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दलित उत्पीड़न है सामाजिक आतंक का एक रूप

विश्वरत्न२० जुलाई २०१६

गुजरात के उना में कथित रूप से मृत गाय की खाल उतारने को लेकर दलित युवकों की पिटाई पर राज्य सहित देश की राजनीति गरमाने लगी है. दलित-उत्पीड़न के मामले पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में आते रहे हैं.

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An der Grenze zwischen Indien und Bangladesch
तस्वीर: S. Rahman/Getty Images

गुजरात के उना में कथित रूप से मृत गाय की खाल उतारने को लेकर दलित युवकों की पिटाई पर राज्य सहित देश की राजनीति गरमाने लगी है. एक बार फिर दलित उत्पीड़न का मामला बहस के केंद्र में है. इस बार गुजरात के उना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलित युवकों की पिटाई के बाद फिर यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर दलित समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न के मामले क्यों नहीं रुक रहे हैं?

क्या है दलितों में गुस्से की वजह?

गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले में कथित तौर पर मृत गाय की खाल उतारने को लेकर पिछले दिनों दलित समुदाय के लोगों पर कहर बरपाया गया. दलित युवकों की बर्बर पिटायी का वीडियो सामने आने के बाद राज्य में उत्पीड़न के खिलाफ दलितों का गुस्सा भड़क गया. अपने समुदाय के युवाओं को कार से बांधकर पीटने के मामले से गुस्साए दलित समुदाय ने समूचे राज्य में उग्र प्रदर्शन किया है. राजकोट में घटना के विरोध में दलित समाज की एक विरोध रैली का आयोजन किया गया. दलितों में अपने समुदाय के नेताओं के प्रति भी गुस्सा देखने को मिल रहा है. प्रदर्शनकारियों ने कुछ जगहों पर दलित नेताओं का घेराव भी किया है. कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक सरकारी कार्यालय में मृत पशु का शव भी फेंक दिया.

दलित गुस्से की आग में सौराष्ट्र

विरोध की सबसे ज़्यादा तपिश सौराष्ट्र में महसूस की जा रही है. राजकोट जिले में उना की घटना के विरोध में दो अलग-अलग घटनाओं में सात दलित युवकों ने आत्महत्या की कोशिश की. गोंडल में आत्महत्या का प्रयास करने वाले पांच युवकों ने पहले से ही सामूहिक रूप से जहर पीने की चेतावनी दे रखी थी. इन लोगों को तत्काल स्थानीय सिविल अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वहां बड़ी संख्या में जुटे लोगों और पुलिस के बीच नोक-झोंक हुई. वहीँ एक स्थान पर राज्य परिवहन निगम की दो बसों को प्रदर्शनकारियों ने जला दिया. हालांकि बसों के खाली होने के कारण इसमें किसी की जान नहीं गयी. कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम कर प्रदर्शन भी किया.

आत्महत्या की कोशिश करने वाले एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. वहीँ अमरेली कस्बे में घायल हुए एक पुलिसकर्मी की मौत अस्पताल में हो गयी. प्रदर्शनकारियों और पुलिसकर्मियों सहित 10 अन्य लोग भी घायल हुए.

मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने पीड़ितों से मुलाकात की है और उन्हें सरकारी सहायता देने, और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया. घटना की निंदा करते हुए उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. हिंसक प्रदर्शन के मद्देनजर मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने कहा, ‘‘यह वास्तव में एक घृणित कृत्य है और कोई समुदाय इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता. स्थानीय पुलिस की भी गलती है क्योंकि उन्होंने तत्परता से कार्रवाई नहीं की. दोषियों को गिरफ्तार करने के अलावा हमने लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों को भी निलंबित कर दिया है.”

'सोशल टेरर'

दलितों पर इस या उस बहाने होने वाले अत्याचार नए नहीं है. तथाकथित अगड़ा और प्रभावशाली वर्ग, हमेशा से सत्ता से अपनी नजदीकी का फायदा उठा कर दलित समुदाय पर अत्याचार करता रहा है. दलित उत्पीड़न के ताजा मामले पर आक्रोश जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इसे 'सोशल टेरर' करार दिया है. उन्होंने कहा है कि यह मामला सामाजिक आतंक का एक उदाहरण भर है जिसे सरकार नजरअंदाज करती है. सोनिया गाँधी ने सरकार पर दलितों एवं आदिवासियों के अधिकार छीनने का आरोप लगाया.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उना की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसकी कठोर निंदा की है. उनका कहना है कि आजादी के इतने साल बाद भी दलितों पर अत्याचार हो रहा है, यह सामाजिक समस्या है. साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि गुजरात में कांग्रेस के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार की घटना में लगातार वृद्धि हुई थी.

सोनिया गाँधी द्वारा घटना को 'सोशल टेरर' के विशेषण से नवाजा जाना बहुतों को अच्छा ना लगे पर यह तर्कपूर्ण है. यह उतना ही सत्य है जितना राजनाथ सिंह की यह स्वीकारोक्ति कि आजादी के 69 साल बाद भी दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. यानी सामाजिक समरसता अब भी एक सपना है.