1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दूर है आर्थिक एकीकरण का लक्ष्य

यूटा वासेरराब/एमजे९ नवम्बर २०१४

जर्मनी दीवार गिरने की 25वीं सालगिरह मना रहा है. खस्ताहाल पूर्वी जर्मनी का पुनर्निर्माण करीब करीब पूरा हो चुका है. पिछड़ापन काफी हद तक खत्म हो गया है अब सिर्फ उत्पादकता एकदम कम है. जल्द ही यह कमी भी पूरी हो जाएगी.

https://p.dw.com/p/1Dj3x
तस्वीर: picture alliance/dpa

इसकी कल्पना कीजिए: 4,00,000 लोग जर्मनी के पूर्वी हिस्से से पश्चिम चले गए. वह भी सिर्फ एक साल में. यह साल था बर्लिन दीवार के गिरने का साल, 1989. एक साल बाद और 4,00,000. साम्यवादी पूर्वी जर्मनी से लोग लगातार भाग रहे थे. पश्चिमी जर्मनी के चांसलर हेल्मुट कोल पर भारी दबाव था. दीवार गिरने के करीब तीन महीने बाद उन्होंने पहली जुलाई से पूर्वी जर्मनी में पश्चिमी मुद्रा लागू करने की घोषणा की. इसका मकसद लोगों को अपने यहां रहने के लिए प्रेरित करना था. इस तोहफे की अभी भी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.

आर्थिक विकास पर नजर रखनेवाले विशेषज्ञों की समिति ने 9 फरवरी 1990 को चांसलर को एक पत्र लिखा था. उसमें उन्होंने चांसलर कोल से मुद्रा संघ से पहले आर्थिक सुधार की पेशकश करने की अपील की थी. देश के चार प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने कोल को लिखा, "हम मुद्रा संघ पर फौरन अमल को लोगों के पलायन को रोकने का गलत साधन मानते हैं."

प्रतिस्पर्धा का अंत

लेकिन हेल्मुट कोल ने अर्थशास्त्रियों की शंका को नजरअंदाज कर दिया. पहली जुलाई 1990 से तत्कालीन जीडीआर के लोगों को एक से एक की दर पर मजदूरी, तनख्वाह और पेंशन डी-मार्क में मिलने लगी. जमा पूंजी को 2 जीडीआर मार्क के लिए एक डी-मार्क से बदला गया. मुद्रा की यह दर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था की उत्पादकता के अनुपात में नहीं थी. एसईडी तानाशाही के अंत में जीडीआर की उत्पादकता पश्चिम जर्मनी के मुकाबले एक तिहाई थी. विनिमय दर का नतीजा यह हुआ कि पूर्वी मालों की कीमत कई गुणा बढ़ गई.

और जब 1991 के शुरू में पश्चिम के उद्योगपतियों और ट्रेड यूनियनों ने पूरब के कामगारों का वेतन तय किया, जो पहले से काफी ज्यादा था. तो इसकी वजह से पूर्वी जर्मनी के उद्यमों की प्रतिस्पर्धी क्षमता पूरी तरह खत्म हो गई. पूर्वी जर्मनी के हाले शहर में स्थित आर्थिक शोध संस्थान के गेरहार्ड हाइमपोल्ड कहते हैं, "वे कुछ हद तक उत्पादकता की रफ्तार से तेज थे, जिसका मतलब था कि उद्यम नया वेतन सहने की हालत में नहीं थे." उद्यम दिवालिया होने लगे. 2005 तक उद्योगों के बंद होने से 10 लाख नौकरियां खत्म हो गईं. बेरोजगारी बढ़कर 18.8 फीसदी हो गई. प्रशिक्षित युवा लोग पश्चिम की ओर पलायन करने लगे.

लहलहाती वादियां

फिर 2006 में मोड़ आया. बेरोजगारी कम होने लगी. 2013 तक बेरोजगारी दर गिरकर 10.3 प्रतिशत हो गई, 1991 के बाद से सबसे कम. इन आंकड़ों के ठीक से देखने पर पता चलता है कि जर्मनी के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में सीधा सादा अंतर करना काफी नहीं. पूर्वी प्रदेश थुरिंजिया की हालत पश्चिम के नॉर्थराइन वेस्टफेलिया या ब्रेमेन से बेहतर है. इसके अलावा पूरब के कुछ शहर और जिले चार और छह फीसदी बेरोजगारी के साथ बवेरिया या बाडेन वुर्टेमबर्ग जैसे पश्चिमी प्रांतों के साथ मेल खाते हैं.

