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दिल्ली की अवैध फैक्ट्रियों में मरते लोग

९ दिसम्बर २०१९

अवैध फैक्ट्री में ज्यादातर मौतें दम घुटने से हुई, दिल्ली सरकार ने मैजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं लेकिन नियमों के उल्लंघन को लेकर अब भी सवाल कायम है कि कब तक लोग ऐसे ही मरते रहेंगे

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तस्वीर: Reuters/A. Abidi

दिल्ली की एक इमारत में लगी आग ने एक बार फिर सुरक्षा नियमों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बिना लाइसेंस के फैक्ट्रियां धड़ल्ले से चल रही हैं और श्रमिकों पर हर वक्त खतरा मंडराता रहता है. रविवार तड़के महबूब आलम के फोन की घंटी बजी, फोन की दूसरी तरफ आग में फंसा उनका भांजा जान बचाने की गुहार लगा रहा था. उत्तरी दिल्ली के रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी की एक इमारत में तड़के लगी आग में 43 लोगों की मौत हो गई, जबकि 17 लोगों का इलाज अस्पतालों में चल रहा है.

38 साल का मोहम्मद इमरान अपने मामा से बस जिंदगी बचाने की गुहार ही लगा पाया और उसकी आवाज कहीं गुम हो गई. महबूब आलम किसी तरह से उस इमारत की तरफ भागे जहां उनका भांजा फंसा हुआ था. तंग गली, एक दूसरे से सटी इमारतें और सड़क पर भीड़ के बीच इमरान के मामा उस मकान के पास पहुंचे. पांच मंजिला इमारत में लगी आग और चीख पुकार के बीच वहां लोगों की भीड़ जुट गई थी. दमकल और एंबुलेंस के सायरन और लोगों की भीड़ के बीच आलम किसी तरह इमारत को देख पा रहे थे जिसमें उनका भांजा आखिरी सांसें गिन रहा था.

आलम ने कहा, "मुझे उसी समय इस बात का डर हो गया था कि इमरान बच कर नहीं निकल पाएगा." इमरान दो बच्चे के पिता थे और वह यहां चल रही अवैध फैक्ट्री में काम करते थे. ज्यादातर मृतक बिहार के थे, जो इस फैक्ट्री में काम कर महज 150 रुपये रोजाना ही कमा पाते थे. इमारत में टोपी, बैग, कपड़े बनाने का काम होता था और काम करने वाले श्रमिक उसी इमारत में रहते थे. आग जब लगी तब मजदूर इसी इमारत में सोए हुए थे और उन्हें समझ में नहीं आया कि बचना कैसे है.

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दमकल की एक ही गाड़ी इमारत तक पहुंच पाईतस्वीर: Reuters/A. Abidi

संकरी गली में नहीं पहुंच पाई दमकल की गाड़ियां

आग की जांच में जुटे अधिकारियों ने बताया कि आग शार्ट सर्किट के कारण लगी हो सकती है वहीं डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर मौत जहरीली धुएं के कारण हुई. पुलिस ने इमारत के मालिक को गैर इरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है. मोहम्मद नौशाद ने बताया कि उसने कैसे अपने कंधे पर 10 लोगों को आग की लपटों से बचाकर बाहर तक पहुंचाया. आग की खबर मिलते ही कुछ लोग वहां पहुंच कर राहत के काम में जुट गए. नौशाद उन्हीं में से एक हैं. नौशाद के मुताबिक दमकल कर्मचारियों और सिविल डिफेंस के वालंटियर ने तत्परता के साथ कई लोगों की जान बचाई.

नौशाद कहते हैं, "कई और लोगों की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन जब दमकल की गाड़ियां पहुंची तो वहां गुस्साए लोग पहले से ही मौजूद थे, जिसकी वजह से बचाव कार्य में देरी हुई." बचावकर्मियों को पहले संकरी गली पर खड़े दर्जनों रिक्शा और बाइक हटाने पड़े जिसके बाद दमकल कर्मचारी अपना रास्ता बना पाए, लेकिन बिजली के तारों के कारण एक ही दमकल की गाड़ी इमारत के पास तक जा सकी.

32 साल के बाबर अली ने अपनी रिश्तेदार मासूमा बीबी को पहली मंजिल से बचाया. बाबर अली का कहना है, "इन मौतों से ज्यादा खतरनाक तो प्रवासी श्रमिकों के लिए इन फैक्ट्रियों में काम करना है. जहां पर लोग अच्छी जिंदगी और बेहतर पैसे की तलाश में आते हैं लेकिन उनका कसूर एक ही, वह गरीब हैं, कोई क्यों ऐसी तंग इमारत में काम करने और रहने को मजबूर होगा."

अली भी इसी इमारत में काम करते हैं. पास रहने वाले कई लोगों का कहना है कि फैक्ट्री में प्लास्टिक का कच्चा माल भरा था. जिस इमारत में आग लगी, वह दाल मंडी के मुख्य रास्ते पर ही बनी हुई है लेकिन यह मुख्य रास्ता भी बेहद संकरा है. इतना संकरा कि जब दमकल की एक गाड़ी इमारत के बाहर खड़ी  थी तब वहां किसी और गाड़ी के आने की जगह नहीं बची. यही नहीं इमारत में वेंटिलेशन का भी पर्याप्त इंतजाम नहीं था. बताया जाता है कि इलाके में आग की छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं.

इमारत के बगल में ही गत्ते की फैक्ट्री चलाने वाले इस्माइल अहमद को अपने यहां काम करने वाले 20 मजदूरों की चिंता सताने लगी है. अहमद कहते हैं, "अब मैं अपनी फैक्ट्री में फायर अलार्म और बेहतर वेंटिलेशन की सुविधा का इंतजाम करने के बारे में सोच रहा हूं." लेकिन इस आग में जिन 43 लोगों की जान गई है उनके परिवारों के लिए सुरक्षा और श्रमिक कानूनों का उल्लंघन अब बहुत कम मायने रखता है. आलम कहते हैं, "मेरा भांजा तो अब नहीं रहा, मैं इसके लिए किस पर आरोप लगाऊं."

एए/एनआर (एपी)

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