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दुनिया समय की मारी

१६ अप्रैल २०१३

हर दिन जल्दी, तेजी, आपाधापी. हमारा जीवन बहुत तेज हो गया है. सारी आधुनिक सुख सुविधाओं और तकनीक के बावजूद हमारे पास कभी वक्त नहीं होता. लेकिन क्यों? इसी का जवाब ढूंढ रहा है बर्लिन का संचार संग्रहालय.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

1934 में पहली बार अमेरिका में टीवी का रिमोट बनाया गया. उस समय वह केबल से जुड़ा हुआ था. 1950 के दशक में आया बिना केबल वाला रिमोट जर्मनी में इसका आगमन 70 के दशक में हुआ. एक ऐसा आविष्कार जो सभी के लिए फायदेमंद है और चैनल बदलने के लिए बार बार टीवी तक जाने की जरूरत नहीं.

बर्लिन के म्यूजियम फॉर कम्यूनिकेशन में जो रिमोट रखा गया है वह 1986 का है जिसे जर्मन कंपनी ग्रुंडिग ने बनाया था. प्रदर्शनी में रखी गई ढाई सौ चीजें दिखाती हैं कि कैसे जिंदगी तेज, और तेज होती गई. यह तेजी या आपाधापी टीवी रिमोट या पीसी, या स्मार्टफोन के आविष्कार के कारण नहीं बल्कि 17 से 19वीं शताब्दी के दौरान धीरे धीरे बढ़ी.

समय की सापेक्षता

समय सापेक्ष है और उसकी गति सिर्फ चलते समय ही महसूस हो सकती है. यह अल्बर्ट आइंश्टाइन ने कहा था. कई हजार साल तक लोग धीमे धीमे पैदल, फिर घोड़े पर, गधे या हाथी या फिर ऊंट पर सवार हो कर यात्रा करते रहे. सभी करीब करीब एक ही गति से आगे जा रहे थे. जिन रास्तों से वह आगे जाते वह तुलनात्मक रूप से सीधे थे. पत्र या पोस्ट ने 15वीं सदी में इस लय को तोड़ा. इसी के साथ एक पोस्टमैन एक से दूसरी जगह नहीं जाता बल्कि एक साथ कई लोग जाते थे और बीच रास्ते में ये लोग बदल भी जाते. इससे लोगों को आराम करने का वक्त मिलता और पत्र तेजी से अपनी जगह पहुंच जाता. व्यापारी पहले से ही जानते थे कि समय ही सोना है और उन्होंने व्यापारिक काम के लिए जहाज बनाने में मदद की.

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बर्लिन में समय से लड़ाईतस्वीर: Museumsstiftung Post und Telekommunikation

बर्लिन की यह प्रदर्शनी आयोजित करने वाले क्लाउस बेयरेर बताते हैं, "गति क्षमता बढ़ाने और तर्कसंगता का परिणाम है." यह कदम दर कदम बढ़ा और सदियों तक लगातार बढ़ा. इसका उदाहरण हैं, प्रदर्शनी में रखे गए कुछ दस्तावेज जिसमें समय दर्ज है. कि कैसे 18 वीं सदी के शुरुआत में पोस्टमैन की पाबंदी देखी जाती थी.

समय ही सब कुछ

औद्योगिकरण के कारण लोगों को पाबंद होना पड़ा और इसी के साथ जरूरत पड़ी सही समय बताने वाली घड़ियों की. इस के बाद घड़ी आम जन जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई. वह ट्रेन स्टेशन, कारखाने, बेडरूम से लेकर ड्रॉइंग रूम सब जगह नजर आने लगी. समाज के दूसरे हिस्सों में भी बदलाव आया. ऑफिस में टाइपिंग मशीन आ गई. कामकाजी महिलाओं के लिए पका खाना बाजार में मिलने लगा जिसे घर आ कर सिर्फ गर्म करना पड़ता. जल्दी पकाने वाले बर्तन, जल्दी कपड़े धोने वाली मशीन, वैक्यूम क्लीनर. कम समय में ज्यादा काम करने की होड़ बढ़ गई. जिस बिजली ने रात को दिन जैसा बना दिया था उसी की मदद से नए नए उपकरण बनने लगे. यातायात के साधनों के तेज हो जाने के कारण भी काफी फर्क पड़ा. समय की पाबंदी एकदम महत्वपूर्ण हो गई. कई देशों में कुछ मिनटों की देरी भी समय बर्बादी की तरह देखी जाने लगी.

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कैसे तेज हुई दुनिया

चूंकि पुराने समय में रास्ता ही लक्ष्य था वहीं अब लोग बहुत तेजी से अपने लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं. इस प्रदर्शनी से समझ में आता है कि समय पहले की तरह कोई उपहार नहीं बल्कि आर्थिक सत्ता है. कोशिश है कि इसे पूरे प्रभाव से इस्तेमाल किया जाए. इसलिए तेज चलने वाली कारें, ट्रेनें, साइकलें और विमान विकसित किए गए. पलक झपकने से भी तेज गति से समाचार दुनिया भर में आने जाने लगे. ज्यादा ज्ञान विज्ञान और छोटे आकार में आ गया. मोबाइल, कंप्यूटरों के जरिए सब कुछ तेजी से होने लगा.

गति

तेजी ने हमेशा से इंसान को आकर्षित किया है. वे पूरे आश्चर्य से दौड़, धावकों की तेजी देखते हैं, लेकिन गति से और डर भी लगता है. 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेनों से लेकर तो अभी तक गति की रफ्तार ने लोगों को बीमार भी किया है. आज इसे हम बर्न आउट के नाम से जानते हैं. हर व्यक्ति यही सोचता है कि उसके पास समय काफी नहीं. हमारी दुनिया के पास इसका भी जवाब है जिसमें दवा की दुकानों में दिमाग शांत करने वाली और नींद की दवाई, तनाव घटाने वाली क्रीम, मास्क भी मिल जाते हैं. समय प्रबंधन का काम जोरों पर है. एनर्जी ड्रिंक और कॉफी जोरदार होनी चाहिए ताकि काम आगे जाए. और जल्दी से रिलैक्स होने के लिए मसाज पार्लरों की बिलकुल कमी नहीं.

रिपोर्टः सिल्के बार्टलिक/एएम

संपादनः एन रंजन

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