथी संगठन से है, इसकी पुष्टि की है. खुद को पूरी दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर के अल बगदादी तालिबान और अल कायदा के नेताओं को चुनौती दे रहा है.

आईएस की मौजूदगी से इनकार

एक ओर पूर्व तालिबान अधिकारी ने कहा कि अल कायदा ने हाल ही में एक 13 साल पुराना वीडियो जारी किया है जिसमें उसका संस्थापक ओसामा बिन लादेन मुल्लाह उमर के प्रति निष्ठा का वचन दे रहा है. मौजूदा अल कायदा प्रमुख आयमान अल जवाहिरी ने जुलाई में एक वीडियो संदेश जारी कर तालिबान सुप्रीमो के प्रति वफादारी की प्रतिज्ञा को दोहराया था. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि उसने इस बारे में नहीं सुना है कि उसके नेता इस्लामिक स्टेट से बात कर रहे हैं. मुजाहिद ने डीपीए को बताया, "अगर ऐसा हुआ होता, हमें इस बारे में पता चल गया होता क्योंकि यह एक बड़ी चीज है. अभी के लिए मैं इसकी पुष्टि नहीं करता." उसने साथ ही इस बात से इनकार किया कि आईएस के लड़ाके अफगानिस्तान में मौजूद हैं.

अफगान अधिकारी और नाटो सैन्य अधिकारी भी इस बात से इनकार करते आए हैं. मुजाहिद के मुताबिक, "यह सब अफवाह है क्योंकि अफगानिस्तान आईएस से संबंधित नहीं है. हम लोग ही अफगानिस्तान में लड़ रहे हैं. मैं इस्लामिक स्टेट से संबंध के सभी अफवाहों को खारिज करता हूं." क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट के प्रभाव को यकीन के साथ मापना बहुत मुश्किल है. पिछले महीने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए इस्लामिक स्टेट से जुड़ा संगठन सीमावर्ती इलाकों में पर्चियां बांट रहा था. पर्चे में अल बगदादी के प्रति साथी मुसलमानों से निष्ठा का आग्रह किया गया था.

अल कायदा के लिए चुनौती

स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने काले नकाब पहनकर दक्षिण मध्य अफगान प्रांत गजनी में हिंसा फैलाई और कई लोगों की हत्या की. लेकिन अफगान और तालिबान अधिकारियों के इंटरव्यू से यह संकेत मिलता है कि वह हमला इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने नहीं बल्कि दफ्तानी कबीले ने अंजाम दिया था. यह एक खानाबदोश कुची कबीला है जो सीमा के दोनों तरफ सक्रिय है. पूर्व तालिबानी अधिकारी वाहिद मुज्दा के मुताबिक, "दफ्तानी तालिबान से अलग है, तो स्थानीय लोगों को लगा कि वो इस्लामिक स्टेट है. लेकिन अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट नहीं है."

डीपीए से बातचीत में मुजाहिद ने इसे अमेरिकी प्रचार करार देते हुए कहा, "हां, हमने मीडिया में ऐसी अफवाहें सुनी हैं कि गजनी में आईएस के झंडे दिखे हैं. हमने जांच की और पाया कि वहां ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है."

नाटो के एक अधिकारी ने सुझाव दिया कि अफवाहों की शुरूआत स्थानीय अधिकारियों ने की है जो अपनी ओर अधिक ध्यान आकर्षित करने और क्षेत्र के लिए समर्थन चाहते हैं. विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों में खंडित आतंकी समूह मुल्लाह उमर के प्रति वफादार बने हुए हैं. तालिबान प्रमुख के सहयोगी अल कायदा अपने प्रभाव के सामने गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है. एक समय में जिस तरह की वैश्विक अपील अल कायदा के पास थी वह अब खत्म होती जा रही है, क्योंकि उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा अधिक कट्टरपंथी और आर्थिक रूप से मजबूत इस्लामिक स्टेट से है.

एए/एमजे (डीपीए)