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दागियों से दिक्कत

२० मई २०१४

भारत में लोकसभा चुनाव परिणाम इस मायने में भी चौंकाने वाले हैं कि इसमें बाहुबलियों के संसद पहुंचने का रिकॉर्ड बना दिया है. यह आने वाले समय में नई संसद और सरकार के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है.

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तस्वीर: UNI

धन कुबेरों और बाहुबलियों का संसद पर बाहुल्य भारतीय लोकतंत्र की दो पुरानी समस्याएं हैं. लोकसभा के ताजा चुनावों के बाद भी ये समस्याएं बनी हुई हैं. नई संसद में करोड़पतियों और बाहुबलियों का पहले से मजबूत होना चिंताजनक है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और अदालत के तमाम प्रयासों के बावजूद इस प्रवृत्ति में इजाफा चुनाव सुधार के प्रयासों के लिए कुठाराघात से कम नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि इस बार हर तीसरा सांसद दागी है और दो तिहाई से ज्यादा सांसद करोड़पति हैं.

पिछली संसद में आपराधिक मामलों में आरोपी सांसदों की संख्या 160 थी मगर अब यह आंकड़ा बढ़ कर 186 हो गया है. इनमें से 112 पर गंभीर मामले लंबित हैं. गनीमत समझिए कि दागियों को पनाह देने में उदारता बरतने के लिए बदनाम दलों की हालत कमजोर रही वरना यह आंकड़ा और ज्यादा हो सकता था. हालांकि इस कमी को बहुत हद तक अभूतपूर्व जीत हासिल करने वाली बीजेपी ने पूरा किया है. उसके 282 सांसदों में से 98 के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं.

Indien Parlament in Neu Delhi Lok Sabha
अगले संसद की तैयारीतस्वीर: UNI

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के मुताबिक दागी जन प्रतिनिधियों के मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में नियमित तौर पर निचली अदालतों को सुन कर साल भर में निपटाने हैं. ऐसे में अगले पांच साल के दौरान दागी सांसदों के दोषी ठहराए जाने पर इनकी सदस्यता जाने का खतरा हर समय बरकरार रहेगा. फौजदारी मामलों के वरिष्ठ वकील पवन शर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश फिलहाल निचली अदालतों पर बाध्यकारी नहीं हैं, बल्कि इनके पालन की हर संभव कोशिश करने की अपेक्षा की गई है. इसका कारण राज्यों में फास्ट ट्रैक अदालतों का अभाव है और राज्य सरकारें पैसे का रोना रोकर इनके गठन की दिशा में लाचारी जता रही हैं. ऐसे में निचली अदालतों के पास नियमित सुनवाई पर ही जोर देने का विकल्प मौजूद है.

पिछले 67 सालों में हुए अब तक के 16 लोकसभा चुनाव के परिणाम कम से कम इतना तो स्पष्ट कर देते हैं कि भारतीय मतदाताओं में राजनीति के प्रति दिलचस्पी बनी हुई है और उनकी जिज्ञासा का ग्राफ आसमान छूने लगा है. लेकिन लोगों में अभी भी उस सियासी समझ का विकास बाकी है जो उन्हें सियासतदानों की तिकड़मों को पहचान सकने में सक्षम बनाए ताकि अपना हित साधने वाले राजनेताओं से किनारा कर सकें. मौजूदा नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियों की दृढ़ता के बिना दागी नेताओं की संख्या नहीं घटेगी. जनता के द्वारा जनता के लिए जनता पर किए जाने वाले शासन को भारतीय लोकतंत्र के रुप में परिभाषित किए जाने में अभी वक्त लगेगा.

ब्लॉग: निर्मल यादव

संपादन: अनवर जे अशरफ