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दीमक के टीले से रेगिस्तानों पर लगाम

९ फ़रवरी २०१५

लकड़ी खाने वाला कीड़ा दीमक, जिससे ज्यादातर घरों में लोग परेशान रहते हैं, अब रेगिस्तानों को फैलने से रोकने का एक उपयोगी औजार साबित हुआ है. सूख रहे इलाकों में इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

'साइंस' जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि सवाना जैसे घास के मैदानों और अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी, एशियाई देशों के अर्ध-शुष्क इलाकों में दीमक एक अहम भूमिका निभा सकता है. दीमक अपने रहने के लिए जो टीले बनाते हैं उनमें आर्द्रता और कई तरह के पोषक तत्व भी कैद होते हैं. इसके अलावा टीले के अंदर बहुत सारी सुरंगनुमा डिजाइनें होती हैं, जिनमें से होकर पानी धरती में अच्छी तरह घुस पाता है. इसी कारण से इन टीलों पर कई तरह के पेड़ पौधों के उगने के लिए उपयुक्त स्थिति होती है. रेगिस्तानी जगहों पर दीमक के ये टीले हरियाली को शरण देने वाले केंद्रों के रूप में पूरी शुष्क पारिस्थितिकी को फायदा पहुंचा सकते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

स्टडी की प्रमुख लेखिका प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की कोरिना टार्निटा बताती हैं, "बारिश सब जगह एक सी ही है, लेकिन चूंकि दीमक के कारण धरती तक पानी ठीक से पहुंच पाता है, उस स्थान पर या उसके आसपास पौधे ज्यादा उगते हैं." टार्निटा आगे कहती हैं, "बेहद कठोर परिस्थिति में जब टीले पर कोई हरियाली ना हो, तब भी वहां वनस्पतियों का दुबारा उगना ज्यादा आसान होता है. जब तक टीले हैं तब तक पारिस्थितिकी के दुबारा अच्छे हो जाने की ज्यादा संभावना होती है."

एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी में जलीय सूक्ष्मविज्ञान और थ्योरेटिकल इकोलॉजी के प्रोफेसर जेफ हुइसमान का मानना है कि पहले रेगिस्तानों के विस्तार के संकेत काफी सरल माने जाते थे, उनके बारे में जल्दी पता लगाने के लिए प्रकृति की इन तमाम जटिलताओं पर ध्यान नहीं दिया गया था. हुइसमान इस स्टडी का हिस्सा नहीं थे.

फिलहाल रेगिस्तान बनने के पांच प्रमुख तरीकों के बारे में जानकारी है. इसके पांच चरण माने जाते हैं और हर चरण में वनस्पतियों की वृद्धि के लक्षणों पर ध्यान दिया जाता है. इसके अलावा, वैज्ञानिक सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन कर भी किसी इलाके में हो रहे रेगिस्तान के फैलाव के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं. रिसर्चरों ने पाया कि दीमक के टीलों वाले अर्ध-शुष्क पारिस्थितिकीय इलाके और रेगिस्तानीकरण के पांचवे और अंतिम चरण के लक्षण काफी मिलते जुलते हैं. इसका अर्थ हुआ कि जिसे कई बार रेगिस्तान बनने का अंतिम चरण मान लिया जाता है वहां दीमकों की वजह से दुबारा हरियाली आने की संभावना बची होती है.

हुइसमान कहते हैं कि क्लाइमेट मॉडल बनाने में दीमक और सीपी जैसे छोटे जीवों पर भी ध्यान देना चाहिए. जो अपने पर्यावरण को इंजीनियर करने की क्षमता रखते हैं. इनके अलावा चिंटियां, प्रेयरी कुत्ते और टीले बनाने वाले अन्य जीव भी अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

आरआर/एसएफ (एएफपी)