1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

थाइलैंड से फ्रांस, टेम्पो में

१६ मार्च २०१६

थाइलैंड से फ्रांस का लंबा सफर, वो भी एक टेम्पो में, बिना पेट्रोल या डीजल के. जर्मनी और फ्रांस के तीन छात्रों ने दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा का संदेश देते हुए, ये जबरदस्त कारनामा कर दिखाया.

https://p.dw.com/p/1IDrw
Tuktuk in Bangalore, Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Burgi

70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पश्चिम की ओर यात्रा और पेट्रोल भरवाने की कोई चिंता नहीं. लक्ष्य तक पहुंचने में अब सिर्फ 50 किलोमीटर बचे हैं. थ्री व्हीलर पर बैंकॉक से टुलूस की यात्रा का बीड़ा उठाया है फ्रांस और जर्मनी के तीन स्टूडेंट्स ने.

ग्रुप के कैप्टन कारेन हैं सही शहर तक पहुंचाना उनका काम है. कम्युनिकेशंस इंचार्ज रेमी हैं. वह युवा लोगों से बात कराने में मदद करते हैं. लुडविष ग्रुप के इंजीनियर हैं. जब कोई बैटरी या बैटरी के खर्च के बारे में पूछता है तो उनका जवाब होता है, लुडविष से पूछो.

16 देशों का सफर

बैंकॉक में एक फील्ड सेमेस्टर पूरा करने के बाद इनके दिमाग में एक अजीबोगरीब आइडिया आया और वह प्रोजेक्ट बन गया. दरअसल ये खाली हाथ घर नहीं लौटना चाहते थे. इसलिए 16 देशों से होते हुए 20,000 किलोमीटर का सफर तय कर वापस लौटने की ठानी.

कारेन कूलाकियां इसका कारण बताते हैं, "हमने थ्री व्हीलर का इस्तेमाल किया क्योंकि यह इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और ग्रीन एनर्जी के बारे में जागरूकता फैलाने का अच्छा तरीका था." वे चार महीने सफर पर रहे. टुलूस पहुंचने से पहले यह आखिरी पड़ाव है. इस थ्री व्हीलर को इस यात्रा के लिए खास तौर पर तैयार किया गया था.

रेमी फर्नांडेस डांड्रे कहते है, "ये सौ फीसदी बिजली से चलता है. हालात ठीक हों तो 15 प्रतिशत ऊर्जा सोलर पैनल से आती है. बिजली का बड़ा हिस्सा गाड़ी के नीचे लगी लिथीयम बैटरी से आता है. हमें हर रोज सिर्फ ये करना पड़ता है कि इसे चार्ज कर लें."

आसान नहीं था सफर

लेकिन ये करना अक्सर इतना आसान नहीं होता था. कारेन ने रास्ते में आई मुश्किलों का जिक्र करते हुए कहा, "कुछ जगहों पर, खासकर चीन में, हमें इसे चार्ज करने में कुछ समस्या होती थी. लेकिन शुरू में हमें अपनी गाड़ी के बारे में ठीक से पता भी नहीं था कि बैटरी की क्षमता क्या है. एक बार तो हमें पहाड़ के ऊपर गाड़ी को धक्का देना पड़ा क्योंकि बैटरी खत्म हो गई थी."

यह इको रिक्शा इतना हल्का भी नहीं है. इसका वजन 1200 किलोग्राम है. लेकिन असली समस्या टूटी फूटी सड़क और खराब मौसम की वजह से हुई. खासकर ठंड और बरसात से. फिर भी सारी समस्याओं के बावजूद एक बात उन्हें लगातार उत्साहित करती रही. ये था स्थानीय लोगों का प्यार और उनकी मेहमाननवाजी.

संदेश से साथ शिक्षा भी

रेमी लोगों के व्यवहार से काफी प्रभावित हुए, "हम दूसरी संस्कृतियों और लोगों के बारे में बहुत सारे नए अनुभवों के साथ वापस लौट रहे हैं. और इस विश्वास के साथ कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में ही हमारा भविष्य है."

तारीफ की वजह यह है कि एक चार्जिंग के बाद बैटरी 300 किलोमीटर ले जाती है. रास्ते में तीनों छात्र दूसरी यूनीवर्सिटी भी गए, और वहां उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया.

लुडविष मैर्त्स कहते हैं, "मैं समझता हूं कि हम एक अहम संदेश दे रहे हैं. अपनी यात्रा से हमने दिखाया है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों से सफर मज़ेदार हो सकता है और आधी दुनिया के इस टूयर को हमने पर्यावरण की रक्षा के संदेश के साथ भी जोड़ा. मैं समझता हूं कि अपनी यात्रा से हमने बहुत ही अच्छा नतीजा हासिल किया है."

इस तरह के प्रोजेक्ट पर खर्च भी होता है, जो इन तीनों ने चंदे से जुटाया. कुछ प्रायोजकों ने दिया तो कुछ क्राउडफंडिंग से आया. टुलूस पहुंचने के साथ ही यात्रा खत्म हुई. कारेन और लुडविष के लिए यह यात्रा उनके मास्टर थिसिस का एक्पेरिमेंट भी थी. और तीनों के लिए गाड़ियों के वैकल्पिक इंधन के लिए प्रयासों की एक शुरुआत.

आईबी/ओएसजे