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दस फीट खिसका काठमांडू

२८ अप्रैल २०१५

नेपाल में आए भूकंप ने सिर्फ तबाही ही नहीं मचाई है, बल्कि राजधानी काठमांडू को अपनी जगह से खिसका भी दिया है. हालांकि हिमालय की ऊंचाई पर कोई असर नहीं पड़ा है.

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Nepal
तस्वीर: picture alliance / ZUMAPRESS/P. Gordon

काठमांडू दस फीट यानि करीब तीन मीटर दक्षिण की ओर खिसक गया है. केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के भूविज्ञानी जेम जैक्सन ने बताया कि भूकंप आने के बाद धरती से जो ध्वनि तरंगें गुजरती हैं उनका आकलन कर इस नतीजे पर पहुंचा गया है. धरती के नीचे कई टेक्टॉनिक प्लेटें मौजूद हैं जो लगातार हरकत में रहती हैं. इनका धीमे धीमे हिलना महसूस नहीं होता. यही प्रक्रिया हिमालय की रचना के लिए जिम्मेदार है. वैज्ञानिक बताते हैं कि हिमालय की ऊंचाई हर साल चार सेंटीमीटर बढ़ रही है. हालांकि शनिवार और रविवार को आए भूकंप से हिमालय की ऊंचाई को कोई फर्क नहीं पड़ा है.

नेपाल के नीचे दो तरह की टेक्टॉनिक प्लेटें हैं. इंडियन प्लेट उत्तर की ओर खिसकते हुए यूरेशियन प्लेट पर दबाव बनाती है. इस कारण हर साल जमीन दो सेंटीमीटर से भी ज्यादा खिसक जाती है. काठमांडू के नीचे 150 किलोमीटर लंबा और 50 किलोमीटर चौड़ा ऐसा क्षेत्र है जहां ये प्लेटें सालों से आपस में संघर्ष कर रही हैं. इन प्लेटों की ऊपरी सतह पर दबाव इतना ज्यादा बन गया कि वे नीचे की ओर खिसक गयीं जिसका नतीजा शनिवार को भूकंप के रूप में देखा गया. काठमांडू आधा मीटर ऊपर की ओर उठा, तो उसका उत्तरी हिस्सा उतना ही नीचे धंस गया. यही वजह है कि हिमालय की ऊंचाई पर कोई असर नहीं पड़ा.

और आएंगे भूकंप

हिमालय में अब तक का सबसे भीषण भूकंप 1950 में असम में दर्ज किया गया था. उस समय जमीन करीब तीस मीटर तक खिसक गयी थी. सिंगापुर की अर्थ ऑब्जरवेटरी के पॉल तपोनेयर का कहना है कि ताजा भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.8 थी, जिसे हिमालय के इलाके के लिए कम जोरदार माना जा सकता है. उनके अनुसार इस इलाके में औसतन 8.2 से 8.5 की तीव्रता के झटके महसूस किए जा सकते हैं जो कि बेहद ताकतवर होते हैं. 2011 में जापान में आए भूकंप से स्थिति की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि तोहुकु भूकंप के कारण समुद्र की सतह के नीचे 50 मीटर तक प्लेट खिसकीं जिस कारण तट पर जमीन का खिसकना भी दर्ज किया गया.

दुनिया भर के वैज्ञानिक इस समय नेपाल के भूकंप और हिमालय के नीचे टेक्टॉनिक प्लेटों पर नजर रखे हुए हैं. एक बात से सब सहमत हैं कि आने वाले समय में इस इलाके में और भी कई भीषण भूकंप देखे जाएंगे. लेकिन ऐसा कब होगा इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है. मेलबर्न के स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज के गैरी गिब्सन का कहना है कि पिछले एक हजार सालों से इस तरह के भूकंप काठमांडू को हिलाते रहे हैं. उनके अनुसार औसतन हर सौ साल में एक बार काठमांडू को 7.5 या उससे ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप को झेलना पड़ता है. हालांकि दो भूकंप के बीच का अंतराल कभी 23 तो कभी 273 साल रहा है. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि अगला भूकंप कब आएगा. गिब्सन ने बताया कि जिस जगह भी भूकंप आता है, हर बार उसके आसपास की जगह अस्थिर हो जाती है और फिर वहीं से अगले भूकंप का रास्ता बनने लगता है.

आईबी/ओएसजे (एएफपी)