1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

तालिबान को चाहिए नया संविधान

२३ दिसम्बर २०१२

अफगानिस्तान में तालिबान ने देश की सरकार से बातचीत में शामिल होने से पहले नए संविधान की शर्त रखी है. फ्रांस में अलग अलग गुटों की शांति प्रक्रिया पर हुई अहम बातचीत के बाद जारी बयान में यह बात कही गई है.

https://p.dw.com/p/178Aw
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अफगानिस्तान में वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे अलग अलग गुटों के प्रतिनिधी गुरुवार को फ्रांस में दो दिन तक चलने वाली बातचीत के लिए मिले. राजनयिकों का कहना है कि उन्हें इस बातचीत से जंग से लहूलुहान देश के लिए उम्मीद जगी है. अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान पर हमले के दशक भर से ज्यादा बीत जाने के बाद पहली बार सरकार और विरोधी गुटों के प्रतिनिधी देश के भविष्य पर बातचीत करने के लिए एक मेज पर आए. यह बातचीत एक फ्रेंच थिंक टैंक की मध्यस्थता में हो रही है.

बातचीत के बाद एक संयुक्त घोषणा पत्र प्रतिनिधियों को मिला जिसे बाद में मीडिया में जारी किया गया. इस घोषणा पत्र में लिखा है, "अफगानिस्तान का मौजूदा संविधान हमारे लिए किसी महत्व का नहीं क्योंकि यह आक्रमणकारियों के बी52 बमवर्षक विमानों के साए में बनाया गया है. इस्लामिक अमीरात को अपने हिम्मती देश की भलाई के लिए ऐसे संविधान की जरूरत है जो पवित्र इस्लाम धर्म के सिद्धांतों, राष्ट्रिय हित, ऐतिहासिक उलब्धियों और सामाजिक न्याय पर आधारित हो."

फ्रांस की राजधानी पैरिस में यह बैठक फाउंडेशन फॉर स्ट्रैटजिक रिसर्च ने कराई और यह किसी अज्ञात स्थान पर बंद दरवाजों के पीछे हुई. अफगानिस्तान से विदेशी फौजों की वापसी के बाद यह देश कैसे चलेगा और इसमें राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ तालिबान और दूसरे विपक्षी दलों को लाने की कोशिशें ही इस बातचीत का आधार हैं. करजई की सरकार ने शांति के लिए एक रोडमैप तैयार किया है जिसमें तालिबान और दूसरे चरमपंथी गुटों को युद्ध विराम पर रजामंद करने और देश में नया नया पैर जमा रहे लोकतंत्र में शांतिपूर्ण योगदान के लिए उन्हें तैयार करने की बात है.

Taliban
तस्वीर: dapd

इस दिशा में पहले कदम के तहत करजई प्रशासन पड़ोसी देश पाकिस्तान में बंद तालिबान के नेताओं की रिहाई कराने में जुटा है. अहम मुलाकात होने के बावजूद तालिबान की घोषणा बता रही है कि उसे सरकार पर अभी भरोसा नहीं है. इसमें कहा गया है. "आक्रमणकारी और उनके दोस्तों के पास शांति के लिए कोई साफ रोडमैप नहीं है. कभी वे कहते हैं कि वे इस्लामिक अमीरात से बात करना चाहते हैं लेकिन कभी कहते हैं कि हम पाकिस्तान से बात करेंगे. इस तरह के ढुलमुल रवैये से शांति नहीं आएगी."

अब तक तालिबान सरकार से बातचीत करने से इनकार करता आया है और उसे अमेरिकी सरकार की कठपुतली बताता है. अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत भी मार्च में बंद कर दी गई. फ्रांस में तालिबान की ओर से शाहुबुद्दीन दिलावर और नईम वार्दाक शामिल हुए जो काफी वरिष्ठ माने जाते हैं. इससे अंदाजा लग रहा है कि इस्लामिक गुट बातचीत में आगे बढ़ने के रास्ते तलाश रहा है. तालिबान ने 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया. 11 सितंबर को अमेरिका पर अल कायदा के बाद जवाबी हमला किया गया और अमेरिकी फौजों के नेतृत्व में तालिबान को सत्ता से बाहर कर हामिद करजई को देश की कमान सौंप दी गई. तालिबान तब से ही छापामार तरीके से अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है. देश में हामिद करजई की सरकार जरूर है लेकिन फिलहाल उसका आधार विदेशी फौजें हैं.

एनआर/आईबी(एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी