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दुश्मनों से भी बात करनी पड़ती है

मथियास फॉन हाइन/आईबी२९ अक्टूबर २०१५

सीरिया को ले कर अमेरिका ने अपना रुख बदला है. अब ईरान को भी बातचीत के लिए आमंत्रित किया जा रहा है. यह कदम बहुत पहले ही ले लिया जाना चाहिए था, कहना है डॉयचे वेले के मथियास फॉन हाइन का.

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बदहाल सीरिया
तस्वीर: Getty Images/AP Photo/D. Vranic

चार साल तक मौत और तबाही का सिलसिला चलने के बाद आखिरकार गतिरोध खत्म होता नजर आ रहा है. वॉशिंगटन ने अपना रुख बदला है और सीरिया संकट को ले कर अपनी सबसे बड़ी मांग को छोड़ दिया है. अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर द्वारा की गयी यह घोषणा ही काफी अहम है कि अमेरिका इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए इराक और जरूरत पड़ने पर सीरिया में भी अपनी सेना भेजेगा. लेकिन उससे भी बढ़ कर जरूरी बात यह है कि अमेरिका ईरान के साथ बातचीत के लिए राजी हो गया है.

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डॉयचे वेले के मथियास फॉन हाइन

इस हफ्ते सीरिया के भविष्य पर एक बार फिर चर्चा होगी. वियना में होने वाली इस बैठक में इस बार मेज पर ईरान के विदेश मंत्री भी मौजूद होंगे. अमेरिका, रूस, सऊदी अरब और तुर्की के प्रतिनिधि तो होंगे ही. अब तक अमेरिका और सऊदी अरब ईरान से बात करने के सख्त खिलाफ थे.

जनवरी 2014 में अमेरिका ने इस बात पर जोर दिया था कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून जिनेवा में सीरिया पर होनी वाली बैठक के लिए ईरान के आमंत्रण को रद्द करें. लेकिन अब पाषाण युग की सोच रखने वाले इस्लामिक स्टेट के बढ़ते असर और रूस के सैन्य हस्तक्षेप के बाद अमेरिका का हृदय परिवर्तन होने लगा है. जब किसी मुश्किल संकट का समाधान निकालना होता है, तब आप केवल अपने दोस्तों तक सीमित नहीं रह सकते, तब दुश्मनों से भी बात करनी पड़ती है.

हालांकि मॉस्को और तेहरान, दोनों ही इस बात पर अड़े हैं कि बशर अल असद ही सीरिया के राष्ट्रपति पद पर रहेंगे लेकिन इसके बावजूद सीरिया के इन दोनों मित्रों से बात किए बिना समस्या का समाधान मुमकिन नहीं है. आपको भले ही यह बात अच्छी ना लगे लेकिन सच्चाई तो यही है. तीन लाख लोगों की जान जाने के बाद यह समझौता कष्ट जरूर देगा लेकिन इससे बेहतर और कोई विकल्प हैं भी तो नहीं.

हम चाहते, तो तीन साल पहले ही यहां तक पहुंच सकते थे. फिनलैंड के पूर्व राष्ट्रपति मार्टी अहतिसारी ने कुछ वक्त पहले ब्रिटिश अखबार "द गार्डियन" को बताया कि 2012 में रूस ने असद के इस्तीफे का प्रस्ताव रखा था. लेकिन उस समय तक अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को पूरा भरोसा था कि असद की हार निश्चित है, इसलिए उन्होंने रूस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. अब हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि इस बार ऐसे मौके को नहीं गंवाया जाएगा.

और जहां तक सवाल सीरिया में अमेरिकी सेना की कार्रवाई का है, तो बिना रूस और ईरान के साथ बातचीत के कुछ नहीं होना चाहिए. इस खतरे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सीरिया में अमेरिका और रूस की सेना आपस में ही भीड़ जाएगी और एक नया संकट खड़ा कर देगी.