सबसे प्रभावी आर्थिक विकास दीवार गिरने के बाद के पहले पांच सालों का है. जीडीआर का सरकारी खजाना खाली था, जिसकी वजह से मकानों, संरचना और उद्यमों में निवेश की भारी जरूरत थी. 1990 के दशक के मध्य तक सकल घरेलू उत्पादन इतनी तेजी से बढ़ा जितना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिम जर्मनी में आर्थिक चमत्कार के दिनों में बढ़ा था. ड्रेसडेन के इफो इंस्टीट्यूट के अनुसार 1991 से 2013 के बीच आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के कदमों पर पूर्वी जर्मनी को 560 अरब यूरो दिया गया. इस समय पूर्वी जर्मनी के उद्यमों में पूंजी की स्थिति पश्चिमी जर्मनी से बेहतर है, संरचना आधुनिक है और यूनिवर्सिटी बेहतर हालत में हैं.

संरचनात्मक मुश्किलें

लेकिन शुरुआती विकास के स्थगन का दौर आया. निवेश के बड़े लक्ष्य पूरे हो गए. पिछले 20 साल से पूरब और पश्चिम के आर्थिक कारकों का आंतर मिट नहीं रहा है. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन में पूरब पश्चिम के 67 प्रतिशत पर अटका है. कोलोन के जर्मन आर्थिक संस्थान के क्लाउस हाइनर रोएल कहते हैं कि पश्चिम के सौ फीसदी स्तर पर पहुंचने की जरूरत नहीं है, लेकिन 67 फीसदी का आंकड़ा बहुत कम है. कमजोर पश्चिमी प्रांत श्लेसविष होलश्टाइन का भी स्तर 82 प्रतिशत पर है. रोएल का कहना है कि उसे कम से कम पश्चिमी प्रांतों के निचले स्तर पर जरूर पहुंचना चाहिए.

हाइमपोल्ड का भी कहना है कि उत्पादकता के मामले में पूरब के प्रदेशों में प्रगति की जरूरत है. "इसकी इसलिए भी जरूरत है कि क्योंकि हम आबादी की संरचना में बदलाव का सामना कर रहे हैं, इसलिए कम होते कामगारों को इलाके और देश की समृद्धि की गारंटी करनी होगी." लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है क्योंकि मुद्रा संघ के जरिए आर्थिक विकास के कदमों ने संरचनात्मक समस्या खड़ी कर दी है. शुरुआत में उद्योगों के एक के बाद एक बंद होने से पूरब अब तक ठीक से उबर नहीं पाया है. वहां मझौसे उद्यमों का बोलबाला है. 100 से 250 कामगारों वाले उद्यमों के मामले में पूरब और पश्चिम एक जैसे हैं लेकिन फिर भी पूरब में उत्पादकता सिर्फ तीन चौथाई है.

सफलता की कुंजी

पूरब में जिस बात की कमी है वह है बड़े उद्यम. वे सब पश्चिम में हैं और उन्हीं से अंतर पैदा होता है. वे आम तौर पर न सिर्फ ज्यादा कुशल हैं, वे ज्यादा निर्यात करते हैं और तेजी से विकास कर सकते हैं. पश्चिम में निर्यात का अनुपात 50 फीसदी है जबकि पूरब में सिर्फ 30 प्रतिशत. बड़े उद्यमों में शोध भी ज्यादा होता है, जिसकी वजह से वे उन्नत हैं और प्रतिस्पर्धी भी. पश्चिम में निजी उद्यम शोध के खर्च का 70 फीसदी उठाते हैं जबकि पूरब में सिर्फ 40 प्रतिशत. पूरब के मझौले उद्यम बड़े हो सकते हैं लेकिन हाइमपोल्ड और रोएल दोनों का कहना है कि इसमें समय लगेगा.

लेकिन पूरब के पास समय नहीं है, क्योंकि वहां काम करने वाले लोगों की संख्या घट रही है. आबादी की उम्र का बढ़ना पूरे जर्मनी की समस्या है लेकिन बेहतर संभावना की तलाश में प्रशिक्षित युवाओं के पलायन ने पूरब में इस समस्या को और गंभीर बना दिया है. 1990 से 2012 तक काम में सक्षम लोगों की तादाद 1.12 करोड़ से घटकर 1 करोड़ रह गई है. पश्चिम में यह तादाद आम तौर पर बरकरार है. 2030 तक पूरब में कार्क्षम लोगों की संख्या में और 10 लाख की कमी होने का अंदेशा है. कामगारों में कमी का मतलब होगा और कम विकास.

ड्रेसडेन के इफो इंस्टीट्यूट के योआखिम राहनित्स को डर है कि "जीवन परिस्थितियों में और बराबरी की प्रक्रिया रुक सकती है." आबादी के इस विकास के असर को कम करने का एक ही रास्ता है. रोएल कहते हैं, "सभी प्रक्रियाओं को कुशल, जानकारी से लैस और उन्नत बनाना होगा." यह मझौले उद्यमों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. यदि इसमें सफलता मिलती है तभी जर्मनी देश के दो हिस्सों के सफल विलय की बात कर सकता है.